आज चंद्रशेखऱ आजाद की जयंती पर तमाम देशप्रेमी उनको याद कर रहे हैं परंतु प्रथम स्वाधीनता संग्राम के भूले बिसरे कई चंद्रशेखर आजाद आजादी के बाद भी याद नहीं किये जा सके। इन सेनानियों ने महारानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, वीर कुंवर सिंह और बांदा के नवाब जैसे पुरोधाओं द्वारा फिरंगियों को भगाने के लिए छेड़े गये युद्ध में आगा पीछा छोड़ भाग लिया और देश के लिए कुर्बान हो जाने का जज्बा दिखाया था। बचपन से शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले का तराना सुनते आ रहे लोगों के सामने जब आजादी के बाद भी इनकी उपेक्षा की करतूत सामने आती है तो उन्हें कर्णधारों के प्रति नफरत सी होने लगती है।
बताते हैं कि अजीतापुर निवासी फकीरा ने 1857 में छिड़ी जंगे आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे जिसकी वजह से फिरंगियों ने उन्हें मोस्ट वांटेड की श्रेणी में रख दिया था। पूरी ताकत लगा देने के बावजूद अंग्रेज लड़ाई के समय उनको न दबोच सके। लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ पहला स्वतंत्रता संग्राम अपने ही लोगों के भितरघात के कारण कामयाबी की मंजिल पर न पहुंच सका। क्रांति को कुचलने के बाद अंग्रेज इसमें शरीक रहे रणबांकुरों के पीछे पड़ गये। एक देशद्रोही की मुखबिरी के कारण फकीरा को भी अंग्रेजों ने पकड़ लिया। उनके खिलाफ अभियोग की सुनवाई करने के बाद झांसी के तत्कालीन कमिश्नर ने उन्हें फांसी पर चढ़ाने का फरमान सुना डाला। डेथ वारंट जब उरई आया तो यहां डिप्टी कमिश्नर का चार्ज डिप्टी कलेक्टर पशन्हा के पास था। उन्होंने झांसी के कमिश्नर को एक पत्र लिखा कि फकीरा के खिलाफ किसी अंग्रेज की हत्या का अभियोग नहीं है। चूंकि महारानी विक्टोरिया की ओर से तब तक आम माफी की घोषणा भी की जा चुकी थी सो पशन्हा ने पत्र में इसका हवाला देने में भी चूक नहीं की। साथ में यह भी लिखा कि फकीरा को फिर भी फांसी पर लटकाया गया तो जालौन जिले की जनता में गलत संदेश जायेगा।
बुजुर्ग इतिहासकार देवेंद्र कुमार सिंह ने फकीरा के प्रसंग को अपनी पुस्तक में लिपिबद्ध किया है। उनके मुताबिक झांसी के कमिश्नर बिकने को पशन्हा की यह दलील जच गयी और 8 नवंबर 1858 को एक आदेश निर्गत कर अग्रिम आदेशों तक उसने फकीरा के मृत्युदंड का आदेश स्थगित कर दिया। कुछ दिनों बाद यह मामला नार्थ वेस्ट प्राविन्स के सेक्रेटरी विलियम म्यूर को संदर्भित कर दिया गया। आखिरकार 27 नवंबर 1857 को गवर्नर जनरल की ओर से फकीरा के खिलाफ मृत्युदंड आदेश को रद्द करने की घोषणा प्रसारित कर दी गयी। दुर्भाग्य यह है कि वर्तमान में अजीतापुर और आसपास के क्षेत्र के किसी बाशिंदे को फकीरा के बारे में कुछ पता नहीं। बताने पर सुरेंद्र द्विवेदी, सुरेश शर्मा, इसरार पहलवान आदि ने कहा कि फकीरा का पूरा परिचय और उनके वर्तमान वंशजों को सामने लाना चाहिए क्योंकि उनके स्मरण से लोगों में देश भक्ति की भावना को मजबूत किया जा सकता है। उन्होंने अभी तक जिम्मेदारों द्वारा इसकी कोई पहल न की जाने पर कोफ्त जताया।
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