(यह लेख भैरव गोसेवा समिति के सचिव और जैविक खेती आंदोलन के लिए समर्पित बाबा विश्वनाथ ने लिखा है)
जनपद जालौन गेहूं उत्पादन में अग्रणी भूमिका में है। मजदूरी की समस्या के कारण एक बड़े क्षेत्रफल में हार्वेस्टर से कटाई की जाती है जिसके कारण खेत में गेहूं के डंठल बने रहते हैं। अत: खेत में यदि पहली वर्षा के समय गोबर, गोमूत्र (देशी गाय) से बना जीवामृत छिड़क दिया जाये तथा खेत की जुताई कर दी जाये तो 15 फीट नीचे से केंचुआ ऊपर आकर अपना खाद्य पदार्थ खाकर भूमि को बलवान बनाते हैं क्योंकि फसलों में मृत शरीर के विघटन से ह्यïुमश बनता है। ह्युमश ही फसलों व पेड़-पौधों का खाद्य है अत: इस प्रकार भूमि बलवान बनाई जा सकती है। किसान की कोई लागत नहीं आती है इसलिये इसे जीरो बजट प्रकृति खेती पद्धति कहा जाता है। इस विधि से गेहूं के अवशेष डंठल को विशेष उपयोगी बनाया जा सकता है। यदि किसान अपने खेत के अवशेष डंठल को जलाता है तो वह एक बड़ा पाप कर्म करता है क्योंकि खेत में डंठल को जलाने के कारण भूमि के जीवांश का विनाश होता है। प्रकृति ने भूमि के साढ़े चार इंच ऊपरी पर्त में जीवांश के अथाह महासागर का निर्माण किया है। जो पूर्ण रूप से विनष्ट हो जाता है जिसके कारण भूमि मृत (बंजर) हो जाती है। आज भी किसान सुबह उठकर धरती माता के पैर छूता है। उसको अपनी मां मानता है लेकिन फिर भी उसको जलाने का कार्य करता है। प्रकृति भगवान का रूप है उसके विपरीत कार्य करने वाला भगवान के द्वारा दण्ड प्राप्त करता है अथवा प्रकृति उसको दण्ड देती है। प्रकृति ने एक व्यवस्था बनाई है कि जो फसल प्राप्त होती है उसका श्रेष्ठ दाना मनुष्य के उपयोग के लिये है। उसका खराब अन्न व उससे प्राप्त भूसा पशुओं के लिये तथा नीचे का भाग भूमि के लिये बनाया गया है, परंतु स्वार्थ में अपने भोग के साधन बढ़ाने के लिये वह प्रकृति द्वारा पशुओं के लिए दिए गए भूसे को भी कागज व ईंट भट्टा वालों को बेच देता है और अपने भोग के साधन बढ़ाता है जिससे वह प्रकृति का नियम भंग कर रहा है और कैंसर, डायबिटीज, हार्ट की बीमारी से बेमौत मर रहा है। जितने किसानों ने आत्महत्या की है उससे सौ गुना लोग इन बीमारियों से मर चुके हैं। प्रकृति का आरक्षण ही इन समस्याओं का हल है। अत: जीरो बजट खेती पद्धति अपनाने से ही प्रकृति का संरक्षण हो सकता है तथा विषमुक्त खाद्य पदार्थ लोगों को मिल सकते हैं जिससे मनुष्य पूर्ण स्वस्थ तथा शक्तिशाली जीवन जी सकता है। आज सरकारी स्तर पर कृषि विश्वविद्यालय व कृषि वैज्ञानिक हाईब्रिड बीज का प्रचार कर रहे हैं जबकि यह सिद्ध हो चुका है कि हाईब्रिड बीज से उत्पादित अनाज व अन्य खाद्य पदार्थ बीमारी बढ़ाने का काम करते हैं। यह कार्य विश्व व्यापार संगठन के दबाव में किया जा रहा है जिससे दवा कंपनियों का इजाफा हो रहा है। इस चक्रव्यूह में फंसाने का कार्य विदेशी षड्यंत्र है।
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