गांधीजी की कुटीर उद्योग पर आधारित अर्थव्यवस्था के समर्थकों के लिए यह जानकारी वैचारिक संजीवनी की तरह है कि उत्तर प्रदेश खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड में आजादी के तत्काल बाद इस मकसद से पंजीकृत होने वाली संस्था उत्तर प्रदेश के जनपद जालौन के कालपी में वजूद बचाए हुए है। यह संस्था देश में ही नहीं विदेश में हाथ कागज का निर्यात करती है। १९५४ में उत्तर प्रदेश खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड का गठन सूबे में आर्थिक क्षेत्र में बापू की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए किया गया था। इसी साल ३० अप्रैल को कागज कुटीर उद्योग कालपी का पंजीकरण किया गया, जिसका रजिस्ट्रेशन संख्या एक है। कालपी में गांधीजी की स्वदेशी विचारधारा को निजी से लेकर सार्वजनिक जीवन क्षेत्र में लागू करने वाले समर्पित कार्यकर्ताओं की टोली ने १९५१ में ही सहकारी समिति बनाकर हाथ कागज के कुटीर उद्योग को बुलंदी तक पहुंचाने में लग गए थे, लेकिन जब उत्तर प्रदेश खादी ग्रामोद्योग बोर्ड कालपी का गठन हुआ तो उनके इरादे को और मजबूती मिल गई। कालपी कागज कुटीर उद्योग का फटाफट रजिस्ट्रेशन इसी की देन रहा जिसके पहले अध्यक्ष राघवजी शर्मा हुए। उनके साथ लाला रामस्वरूप खद्दरी, पं. तुलसीराम वैद्य, देवेंद्र नाथ शर्मा जैसे दिग्गज व्यक्तित्व पदाधिकारी थे। कालपी के हस्त शिल्पियों द्वारा बिना मशीन की सहायता के बनाए जाने वाले कागज को सारे देश में पहचान दिलाकर कुटीर उद्योगों को सफलता के लिए संस्था ने जो मुकाम खड़ा किया उससे गांधीवादी अर्थव्यवस्था के औचित्य के लिए तर्क की मजबूत जमीन गढ़ी जा सकी। राघवजी शर्मा के पुत्र व संस्था के वर्तमान अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा उर्फ बबुआ बताते हैं कि संस्था की साख को देखते हुए इसके आधुनिकीकरण को खादी ग्रामोद्योग बोर्ड से १९६३ में ७० हजार रुपए का लोन मंजूर हुआ था, जो उस समय बहुत बड़ा फाइनेंस था। इस बीच अब दुनिया के तमाम देशों में कालपी के हाथ कागज के निर्यात की सम्भावनाओं के द्वार खुल रहे हैं तो नई अर्थव्यवस्था के अथाह समुद्र में भटकते गांधीवादी जहाज के लिए उप्र खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड में सर्वप्रथम रजिस्टर्ड यहां की ऐतिहासिक संस्था को लाइट पोस्ट कहा जाना गलत नहीं होगा।
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