समृद्धि की राह पर छोटे से रामहेतपुरा ने अपने कदम ऐसे ही नहीं बढ़ाये हैं। महिलाओं ने जिस तरह से हर अहम काम में जिम्मेदारी निभाई है उसके चलते हर घर की आर्थिक स्थिति सुधरी है और अब महिलायें यहां के बैंगन को भी बड़े बाजार तक ले जाने के साथ ही दुग्ध प्लांट भी लगाने का सपना बुन रही हैं।
सूखे के उपरांत कुछ ही समय में रामहेतपुरा में खुशियों की हरियाली खिलने की वजह जानने के लिये जब गहराई से यहां पर जानकारी की तब पता चला कि यहां कि महिलाओं ने जो अहम किरदार निभाया है उसके चलते यहां पर स्थिति में परिवर्तन हुआ है। महिलायें गृहस्थी का दायित्व निभाने के साथ ही खेती कर रही हैं। इसके अलावा अन्य उद्यम में भी ध्यान लगा रही हैं जिससे उनके घर की आर्थिक सेहत सुधरे। स्वयं सहायता समूह उनके लिये वरदान साबित हुये हैं जिससे उन्हें सामूहिक बचत में से खाद, बीज के साथ ही घर गृहस्थी के कामों के लिये जरूरत के मौके पर किफायती दरों पर ऋण मिल जाता है। इस ऋण को वे समय पर चुकाने के लिये भी फिक्रमंद रहती हैं ताकि समूह के अस्तित्व पर कोई संकट न आ सके। गांव में छह समूह काम कर रहे हैं। सबसे पहले बहन मायावती स्वयं सहायता समूह गठित हुआ और उसके बाद महिला विकास, संगम, मिलन, नारी शक्ति स्वयं सहायता समूह बने। हाल ही में जय माता स्वयं सहायता समूह भी गठित हुआ है। इन समूहों में 63 महिलायें जुड़ी हैं। हर समूह के पास कम से कम 20-20 हजार रुपये की पूंजी है। कुछ महिलायें पेशगी (बंटाई) पर खेती लेती हैं और उसको करवा रही हैं। एक महिला ने चूडिय़ों की दुकान के लिये भी स्वयं सहायता समूह से ऋण लिया। इन समूहों से जुड़ी ममता, कमला, विमला, पुष्पा, मनीषा, शशि ने बताया कि आर्थिक योगदान में उनके सहभागी होने की वजह से अब स्थिति यह है कि घर में कोई भी बड़ा फैसला उनकी राय के बगैर नहीं होता है। उनके लिये यह काफी सुखद है और वे गर्व के साथ इसका जिक्र करती हैं। वे चाहती हैं कि समूह में एक मिनी ट्रक आ जाये जिससे गांव का बैगन इटावा, कानपुर की मंडी तक पहुंच सके जिससे इसका और अच्छा दाम बाजार में मिले। जुहीका घाट का पुल बनने पर इटावा के लिये सीधा रास्ता भी जुड़ जायेगा। तब इस मिनी ट्रक की उपयोगिता होगी। गांव में बड़े पैमाने पर पशुपालन होने से दूध का भी व्यापार होता है। महिलाओं ने बताया कि अभी दूध की कीमत उन्हें महज 16-17 रुपये मिल रही है जबकि शहरों में दूध के दाम 30 रुपये को पार कर चुके हैं। इस कारण वे गांव में ही चिलर प्लांट लगवाना चाहती हैं जिससे उनका दूध सुरक्षित रहे और उसकी आपूर्ति शहरों तक करके लाभ कमाया जा सके या फिर अन्य दुग्ध उत्पादों को तैयार किया जा सके।
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