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बिना नाप लिये सिल गयीं बच्चों की ड्रेसें

मुक्त विचार
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जालौन जनपद में रामपुरा विकास खंड के ग्राम टीहर के पूर्व माध्यमिक विद्यालय में बबीता कक्षा 6 में पढ़ती है। उसे 2 नि:शुल्क ड्रेस सरकारी योजना के तहत मिलनी थीं लेकिन एक ही दी गयी। उसके पिता मानसिंह बताते हैं कि यही नहीं ड्रेस की सिलाई भी एक ही दिन में खुल गयी।
यह मामला इकलौता नहीं है। परिषदीय स्कूलों के बच्चों को ड्रेस वितरण में जमकर धांधली हुयी है। कपड़ा अलग लेने और इसके बाद उसे हर बच्चे की नाप कराकर टेलर से सिलवाने की बजायरामपुरा विकासखंड के विद्यालयों में 28, 30 व 32 नंबर की थोक सप्लाई ले ली गयी और कपड़ों की खरीद के कोटेशन व टेलर के बिल फर्जी लगा दिये गये। गड़बडिय़ों की शिकायतें जिलाधिकारी तक भी पहुंचीं। उन्होंने 32 टीमें सभी विद्यालयों में सत्यापन के लिए गठित की हैं। प्रत्येक टीम में एक जिला स्तरीय अधिकारी को शामिल किया गया है। जिलाधिकारी मनीषा त्रिघाटिया ने पूछने पर बताया कि अभी सत्यापन रिपोर्ट नहीं मिली है। इनके मिल जाने के बाद जहां गड़बड़ी की पुष्टि होगी कार्रवाई की जायेगी।
महेबा ब्लाक के 40 प्रतिशत विद्यालयों में अभी तक ड्रेस वितरण नहीं हुआ है जिनमें प्राथमिक विद्यालय पडऱी, हर्रायपुर, पूर्व माध्यमिक विद्यालय मुसमरिया, कन्या प्राथमिक विद्यालय मुसमरिया, मगरौल आदि शामिल हैं। खंड शिक्षाधिकारी सर्वेश कुमार कठेरिया ने बताया कि बजट देरी से मिलने के कारण ड्रेस तैयार करने की प्रक्रिया अब पूरी की जा रही है।
जिला बेसिक शिक्षा कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि 1 लाख 49 हजार 950 बच्चों को ड्रेस वितरण के लिए 5 करोड़ 99 लाख 80 हजार रुपए का बजट निदेशालय से जिले में भेजा गया था। अभी तक विद्यालयों के लिए 5 करोड़ 43 लाख 92 हजार 800 रुपए का बजट जारी हो चुका है। इस बजट से 1 लाख 35 हजार 962 बच्चे लाभान्वित होंगे। गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले वे अभिभावक जिनके नाम बीपीएल सूची से छूटे हुए हैं उनके 29096 बच्चे लाभान्वित करने के लिए सूचीबद्ध किये गये थे पर बजट अभी तक 19069 बच्चों का ही आया है। 10032 बच्चों के लिए बजट आने की प्रतीक्षा है।
बेसिक शिक्षा विभाग के सूत्रों का कहना है कि शासन से बजट निर्गत करने में आपाधापी की स्थिति रही जो गड़बडिय़ों की मुख्य वजह है। पहले आदेश आया कि 2 अक्टूबर तक ड्रेस वितरण करा दिया जाये जबकि बजट 20 अक्टूबर को भेजा गया। 10 नवंबर तक यह बजट स्कूल के खातों में पहुंच सका। इसके बाद एक सप्ताह में वितरण कराना था। जाहिर है कि इतनी कम अवधि में कोटेशन, टेंडर मंगाने की प्रक्रिया संभव नहीं थी। 100 के लगभग स्कूल ऐसे हैं जिनमें बैंकों की लापरवाही के कारण अभी तक धन पहुंचा ही नहीं है।

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