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आज भी उन शिक्षकों की कमी नहीं है जो बच्चों के माध्यम से देश का मुस्तकबिल चमकाने की कोशिश में पूरे समर्पण के साथ जुटे हुये हैं। यहां ऐसे दो उदाहरण दिये जा रहे हैं।
विमलेश तोमर
40 वर्षीय विमलेश तोमर गोहन के पास शहबाजपुर प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापिका हैं। वे हर रोज स्कूल समय से पहुंच जाती हैं यह कोई बड़ी बात नहीं है। जो बच्चा स्कूल नहीं आता दोपहर बाद वे उसकी कुशलक्षेम पूछने उसके घर पहुंचती हैं और इस बहाने अभिभावक पर नैतिक दबाव बनाती हैं कि वह अपने बच्चे को स्कूल भेजने में नागा न करें। नतीजा साफ है कि उनके स्कूल में बच्चों की अच्छी-खासी उपस्थिति रहती है। यही नहीं वे सुबह स्कूल के लिये निकलने से पहले ऊमरी नगर स्थित अपने घर पर मोहल्ले के उन बच्चों की क्लास लगाती हैं जो पढऩे में कमजोर हैं। इसकी कोई फीस नहीं लेतीं।
विमलेश तोमर की खुद की जिंदगी की कहानी भी जीवन संघर्ष की एक गाथा है। वे 20 वर्ष पहले शादी के दो वर्ष बाद ही विधवा हो गयी थीं। उन्हें ससुराल से लौट कर मायके आना पड़ा। तब हाईस्कूल पास थीं। इंटर, बीए करने के बाद डबल एमए किया और इसके बाद बीटीसी करके शिक्षक की नौकरी हासिल कर ली ताकि अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। उनके कोई संतान नहीं है। इस कारण सारे बच्चों को वे अपना मानती हैं और प्रयास कर रही हैं कि कोई बच्चा भले ही उसके अभिभावक साधनहीन हों अगर उसमें प्रतिभा है तो आगे बढऩे का मौका न खोए।
प्रहलाद नारायण शास्त्री
95 वर्ष के प्रहलाद नारायण शास्त्री शिक्षक की नौकरी से 1982 में रिटायर हो गये थे लेकिन उन्होंने अपने कर्तव्य से स्वयं को कभी रिटायर नहीं माना। बीते वर्ष तक वे रोजाना अपने घर पर लड़के-लड़कियों की संस्कृत पढ़ाने के लिये क्लास लगाते रहे। घर वालों ने उम्र का वास्ता देकर उन्हें रोका भी पर वे नहीं माने। हालांकि गत वर्ष बाथरूम में फिसल जाने से उनका कूल्हा टूट गया था इस कारण उन्हें मजबूरी में अपने दायित्व से अवकाश लेना पड़ा।
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