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सांसारिक ही हैं कृष्ण…

मुक्त विचार
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कृष्ण जन्माष्टमी बहुत नजदीक आ गई है। जब मैं कृष्ण के बारे में सोचता हूं तो मुझे किसी अन्य धार्मिक सभ्यता में इतने व्यवहारिक भगवान की कल्पना नजर नहीं आती। कृष्ण को पढ़कर यह जाना जा सकता है कि नैतिकता और न्याय का सम्बंध पाखंड से नहीं जीवन की सच्चाइयों से है। हालांकि, अभी भी यह तय नहीं हो पाया है कि कृष्ण एक मिथक हैं या सचमुच कोई कृष्ण हुए थे, लेकिन यह सवाल मेरे लिए बेमानी है। कृष्ण के चरित्र को दुनिया के सामने जिस रूप में रखा गया है उसमें वे नितांत मानवीय लगते हैं। कृष्ण ने बचपन से ही मूर्तिभंजक और क्रांतिकारी रवैए का परिचय दिया। उन्होंने कंस के राज्य के खिलाफ गोवर्धन की कंदराओं में गोकुल के लोगों को एकत्र कर गुरिल्ला युद्ध छेड़ा, जिससे मथुरा साम्राज्य को परास्त होना पड़ा। इस प्रसंग में सबसे महत्वपूर्ण बात है कि कृष्ण ने परिवर्तन के लिए स्त्री और पुरुष दोनों की सहभागिता को महत्वपूर्ण माना। कृष्ण के साथ ग्वाले थे तो गोपियां भी युद्ध अभियान में अपने तरीके से भूमिका निभा रही थीं। गोपियों के युद्ध कौशल का ही वर्तमान रूप बरसाने की लट्ठमार होली में नजर आता है। कृष्ण ने वीर बांकुरे, नीतिज्ञ का परिचय दिया तो वे उतने ही रागात्मक व्यक्तित्व के धनी भी दिखते हैं जो उनकी रासलीलाओं में व्यक्त होता है। कृष्ण अपनी दूरदृष्टि, अद्भुत सूझबूझ से एक गांव से शुरुआत करके हस्तिनापुर में सत्ता शिखर के केंद्र तक निर्णायक भूमिका में पहुंचे। उन्होंने अर्जुन के रथ को महाभारत के युद्ध में हांका, लेकिन बख्शा पांडवों को भी नहीं।
महाभारत युद्ध के समय की नैतिकता का विचित्र हाल था। कौरव तो जैसे थे वैसे थे ही पांडव भी कम नहीं थे, जिनकी दुनिया में वह व्यक्ति धर्मराज था जिसे द्यूत क्रीड़ा इतनी प्रिय थी कि अपनी अर्द्धांगिनी को भी उसने जुए के फड़ पर दांव लगाने में हिचक महसूस नहीं की। कृष्ण ने युद्ध में सारे कौरवों का नीति-अनीति हर तरह की युक्ति अपनाकर सफाया करा दिया, लेकिन इसके बाद पांडवों को भी ऐसा धिक्कारा कि वे हिमालय की चोटी पर जाकर बर्फ में समाधि लगाने को मजबूर हो गए। महाभारत कालीन नैतिकता में जिसने भी आंखें खोलीं कृष्ण ने उसे परिवर्तन की व्यवस्था में कोई जगह नहीं मिलने दी। कृष्ण ने ऐसा प्रबंध कराया कि अर्जुन पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह में मारे गए। पांडवों के दुधमुहे बेटों का संहार अश्वत्थामा कर गया। पारीक्षित जो नए वास्तविक नैतिक दौर की दुनिया का महाराजा पांडवों के उत्तराधिकारी के रूप में बना, वह युद्ध के समय मां की कोख से बाहर तक नहीं आया था।
कृष्ण के लिए लिखने को और चिंतन करने को बहुत है। उन्होंने हर उस वर्जना को तोड़ा जो प्राकृतिक नियम और न्यायपूर्ण साध्य के विरुद्ध थी। उन्हें समाज और धर्म के ठेकेदार ऐसे मूर्तिभंजन के लिए पापी ठहराते, लेकिन यह कृष्ण की महिमा थी कि उन्होंने अपने आपको ईश्वर के रूप में पूजित कराया। कृष्ण साहस देते हैं लकीर के फकीर न बनकर खुद सही लकीर की तलाश करने की। कृष्ण आत्मविश्वास जगाते हैं कि आपका संकल्प पवित्र है तो साधन कैसे भी हों आप दुनिया के पीछे न चलें। दुनिया फिर भी आपके पीछे चलेगी।

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