दो महीने से ज्यादा से समय से नये हैंडपंपों पर रोक लगी है। ठप हो चुके हैंडपंप भी रीबोर नहीं कराये जा सकते। हैंडपंपों की कमी से गांवों में पानी भरने को लेकर आये दिन झगड़ों की नौबत बनी रहती है। गनीमत है कि बड़ा फसाद नहीं हुआ लेकिन सरकार को शायद इसका इंतजार है तभी इस बंदिश को हटाने का फैसला हो पायेगा। जालौन जिले में 25 हजार से ज्यादा हैंडपंप अधिष्ठापित हैं। यह संख्या आबादी के सापेक्ष जरूरत के मानक से ज्यादा है लेकिन इनमें बड़ी संख्या में हैंडपंप चालू नहीं हैं। चालू हैंडपंपों की वास्तविक संख्या काफी कम होने की वजह से हर गांव में एक-एक हैंडपंप पर भीड़ टूटती रहती है। उन गांवों में हालत ज्यादा खराब रहती है जहां तालाब नहीं है। मवेशियों के लिए भी हैंडपंप से ही पानी खींचकर उनकी प्यास बुझाने की व्यवस्था करनी पड़ती है। इसमें मशक्कत भी भारी होती है और समय ज्यादा लगता है। ऐसे में जल्द पानी भरने की होड़ से रोजाना तू-तू-मैं-मैं होना आम बात है। कई बार हाथापाई भी हो जाती है। हालांकि थाने में मुकदमा दर्ज नहीं होते क्योंकि पुलिस जिन घटनाओं में खून खराबा न हो उनमें सभी पक्षों को चुप करा देती है। जल निगम के अधिशाषी अभियंता गिरीश कुमार ने बताया कि राज्य सरकार ने जिले में 900 नये हैंडपंप स्थापित करने का लक्ष्य वर्तमान वित्तीय वर्ष में तय किया था। इसके अलावा लगभग 1 हजार हैंडपंप रीबोर होने थे। 20 सितंबर तक 264 ही नये हैंडपंप लग पाये थे जबकि रीबोर 589 हुए। 22 सितंबर को अचानक राज्य सरकार ने नये हैंडपंपों के अधिष्ठापन व ठप पड़े हैंडपंपों के रीबोर पर रोक लगा दी। इसका कारण और औचित्य भी नहीं बताया जा रहा। पेयजल साधनों की कमी गहराने से लोगों में शासन, प्रशासन के प्रति गुस्सा गहरा रहा है।
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