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गांवों के खेल अभियान के साथ हो गया खेल

मुक्त विचार
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पंचायत युवा क्रीड़ा अभियान (पायका) से गांवों में खेलकूद को बढ़ावा देने का सपना सरकार और विभाग की कारगुजारी से टूट रहा है। अभी तक 113 ग्राम पंचायतों का चयन इस योजना में हो चुका है लेकिन स्वयं प्रभारी युवा कल्याण एवं खेलकूद अधिकारी राजेश बघेल स्वीकार करते हैं कि आधा दर्जन पंचायतों में भी पायका का संचालन हो रहा हो तो गनीमत है। उन्होंने कई ब्लाक अधिकारियों का वेतन भी रोका लेकिन तो भी सुधार नहीं हो सका। अब जिलाधिकारी ने स्वयं इसकी समीक्षा का फैसला लिया है।
खेलकूद में देश की बुरी हालत के कारण ओलंपिक में हर बार भारत की भद पिट जाती है जिसको देखते हुए 2008-09 में पायका अभियान की घोषणा की गयी ताकि गांव-गांव में खेलकूद के माहौल को बढ़ावा मिले और गुदड़ी में छिपे खेल क्षेत्र के तमाम लाल उनमें से निकालकर ओलंपिक भेजे जा सकें। पहली गड़बड़ी तो यह हुई कि केंद्र सरकार ने 2 साल बजट ही जारी नहीं किया। जालौन जिले में 2010-11 में 62 लाख रुपए का बजट आया जिसमें 57 चयनित ग्राम पंचायतों में प्रत्येक को 1-1 लाख रुपए खेल मैदान तैयार करने, खेल उपकरण की खरीद व क्रीड़ाश्री के मानदेय भुगतान के लिए दिये गये। इस वर्ष 56 ग्राम पंचायतों का चयन हुआ है जिनमें से आधी पंचायतों के लिए 50-50 हजार रुपए की पहली किश्त सितंबर में आवंटित हुयी। गत 2 नवंबर को 24 लाख रुपए का बजट फिर मिला है लेकिन शासनादेश में यह स्पष्टï नहीं किया गया है कि इससे उक्त ग्राम पंचायतों को दूसरी किश्त दी जाये या अवशेष ग्राम पंचायतों को पहली किश्त भेजनी होगी। वर्तमान वित्तीय वर्ष में चयनित ग्राम पंचायतों में तो पायका धरातल पर आने का सवाल ही नहीं उठता, बीते वित्तीय वर्ष की पंचायतों में भी केवल सामान की खरीद हुयी है, मैदान तक तैयार नहीं किये गये।

कई पंचायतों ने जो जगह ली वह ऊबड़-खाबड़ थी। उन्होंने विभाग से समतलीकरण का बजट मांगा तो विभाग ने डीआरडीए को पत्र लिखा कि यह कार्य मनरेगा से कराने के लिए प्रधानों को निर्देशित किया जाये लेकिन कोई फैसला नहीं हुआ। जहां जगह नहीं मिली वहां इंटर कालेज या जूनियर हाईस्कूल के खेल मैदान के उपयोग की छूट दे दी गयी। इन जगहों पर कुछ दिनों खिलाड़ी प्रैक्टिस के लिए आये लेकिन 500 रुपए मात्र के महीने के मानदेय पर क्रीड़ाश्री लोगों को ड्यूटी बजाना गवारा नहीं हुआ इसलिए अब वहां भी योजना पर ताला पड़ चुका है।

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