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पानी लाईं महिला भगीरथ, रोका गांव से पलायन

मुक्त विचार
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कुए में पंपिंग सेट लगाकर खेत सींचने की व्यवस्था करने वाली सीता देवी।
कुए में पंपिंग सेट लगाकर खेत सींचने की व्यवस्था करने वाली सीता देवी।

इस वर्ष के नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित यूरोपीय यूनियन की प्रेरणा से चल रहे पानी पर महिलाओं की प्रथम हकदारी के अभियान ने न केवल जिले में जल संकट को दूर कर घर-घर में स्वच्छ पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की है बल्कि दुर्गम गांवों में जीविका के वैकल्पिक अवसर सृजित कर पलायन से हो रहे उजाड़ को भी थाम दिया है।

जालौन जनपद के जिला मुख्यालय से ६५ किलोमीटर दूर रामपुरा ब्लाक के किशुनपुरा गांव में जहां ऊबड़-खाबड़ रास्ते के कारण जिला मुख्यालय से जीप से भी तीन-चार घंटे पहुंचने में लग जाते हैं उक्त अभियान के तहत गठित पानी पंचायतों ने महिलाओं को जागरूक कर न सिर्फ उनके आत्मविश्वास को बुलंद किया है बल्कि उनमें सार्वजनिक कार्यों के लिये दूरदर्शिता का विकास कर उन्हें बाहरी दुनिया में सक्षम भूमिका निभाने के लिये पुरुषों से ज्यादा सक्षम बना दिया है।

घर की लिपाई-पुताई के लिए मिट्टी खोदने से बने गड्ढे को तालाब में परिवर्तित करने का संकल्प लेने वाली मंगला देवी।
घर की लिपाई-पुताई के लिए मिट्टी खोदने से बने गड्ढे को तालाब में परिवर्तित करने का संकल्प लेने वाली मंगला देवी।

मंगल सिंह की पत्नी सीता देवी इसका उदाहरण हैं जिनकी खेती सिंचाई का साधन न होने से सूखा पड़ जाने के बाद बंजर हो रही थी। वे और उनके आसपास के परिवार मजबूरी में हर साल गांव से कई महीने के लिये सूरत चले जाते थे जहां पानी पूड़ी का धंधा करते थे ताकि साल भर की रोजी रोटी की व्यवस्था हो सके। पानी पंचायत से जुड़ीं तो उनमें गृहस्थी से लेकर खेतीबारी तक को लेकर नयी सूझ पैदा हुयी। उनके विचारों का समर्थन करते हुये परमार्थ संस्था ने उनके खेतों पर कुंआ खुदवा दिया और पंपिंग सेट उन्होंने सभी प्रभावित परिवारों की महिलाओं को संगठन से जोड़कर चंदे से खरीदा। आज उनके खेतों में दोहरी फसल हो रही है। यही नहीं वे सब्जी की पैदावार भी कर रही हैं जिससे उनके दिन बदल गये हैं। सारे पलायित परिवार अब अंत भला सो सब भला कहते गांव लौट आये हैं।

गांव में पहला हैंडपंप लगवाने वाली सुशीला।
गांव में पहला हैंडपंप लगवाने वाली सुशीला।

तेजतर्रार होने से मंगला को संगठन में जल सहेली बनाया गया है। पंचायत में आने वाले विशेषज्ञों की बात सुनकर उन्होंने मात्र तीन बीघा असिंचित खेती होने से भुखमरी के कगार पर खड़े अपने परिवार की खुशहाली के लिये स्वर्ण जयंती ग्राम स्व रोजगार योजना से सहायता लेकर भैंस और बकरी पालन शुरू किया। उनके पास तीन भैंसें हो गयी हैं। दूधिया २२ रुपये लीटर में गांव आकर ही दूध ले जाता है जिससे वे बेहद उत्साहित हैं लेकिन हैंडपंप से खींचकर मवेशियों को पानी पिलाते-पिलाते परेशान हैं। गांव में कोई तालाब नहीं है और अब उन्होंने पहल की है। जिस जगह से गांव की महिलायें घर की लिपाई-पुताई के लिये मिट्टी खोदती थीं वहां हुये चौड़े गड्ढे को तालाब का रूप देने के लिये वे अन्य महिलाओं के साथ प्रधान पर चढ़ाई किये हुये हैं। प्रधान भी महिलाओं के तेवर देखकर समझ चुके हैं कि अब टालमटोल नहीं कर पायेंगे। पानी पंचायत को सचिव सुशीला देवी तो गांव के लिये भगीरथ की तरह हैं। ग्वालियर से ब्याह कर जब गांव में आयी थीं तो सोचती थीं कि कहां फंस गयी। घर के अंदर नहाने वाली महिला को जब ३ किलोमीटर पैदल चलकर नदी पहुंचकर खुले में नहाना पड़ा़ तो संकोच के मारे हालत कई सालों तक बहुत बुरी रही। हैंडपंप लगाने की गुजारिश की तो पहले पति व अन्य घर वालों ने नहीं सुनी। इसके बाद उन्होंने खुद मोर्चा संभाला। ब्लाक के अधिकारियों और एसडीएम की नाक में दम कर दिया। रोज-रोज महिलायें घेराव प्रदर्शन के लिये अधिकारियों के यहां पहुंचने लगीं तो आखिर में पहला हैंडपंप गोविंद के घर के सामने लगाने की मंजूरी हुयी। अब गांव में पर्याप्त हैंडपंप हो गये हैं। न किसी को नहाने और कपड़े धोने नदी जाने की जरूरत है न पुराने कुंओं का गंदा, कीड़ा-मकोड़े वाला पानी खींचकर पीने की।

९७ गांवों में गठित हो चुकी पानी पंचायतें

यूरोपीय यूनियन ने महिला पानी पंचायत परियोजना के तहत बुंदेलखंड के तीन जिले जालौन, ललितपुर व हमीरपुर शामिल किये हैं। परियोजना का क्रियान्वयन कर रही स्वयं सेवी संस्था परमार्थ के सचिव संजय सिंह ने बताया कि जालौन जिले के ९७ गांवों में महिला पानी पंचायतें गठित हो चुकी हैं। जिले में लगभग २० हजार लोग प्रत्यक्ष और १ लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप से इससे लाभान्वित हैं।

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