सैदनगर में बुंदेलखंड भर की बैंगन नर्सरी अब उजाड़ पर है। 40 साल पुरानी गांव की साख को मुनाफे के लालच में कुछ ‘बागवानों’ ने बट्टा लगा दिया है। सिंचाई सुविधा की दृष्टिï से संकटग्रस्त जनपद जालौन के सैदनगर में किसानों ने हमेशा जिजीविषा का परिचय देकर चुनौतियों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया है। चार दशक पहले यहां के किसानों ने खेतों में कुएं खोदकर मिर्ची आदि सब्जी की खेती शुरू की जिससे उनकी आमदनी बढऩे लगी। स्वर्गीय अमान कुशवाहा, रामनारायण गुप्ता और मरहूम जलालुद्दीन खां उन दिनों राठ के पास धनौरी गांव में पौध लेने जाते थे। उन्हें लोगों ने सलाह दी कि सैदनगर के खेतों की पडुआ बजरीली मिट्टी बैंगन के लिए काफी मुफीद है। उनकी बात मानकर वे बैंगन के बीज भी लाये। तीनों ने अपने 5-5- बीघा खेतों में बैंगन की पौध तैयार की और इनके लिए बाजार तलाशा। इन पौधों की विशेषता थी कि यह काफी फलती थीं और इनका बैंगन स्वादिष्ट व पौष्टिक भी होता था। मध्य प्रदेश तक पूरे बुंदेलखंड में सैदनगर के बैंगन की पौधें छा गयीं।
हाल के वर्षों में माधौगढ़ के पास रामहेतपुरा में सैदनगर की बैंगन की पौधों ने इतना जलवा दिखाया कि जिले के वरिष्ठ अधिकारियों ने वहां पहुंचकर बैंगन किसानों के स्वयं सहायता समूह बनवाये और कानपुर की मंडी में सीधे इस बैंगन को पहुंचाने के लिए मेटाडोर क्रय की कार्य योजना बना दी। पर पिछले वर्ष सैदनगर में मुनाफे के लालच में बैंगन के ऐसे बीज लाये गये जिनसे घने झाड़ तो तैयार हो गये लेकिन इस गफलत में जो किसान झबरा पौधों को अपने यहां ले गये उन्हें माथा पीटकर रह जाना पड़ा। इन पौधों में नाम मात्र के फल लगे और स्वाद भी खराब रहा। इस वर्ष सैदनगर में बहुत कम लोग पौध खरीदने आये। कद्रदानों के मुंह मोड़ लेने से किसानों को भी उपज के लिए दूसरा रास्ता तलाशना पड़ रहा है।
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