सरकार शिक्षा के नाम पर अरबों रुपए खर्च करने का दावा करती है परंतु स्थिति क्या हो रही है। इसका नजारा परिषदीय स्कूलों में साफ नजर आता है। शिक्षा की जो दशा है उसे देखकर इतना ही कहा जा सकता है कि अगर इनके भरोसे ही बच्चों का भविष्य गढ़ा जा रहा है तब भविष्य कैसा होगा? कुछ विद्यालयों में पहुंचकर जब इस व्यवस्था को परखा तो हकीकत सामने आई है वही प्रस्तुत कर रहा हूं।
जनपद जालौन के कालपी के प्राथमिक विद्यालय टरननगंज में जब जाकर देखा तो प्रधानाध्यापक नदारत थे। बताया गया कि वे नये भवन के निर्माण की साइट पर हैं। 98 बच्चों में 17-18 मौजूद मिले। मिड-डे-मील के नाम पर तहरी बनी थी। आग्रह पर सहायक अध्यापक ने पांचवीं की बालिका रजनी को खड़ा किया। उससे 18 का पहाड़ा पढ़वाया तो 18 दूनी कितने इसी पर अटक गयी। इसी कक्षा का मुशीर मुवीन 17 का पहाड़ा केवल सत्रह तिया इक्यावन तक पढ़ पाया। किताब पढ़वायी तो पता चला कि उसे ठीक से अक्षरज्ञान तक नहीं है। कक्षा 3 की आशिका 6 का पहाड़ा नहीं पढ़ पायी। यहीं के प्राथमिक विद्यालय हरीगंज के प्रधानाध्यापक के पास राजघाट के स्कूल का भी चार्ज है। पता चला कि जब कोई राजघाट पहुंचता है तो बताया जाता है कि मास्टर जी हरीगंज में हैं और हरीगंज के स्कूल में पूछने पर राजघाट में बता दिये जाते हैं। यहां पर सिर्फ शिक्षामित्र पढ़ाती मिलीं। पांचवीं कक्षा के अवधेश से 17 का पहाड़ा पढऩे को कहा गया तो कुछ ही देर में अटक गया। बालिका वर्षा ने 19 का पहाड़ा अधूरा ही बता पाया। कक्षा 4 के अध्ययनरत अखिलेश नाम के बालक ने जरूर पहाड़ा फटाफट पढ़ दिया लेकिन उसकी उम्र ज्यादा लग रही थी। सबसे बड़ी बात यह है कि इस स्कूल का अपना कोई भवन नहीं है। 40 साल से काली माता मंदिर में कक्षाएं लगवायी जा रही हैं। एबीएसए ने बताया कि स्कूल के निर्माण के लिए नगर पालिका ने जितनी बार जगह प्रस्तावित की जमीन का विवाद पैदा हो जाने से काम नहीं लगाया जा सका। कालपी नगर के 7 विद्यालयों में सभी में कमोवेश यही हालत है। इंचार्ज अध्यापक सरकारी कार्यों में व्यस्त रहने के कारण पढ़ा नहीं पाते। ज्यादातर स्कूल शिक्षामित्र के सहारे चल रहे हैं। अपवाद कन्या प्राथमिक पाठशाला टरननगंज है जहां पूर्व शिक्षामित्र की मृत्यु हो जाने से स्थान खाली है। सारा दारोमदार अध्यापक पर ही है।
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