गांव के बाशिंदों को अपने ही गांव में आय, जाति, निवास प्रमाण पत्र, राशन कार्ड शुद्धीकरण और नये राशन कार्ड के लिए आवेदन, पेंशन आवेदन आदि सेवायें सुलभ कराने को जन सुविधा केंद्रों के संचालन की जिम्मेदारी निजी हाथों में सौंपने का तजुर्बा बेहद खराब है। नौ दिन चले अढ़ाई कोस की कहावत चरितार्थ करते हुए 4 सालों में भी यह सेवा सुचारु तरीके से शुरू नहीं हो पायी।
बुंदेलखंड के जालौन जनपद के 193 गांवों में यह केंद्र खुलने हैं जबकि संचालनकर्ता कंपनी दावा कुछ करे लेकिन सत्यापन रिपोर्ट बताती है कि मात्र 16 जनसेवा केंद्र चालू हो पाये हैं। अधिकारी कंपनी की कारगुजारी को लेकर मुंह नहीं खोलना चाहते जबकि कंपनी के प्रतिनिधि का दावा है कि अगले महीने तक सभी लक्षित केंद्र सेवायें प्रदान करना शुरू कर देंगे। जन सेवा केंद्र योजना के विफल होने का ही नतीजा है कि आय, जाति, निवास प्रमाण पत्रों के लिए एकल खिड़कियों पर भीड़ का तांता नहीं टूट रहा। 16 केंद्रों पर भी प्रतीकात्मक सेवायें ही दी जा सकी हैं। 2008 से यह योजना चल रही है। गांव के स्तर पर जिस सुविधादाता की नियुक्ति होनी है उसे ‘विलेज लेबिल इंटरप्रेन्यूर’ नाम दिया गया। मंशा यह थी कि इसमें सरकार सीधे बेरोजगारों को कमीशन के आधार पर नियुक्त करे लेकिन ऊपर के अधिकारियों ने सीएमएस नाम की एक निजी कंपनी को जिम्मा सौंप दिया। हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा हो जाये की तर्ज पर यह कंपनी बिना कोई लागत लगाये मुनाफा बटोर रही है। शुरू से ही कंपनी की कार्यप्रणाली विवादों के घेरे में रही है। उसने वीएलई बनने के इच्छुक युवकों से बिना अनुमति के 30 हजार रुपए वसूल लिये जबकि केंद्र पर उसी को अपने पैसे से कंप्यूटर की व्यवस्था करने को भी कहा गया। तत्कालीन कलेक्टर पी. गुरूप्रसाद को जब इस वसूली का पता चला तो उन्होंने एसआईआर की तैयारी कर दी। गनीमत यह रही कि अगले ही दिन उनका तबादला हो गया। इसके बाद मामला ठंडा करने के लिए कंपनी अंतर्ध्यान हो गयी। कंपनी के प्रतिनिधि मनोज कुमार सिंह 30 हजार रुपए जमा कराने की बात स्वीकार करते हैं। उनका कहना है कि 10-12 को छोड़कर सभी का पैसा वापस किया जा चुका है। अब 5 हजार रुपए डिपोजिट और 5618 रुपए रजिस्ट्रेशन के लिए जा रहे हैं। उनके मुताबिक यह वसूली वैध है। 197 केंद्र खुलने हैं जिनके लिए शुरूआत में 142 वीएलई नियुक्त करने की सूचना दी गयी थी। बाद में कंपनी 79 स्थानों पर ही व्यवस्था होने की बात कहने पर उतर आयी। जिलाधिकारी मनीषा त्रिघाटिया ने उसकी सूची का सत्यापन कराया तो हैरत में डालने वाली हकीकत उजागर हुयी। 79 में से 58 लोगों ने बताया कि उनके केंद्र पर कंप्यूटर ही नहीं है। 78 वीएलई के पास लैड लाइन नंबर ही नहीं है तो सवाल यह है कि वे कनेक्ट कैसे करते हैं। 48 ने बताया कि उनके पास प्रिंटर नहीं है। बहरहाल प्रशासन की गाज से बचाने के लिए कंपनी ने अब बुनियादी व्यवस्था शुरू की है। मनोज कुमार सिंह ने बताया कि आन लाइन होने के लिए लैंड लाइन की जरूरत नहीं है क्योंकि हर केंद्र पर वायरलैस आधारित बाईमैक्स सुविधा से कनेक्शन कराया जा रहा है। दावा किया कि 36 सेंटर एक्टीवेट हो चुके हैं। अन्य प्रोसेस में हैं। अगले महीने तक उम्मीद है कि सभी 193 केंद्र शुरू हो जायेंगे। जिला सूचना अधिकारी से कंपनी की मनमानी कार्य प्रणाली को लेकर बात करनी चाही तो वे बोले एडीएम नोडल अधिकारी हैं वही जानकारी देंगे। अपर जिलाधिकारी ने यह तो माना कि कंपनी की कार्य प्रगति संतोषजनक नहीं है लेकिन बोले कि जल्दी ही समीक्षा होगी तब वस्तुस्थिति पता चलेगी। इस योजना की दूसरी पोल यह है कि जिन विभागों की सेवायें इससे जोड़ी गयी हैं उन विभागों में सरकार ने अपने खर्चे पर कंप्यूटर, टेबिल, कनेक्शन आदि तो उपलब्ध करा दिये हैं लेकिन आपरेटर नहीं हैं। जब महिला कल्याण विभाग में जब भ्रमण किया तो बताया कि कंप्यूटर आपरेट करने वाला कोई व्यक्ति न होने की वजह से सारी व्यवस्थायें शो पीस बनी हुयी हैं। जिलाधिकारी मनीषा त्रिघाटिया ने बताया कि कंपनी ने वीएलई को सही ट्रेनिंग तक नहीं दी है जिससे उनके द्वारा आय, जाति, निवास प्रमाण पत्र बनवाने के अधूरे आवेदन फीड किये जा रहे हैं। सूचना विज्ञान अधिकारी को उन्हें अंतिम चेतावनी देने के लिए कहा गया है। वीएलई को आवेदन फीड करने के लिए कोई शुल्क लेने का अधिकार नहीं है लेकिन इस तरह के आरोप सामने आ रहे हैं। अगर किसी ने लिखित शिकायत की तो एफआईआर दर्ज करायी जायेगी।
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