दंपति बने भागीरथ, बंजर बीहड़ में हो रहा मैथा गन्ना
मुक्त विचार
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55 वर्षीया राजकुमारी बौद्ध का जीवट उन लोगों के लिए मिसाल है जो अपनी गरीबी को कोसते हैं लेकिन मेहनत से मुंह चुराने से बाज नहीं आते। राजकुमारी ने अपने पति स्वर्गीय रामप्रकाश के साथ आज से लगभग 30 वर्ष पहले जनपद जालौन में रामपुरा के बीहड़ की कगारों के बीच फैले अपने ऊबड़ खाबड़ खेतों को समतल करने की ठानी तो लोग उनका मजाक उड़ाते थे लेकिन यह दंपति 12 वर्ष तक अपनी भागीरथी धुन में अकेले ही जुटे रहे। उन्होंने न केवल खेत समतल किये बल्कि कुआं खोद कर पंपिंग सेट से सिंचाई की व्यवस्था भी कर ली। जहां कभी अनाज का एक दाना पैदा करने के भी लाले थे वहां अब गन्ना व मैथा लहलहा रहा है।
राजकुमारी बौद्ध हालांकि अब कस्बे में रहने लगी हैं लेकिन 1980 में वे पति रामप्रकाश बौद्ध के साथ अपने गांव मई में ही रहती थीं जो धुर बीहड़ में बसा है। उन दिनों तंगहाली के दिन थे लेकिन फाकाकशी करने के बावजूद पति पत्नी की हिम्मत पस्त नहीं हुयी। एक दिन दोनों ने आपस में सलाह मशविरा किया और तय कर लिया कि बीहड़ में अपनी खेती करेंगे जो बंजर पड़ी थी। गांव के अन्य लोगों ने ही नहीं परिवार वालों तक ने उनका मजाक बनाया लेकिन यह दंपति अपने निश्चय से नहीं डिगी। पति के साथ राजकुमारी ने भी चूडिय़ां उतार कर हाथों में फावड़ा थाम लिया। दोनों लगे बीहड़ को समतल करने में महीनों गुजरते गये लेकिन ऊबने की बजाय दंपति में असंभव को संभव कर दुनिया से अपना लोहा मनवाने की जिद बढ़ती गयी।
खेत ठीक हुए तो बीहड़ में सिंचाई के लिए पानी कहां से आये यह समस्या सामने मुंह बाये खड़ी थी। इसके बाद पति पत्नी जुट पड़े वहीं कुआं खोदने में। कार्य सिद्ध होने पर गांव वालों और परिवार के लोगों की नजरें उनके प्रति बदल गयीं। वे लोग खिल्ली उड़ाने की बजाय उनकी मेहनत को सराहने में कोई कंजूसी नहीं कर पा रहे थे। उनकी हौसला अफजाई के लिए अंग्रेजों के समय का गैनको इंजन किसी ने उन्हें गिफ्ट कर दिया जिससे लिफ्ट होकर खेतों में पानी की धार फसल के लिए अमृत बनकर बहने लगी। अब हालत यह है कि ज्यादा पानी में तैयार होने वाली गन्ने और मैथा की फसल भी पिछले सीजन में यहां खूब हुयी है। यही नहीं इन्हीं खेतों पर आम, जामुन, नीबू, अमरूद जैसे फलदार वृक्षों के साथ-साथ सागौन के वृक्ष भी खड़े झूम रहे हैं। राजकुमारी नाती पोते वाली हो गयी हैं सो रामपुरा में रहकर उनकी परवरिश संभालती हैं जबकि खेती का मोर्चा अब उनके बेटे संभाले हैं।
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