क्षय रोग हर वर्ष कई जिंदगियों को लील रहा है। डॉट्स के माध्यम से इस पर काबू पाने की रणनीति भी अब इसके बैक्टीरिया ने कुतर दी है। इस कारण अब एमडीआर के माध्यम से रोगियों का इलाज लखनऊ में कराया जाएगा। फिलहाल वहां व्यवस्था होने तक जिले के रोगियों को झांसी मेडिकल कॉलेज में उपचारित किया जाएगा। असल में जो दवाएं अभी क्षय रोगियों को डॉट्स के माध्यम से दी जा रही हैं वे पूरी तरह असरकारक नहीं हो रही हैं। 12 प्रतिशत रोगी ठीक नहीं हो रहे जबकि इनके कारण तीन प्रतिशत नये मरीज बढ़ रहे हैं। इस कारण मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस (एमडीआर) पद्धति को अपनाया जा रहा है। इस पद्धति में एक मरीज के इलाज पर एक लाख रुपए से अधिक का खर्च आयेगा। शायद यही कारण रहा कि इतने खर्च के चलते सरकार इसे अपनाने से परहेज करती रही परंतु रोग के बढ़ते असर की वजह से अब इसे अपनाया जा रहा है। इसके लिए लखनऊ के केजीएमसी (किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज) में डॉटप्लस साइट खोली जा रही है। इसमें मरीज को 15 दिन विशेषज्ञ चिकित्सकों की निगरानी में रखा जाएगा चूंकि एमडीआर के कई साइड इफैक्ट होते हैं इस कारण वे पूरी जांच के बाद जब आश्वस्त हो जाएंगे कि अब कोई खतरा नहीं तब मरीज को उसके गांव-शहर भेज दिया जाएगा और दवाएं तय कर दी जाएंगी। पहले ऐसे मरीजों के बलगम का कल्चर तैयार करके केजीएमसी भेजा जाएगा और वहां 48 घंटे के अंदर इसका परीक्षण कर रोगग्रस्तता की पुष्टि कराई जायेगी। हालांकि, लखनऊ में व्यवस्था होने में कुछ समय लगेगा इस कारण झांसी मेडिकल कॉलेज में मरीजों को भेजा जाएगा। डॉट्स केंद्रों के माध्यम से क्षय रोगियों का जो इलाज सरकारी स्तर पर हो रहा है उसमें जालौन जिला मॉडल माना जा सकता है। जितने क्षय रोगी हैं उसमें आमतौर पर 40 फीसदी सरकारी अस्पतालों और 60 फीसदी निजी स्तर पर इलाज कराते हैं परंतु जालौन जिले में स्थिति जुदा है। जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. आरके अंबष्ट ने बताया कि जिले कुल क्षय रोगियों में 73 फीसदी इस समय डॉट्स के माध्यम से इलाज करा रहे हैं। क्षय रोग पर नियंत्रण के लिए अब निक्षय के नाम से नया सॉफ्टवेयर ईजाद किया गया है। यह हर क्षय रोगी को रोगमुक्त करवाने में बड़ी भूमिका निभाएगा। डॉट्स में काफी प्रयासों के बावजूद मरीज कई बार दवा समय पर नहीं खा पाते हैं। इस कारण बैक्टीरिया पुन: सक्रिय होकर उन्हें रोगमुक्त नहीं होने देता। इसके निराकरण के लिये यह सॉफ्टवेयर बनाया गया है। इसमें रोगी नाम, पता, फोटो के साथ ही रोग के बारे में भी पूरी जानकारी उपलब्ध रहेगी। ऐसे में वह कहीं भी चला जाए वहां के अस्पताल में उसके लिए दवा उपलब्ध कराने में कोई दिक्कत नहीं होगी तथा जो दवा उसके इलाज में चल रही है वही उसको उपलब्ध कराई जाएगी। जालौन जिले में इस समय उरई, जालौन, कोंच और कालपी में क्षय रोग नियंत्रण केंद्र चल रहे हैं। इसके साथ ही डॉट्स के तहत 18 माइक्रोस्कोपिक सेंटर चल रहे हैं। यहां पर संदिग्ध रोगियों का परीक्षण किया जाता है। इसके साथ ही 612 केंद्रों पर रोगियों को दवा वितरित की जा रही है। इसमें आशा कार्यकत्री, आंगनबाड़ी कार्यकत्री और निजी डाक्टर भी शामिल हैं। इनको मरीज के रोगमुक्त होने पर 50 रुपए प्रदान किए जाते हैं।
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