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चांदी के वर्क की नक्काशी, ऊपर सोने का चांद

मुक्त विचार
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कोटरा में तैयार होने वाले ताजिया की नक्काशी।
कोटरा में तैयार होने वाले ताजिया की नक्काशी।

जालौन जनपद के कस्बा कोटरा के ताजिये पूरे जिले में प्रसिद्ध हैं। छोटे-बड़े 20 ताजिये कोटरा कस्बे में बनते हैं लेकिन मियांपुरा व नारोघाट के 70-70 फुट ऊंचे ताजियों की भव्यता कुछ अलग ही है। दोनों के हर ताजिये के निर्माण पर पांच लाख रुपए में ज्यादा का खर्चा होता है। चांदी की पन्नियों की नक्काशी और शिखर पर सोने का चांद इन ताजियों की विशेषता है।
उक्त कस्बे में ताजिये बनाने की परंपरा दसियों वर्ष पुरानी है। मियांपुरा का ताजिया मास्टर कल्लू, शकूर हाजी व शम्मी और नारो घाट का ताजिया अली मुहम्मद और रईस चक्की वाले की देखरेख में हुनरमंद कारीगर बनाते हैं। नौरइया मोहल्ला, मुगलियाना घाट व निहारिया मोहल्ले के ताजिये भी मशहूर हैं। इनका जुलूस पंचम पीर के मैदान से होता हुआ इलाहाबाद बैंक शाखा के सामने से करबला तक पहुंचता है जहां अखाड़े में लाठी और तलवारबाजी के रोमांचक करतब देखने को मिलते हैं। कस्बे के अल्पसंख्यक समुदाय के लगभग 100 परिवार सूरत में व्यवसाय करने लगे हैं।

मोहर्रम में एक सप्ताह की छुट्टी लेकर यह अपने घर आते हैं और ताजिया निर्माण में इनका ही मुख्य योगदान होता है। कई हिंदू परिवार भी इसमें सहयोग देते हैं। मियांपुरा और नारोघाट के ताजिये ज्यादा ऊंचे होने के कारण देर रात में कस्बे के बाहर से निकाले जाते हैं। पहले यह रास्ता काफी दुर्गम था जिससे दर्जनों लोगों को बार-बार कंधा बदलना पड़ता था लेकिन अब रास्ता समतल कराकर काफी कुछ ठीक ठाक करा दिया गया है। सपा के नगर अध्यक्ष महेंद्र सिंह यादव, आशू, कैलाश यादव आदि भी ताजिया जुलूस की तैयारी में मुस्लिम भाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लगे रहे।

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