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इमरजेंसी के विरोध में भाकपा का देश में पहला प्रदर्शन

मुक्त विचार
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कैलाश पाठक।

कैलाश पाठक।

जालौन जिले के भाकपा नेता कामरेड कैलाश पाठक ने इमरजेंसी में जबरन नसबंदी का विरोध कर ताल ठोककर गिरफ्तारी दी जबकि उनकी पार्टी तत्कालीन कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रही थी। बंधुआ मजदूरी के खिलाफ भी उन्होंने सार्थक बिगुल बजाया। भाकपा के बुजुर्ग प्रांतीय नेता कामरेड कैलाश पाठक को उनकी संघर्षशीलता के कारण जालौन जिले में ‘बूढ़े शेर के सम्मान से नवाजा जाता है। इमरजेंसी में उनकी पार्टी सरकार के साथ थी जिसकी वजह से गैर कांग्रेसी दलों में अकेले भाकपा के ही नेता थे जिन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा रहा था। इस बीच जबरिया नसबंदी के मामले सामने आये लेकिन विरोध प्रदर्शन की आजादी पर पाबंदी होने के कारण कोई इसका प्रतिरोध करने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था। कैलाश पाठक को यह सहन नहीं हुआ और उन्होंने जबरिया नसबंदी के खिलाफ जन जागरण शुरू कर दिया।
26 दिसंबर 1976 की बात है उस दिन कैलाश पाठक शाम को किसी काम से डीएम से मिलने उनके बंगले पहुंचे। वर्तमान में कांग्रेस सांसद और अनुसूचित जाति जन जाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीएल पुनिया उस समय डीएम थे। उन्होंने कैलाश पाठक को मिलने के लिए भीतर तो बुला लिया लेकिन उनसे यह कहा कि ‘आप तत्काल यहां से चले जायें क्योंकि अभी अभी मैंने आपके मीसा वारंट पर दस्तखत किये हैं। मैं नहीं चाहता कि आप मेरे बंगले से गिरफ्तार हों। दूसरी ओर कामरेड पाठक ने उनकी बात मानने के बजाय कहा कि हम कायर लोग नहीं हैं, जब वारंट पर आपने दस्तखत कर ही दिये हैं तो मुझे तत्काल जेल भिजवायें। उनकी जिद पर पुलिस बुलाकर पुनिया ने उन्हें कोतवाली रवाना कर दिया। जाते-जाते कामरेड पाठक ने उनसे कहा कि 1 जनवरी से हमारे कार्यकर्ता हर रोज नारे लगाते हुए कोतवाली में लाल झंडा फहरायेंगे। आप और आपकी सरकार रोक सकें तो रोक लेना। कामरेड पाठक को कोतवाली जाते समय रास्ते में पार्टी के नेता लाल सिंह चौहान मिल गये। उन्होंने अपने पास उन्हें बुलाकर चुपके से कहा कि पार्टी के दफ्तर से सारा सामान हटा दो और कल मुझसे जेल में आकर मिलो। शाम को पार्टी के बजरिया स्थित दफ्तर पर भी छापा पड़ा, पुलिस ने आफिस इंचार्ज कमल सिंह को तलाशा लेकिन लाल सिंह चौहान ने तब तक उन्हें गायब कर दिया था। अगले दिन लाल सिंह जब जेल आये तो कामरेड पाठक ने उन्हें 1 जनवरी के कार्यक्रम के बारे में बताया। कहा कि कार्यकर्ताओं को संगठित कर तुम सभी को पहले जयहिंद टाकीज का मैटिनी शो दिखाना। सबकी जेब में लाल झंडे हों, लगाने के लिए बेशरम के डंडे पहले ही कोतवाली के पास सड़क किनारे फेंककर रखना। तीन बजे शो छूटते ही सोनकर वाली गली से सीधे कोतवाली में पहुंच कर हंगामा कर देना।
1 जनवरी 1977 को संभावित प्रदर्शन रोकने के लिए प्रमुख मार्गों पर पुलिस तैनात रही लेकिन सारे कामरेड गुरिल्ला शैली में कैलाश पाठक की बतायी योजना के अनुसार कोतवाली पहुंचने में सफल हो गये। उन्होंने कोतवाली के भीतर झंडे लहराते हुए तानाशाही मुर्दाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिये। यह देख प्रशासन और पुलिस बुरी तरह बौखला गयी। यह क्रम कई दिन चला जिसमें 90 लोग गिरफ्तार हुए। इससे मीसा का खौफ लोगों में जाता रहा। 7 महीने बाद जब इमरजेंसी समाप्ति की घोषणा हुयी तब कामरेड पाठक और उनके साथी जेल से छूटे। कामरेड पाठक ने इसके बावजूद मुलायम सिंह सरकार द्वारा घोषित लोकतंत्र सेनानी की पेंशन और सुविधायें लेना मंजूर नहीं किया। उनका कहना है कि जेपी का आंदोलन फासिस्टवादी था हम लोगों ने इस कारण इमरजेंसी लगाना सही माना लेकिन गिरफ्तार इसलिए हुए क्योंकि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की स्वतंत्रता पर रोक गवारा नहीं थी। कामरेड पाठक बताते हैं कि पार्टी से उनको कारण बताओ नोटिस भी जारी हुआ था लेकिन उन्होंने पार्टी नेतृत्व को अपने कदम के औचित्य के बारे में संतुष्टï कर लिया। देश भर में भाकपा कार्यकर्ताओं की इमरजेंसी में गिरफ्तारी का यह पहला मामला था। बाद में हमीरपुर और 2-3 अन्य जिलों में भी जबरिया नसबंदी के विरोध में कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किये।

बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया

1974 में बंधुआ मजदूर मुक्ति अभियान के तहत कामरेड पाठक ने ग्राम मुसमरिया में झंडा गाड़ा। इस दौरान उनकी पार्टी के कामरेड छुटकाई व रामदास ने बताया कि उनके परिवार के लोग एक जमींदार के यहां तीन पीढिय़ों से बंधुआ मजदूरी कर रहे हैं। वर्तमान पीढ़ी के बाबा ने लड़की की शादी में कर्ज लिया था जिसके एवज में वे लोग उनके पुश्तैनी गुलाम बन गये हैं। कैलाश पाठक ने जमींदार से कहा कि यह नहीं चलेगा। जो लोग आपके यहां काम कर रहे हैं उनकी मजदूरी तय करके हिसाब कर लो। इसके बाद उन मजदूरों की जहां इच्छा होगी वहां काम करेंगे। कामरेड पाठक का संघर्ष रंग लाया। प्रशासन ने जमींदार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दिया। इसके बाद ऐसी दहशत फैली कि बंधुआ मजदूरी कराने वाले जमींदारों ने अपने पुराने बही खाते जलाकर बेगारी करने वालों को स्वतंत्र कर दिया। कामरेड पाठक अभी तक एक सैकड़ा से अधिक विभिन्न आंदोलन में जेल जा चुके हैं। मेहनतकश जनता अपने अधिकारों की रक्षा के लिए उन्हें मजबूत रहनुमा मानती है।

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