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पुरानी परम्पराओं में सामाजिक समरसता की झलक

मुक्त विचार
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मेला में भुजरिया सिराने जातीं महिलायें।

मेला में भुजरिया सिराने जातीं महिलायें।

जाति व्यवस्था के रहते हुए भी पुरानी ग्रामीण परंपरायें पूरे गांव को एक परिवार के रूप में दर्शाने वाली हैं। सद्भाव की ऐसी ही मिसाल है जालौन जिले के महेबा ब्लॉक के गांव मुसमरिया का कजरी जुलूस। इसमें छुआछूत और जातिगत दुराव की दीवार ढहाने के लिए दशकों से महिलाओं की सुरक्षा का जिम्मा सौंपकर बाल्मीकि समाज का गौरव बढ़ाया जाता है।

इस ब्लॉक क्षेत्र के सबसे बड़े मुसमरिया गांव में आज कजरी मेला का आयोजन दिन भर हुयी बारिश के बावजूद पूरे जोश खरोश के साथ हुआ। 15 हजार की आबादी में ठाकुर समुदाय बहुसंख्यक है लेकिन यहां वोटों की राजनीति के बहुत पहले सायास नहीं बल्कि हृदय के आंतरिक उद्गार के तहत भाईचारा की भावना को जीवंत रखने के लिए तब अछूत समझे जाने वाले बाल्मीकि समुदाय के लोगों को जुलूस के दौरान ठाकुरों सहित सभी वर्गों की महिलाओं की हिफाजत का जिम्मा सौंपा गया। यह सिलसिला आज भी बरकरार है।

मेला में घोड़ी को नचाते सईस।

मेला में घोड़ी को नचाते सईस।

बाल्मीकि समाज के हरिओम, अर्जुन, तुलाराम, ठकुरी, कालीदीन, मातादीन, रामकरन, करन आदि लोग हर बार की तरह इस वर्ष भी महिलाओं के जुलूस को चारों तरफ से घेरे हुए उनकी सुरक्षा का मोर्चा संभाले हुए थे। उनका कहना था कि गांव के बुजुर्गों ने उनके समुदाय को जो मान दिया उससे दूसरे गांव के लोग भी प्रेरणा लेते रहे हैं।

गौरतलब है कि चुर्खी, महेबा, सिकरी रहमानपुर, खल्ला, खांकरी, नसीरपुर, गोरा, हथनौरा व अटरिया सहित दर्जनों गांव के लोग यहां के कजरी महोत्सव को देखने आते हैं। हालांकि इस बार बारिश की वजह से आमद कुछ फीकी थी। पूर्व प्रधान कौशल सिंह, रामदयाल, जेंटर सिंह, भगवान स्वरूप, वीर सिंह आदि मेला कमेटी के सदस्यों ने बताया कि कजरी लेकर प्राथमिक विद्यालय के मैदान में एकत्रित होने का महिलाओं से आह्वान करने का काम भी बाल्मीकि समुदाय के लोग ही ढोल बजाकर करते हैं। इसके बाद वे घर-घर महिलाओं को बुलाने भी जाते हैं। आज जुलूस में हमेशा की तरह आगे-आगे बैंडबाजे बज रहे थे। अपनी घोडिय़ों को नचाते चल रहे तुलसीराम पाल व लालमन प्रजापति जलालपुर का जलवा भी अलग ही नजर आ रहा था। पूरे विधि विधान के साथ भुजरिया तालाब में कजरियों का विसर्जन किया गया। दंगल भी आयोजित हुआ।

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