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आधुनिक बाजार में लोक संस्कृति का सिक्का

मुक्त विचार
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डॉ. वीणा श्रीवास्तव।
डॉ. वीणा श्रीवास्तव।

बुंदेलखंड की लोक संस्कृति लालित्य, माधुर्य और रागात्मकता के कारण कई मामलों में विशिष्ट है। फिर भी इसके लिए अस्तित्व की समस्या अनुभव की जा रही है। १९९७ में देश की राजधानी दिल्ली में बुंदेली लोकोत्सव का विराट आयोजन करने वालीं डॉ. वीणा श्रीवास्तव हाल में चित्रकूट में हुए लोकोत्सव में भाग लेकर लौटीं तो उन्होंने बहुत ही व्यथा के साथ अपनी यह चिंता मुझसे साझा की। उन्होंने बताया कि गोपालभाई उनके पितृतुल्य हैं और लोकजीवन की मौलिकता बनाये रखने के उद्देश्य के प्रति उनका समर्पण बेजोड़ है। प्रतिवर्ष चित्रकूट में लोकोत्सव के आयोजन के दौरान वे एक गांव बसा देते हैं। संस्कृति प्रेमी कुलीन और अनगढ़ लोक कलाकारों का पंगत से लेकर हर स्तर का विभेद रहित साहचर्य विभोर कर देता है। इस आयोजन के लिए कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती पर अब कलाप्रेमी धनाढ्य वर्ग में भी उदारता का गुण समाप्त होता जा रहा है। इस तरह के आयोजन की व्यवस्था के लिए योगदान जुटाने में उन्हें इतनी मुश्किल हुई कि निराशा के साथ समापन के अवसर पर उन्होंने कहा कि शायद यहां लोक कलाकारों का उनके द्वारा आयोजित होने वाला यह समागम अंतिम है।

यह वृहद मशीनों द्वारा थोक उत्पादन का युग है। इस डायनासोर ने हर क्षेत्र में विविधता को हजम कर एकरूपता कायम करने की ऐसी प्रचंड बयार बहा दी है कि मनुष्य की विलक्षणता मशीनों के आगे पानी मांग रही है। हालांकि, मनुष्य कितना भी शक्तिशाली हो जाए प्रकृति के नियमों और चरित्र को वह नहीं बदल सकता। कभी-कभी लगता है कि प्रकृति ऋजुरेखीय न होकर वर्तुलाकार होती है। एक चक्र पूरा कर प्रकृति प्रवृत्ति के स्तर पर फिर अपने प्रस्थान बिंदु पर ही लौट आती है। जहां लोग लोक संस्कृति की बेहतर मार्केटिंग कर पा रहे हैं वहां प्रत्यक्ष रूप में “प्रकृति की” की यह प्रकृति दिखाई भी दे रही है। पंजाब का भागड़ा और गुजरात का डांडिया सांस्कृतिक बाजार में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ब्रांड के रूप में छाया हुआ है जो इसका ज्वलंत उदाहरण है। भोजपुरी ने बॉलीवुड के बादशाहों को जबर्दस्त चुनौती पेश कर प्रकृति की इस फितरत में आस्था बनाए रखने के लिए हम सबको विवश कर दिया है।

डॉ. वीणा श्रीवास्तव मूल रूप से बुंदेलखंड की न होते हुए भी १९८४ में वातायन नामक एक संस्था स्थापित करके जब बुंदेली संस्कृति की सेवा के लिए प्रवृत्त हुईं तो इसमें इतनी लीन होती चली गईं कि आज उसके प्रति निष्ठा का आलम यह है कि वे इसमें बाजार के एक सीमा से ज्यादा हस्तक्षेप को लेकर बेहद सतर्क नजर आती हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृतिकरण और आधुनिकता के नाम पर बाजार को लोक संस्कृति में एक सीमा से ज्यादा छेड़छाड़ की अनुमति नहीं दी जा सकती। अगर लोक ही नहीं रहा तो लोक संस्कृति की स्वतंत्र पहचान का अर्थ फिर क्या रह जाएगा।

डॉ. वीणा श्रीवास्तव की भावना का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन व्यवहारिक वास्तविकताओं से मुंह नहीं चुराया जा सकता। बुंदेली लोक परम्पराओं को जीवित रखने के लिए बाजार में उनके अस्तित्व को मजबूत किया जाना अपरिहार्य शर्त है। बुंदेली लोक संस्कृति में वह शक्ति है कि अगर बाजार में इसे सही तरह से स्थापित करने का प्रयास किया जाये तो यह भी भोजपुरी की तरह सारी दुनिया में धूम मचा देगी। तब यहां के बुजुर्ग लोक कलाकारों से फाग गायन और दिवारी नृत्य जैसी उनकी विरासत को आगे बढ़ाने में नई पीढ़ी शरमाएगी नहीं बल्कि इस दाय को अपने को समृद्ध बनाने के लिए सबसे मूल्यवान पूंजी संसाधन के रूप में स्वीकार करेगी। यह काम डॉ. वीणा श्रीवास्तव ही कर सकती हैं। लोक संस्कृति के प्रति सम्पन्नता के शिखर पर बैठे महानगरीय भद्र समाज में कौतूहल और आकर्षण है। विडम्बना यह है कि बिग बॉस जैसे टेलीविजन कार्यक्रमों के माध्यम से सीमा परिहार जैसों के जरिये बाजार की इस मांग को भुलाया जा रहा है। जब खोटा सिक्का चल सकता है तो खरा सिक्का तो पता नहीं क्या कमाल दिखा दे।

डॉ. वीणा श्रीवास्तव की पांच पुस्तकें बहुत ही प्रतिष्ठित प्रकाशनों के माध्यम से बाजार में आ चुकी हैं, जिससे इसकी भूमिका तैयार हुई है। चित्रकूट के लोकोत्सव में उनकी पुस्तक “भारतीय लोक संगीत” का विमोचन हुआ है। इसके फ्लैप में उन्होंने लिखा है लोक जागरण की प्राचीन परम्परा को अक्षुण्य बनाए रखने एवं उत्तरोत्तर विकास के क्रम को सतत प्रवाह देने वाली सांस्कृतिक समृद्धि का पर्याय हमारी लोक विधाओं ने जहां एक ओर सामाजिक एकता को एक सूत्र में बांधे रखने का प्रयास किया है वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय अखंडता की रचनात्मक शक्ति के संरक्षण, संवर्धन के अभाव में लोक विधायें दिन-प्रतिदिन उपेक्षाओं का शिकार होती जा रही हैं। क्षणिक उत्तेजना प्रकट करने वाले पाश्चात्य संगीत के सामने हजारों वर्ष की प्राचीन लोक विधाएं दम तोड़ती नजर आ रही हैं। डॉ. वीणा श्रीवास्तव की लोक संस्कृति के लिए यह तड़प उन्हें उम्मीदों का सशक्त केंद्रबिंदु बना देती है। इसी कारण डॉ. वीणा श्रीवास्तव के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं व्यक्त की जानीं चाहिए।

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