स्वच्छ पर्यावरण में ईश्वर का वास होता है इस सूक्ति पर विश्वास करते हुए एक किसान ने आध्यात्मिक राह में कदम बढ़ाते हुए उस उजाड़ टीले को अपनी अटूट तपस्या से हरा भरा बना दिया जहां एक दशक पहले दबकुशी (कटीली जंगली घास) के अलावा कुछ नहीं होता था। जहां चलते हुए लोगों के पैर लहूलुहान हो जाते थे।
60 वर्षीय बाबा रामप्रकाश की पत्नी का 1992 में निधन हो गया। इसके बाद उनके यहां जबर्दस्त पारिवारिक कलह पैदा हुआ जिसका तनाव झेलते झेलते वे पस्त हो गये। इस अनुभव से उनके मन में वैराग्य पैदा हुआ तो उन्होंने बीहड़ में टीले पर बने देवस्थान छुंदा बाबा पर ठिकाना जमा लिया। तब रात में वहां इतना भयानक वातावरण रहता था कि उनके अलावा कोई ठहरने को तैयार नहीं होता था। यह देख लोगों को सुंदर पर्यावरण के माध्यम से ईश्वर की झलक दिखाने का जज्बा बाबा रामप्रकाश के अंदर जागा। बंजर टीला होने से उनका अरमान पूरा होना शुरू में असंभव लग रहा था पर वे तो निश्चय ठान चुके थे।
उन्होंने हर वर्ष 25 पौधे लगाने का संकल्प लिया। टीला के नीचे एक छोटा कुआं था जिससे पौधे सींचने के लिए एक-एक बाल्टी वे कई फिट ऊंचाई चढ़कर ले जाते थे। आम ग्रामीण तो उनके इस जीवट को देखकर श्रद्धा से अभिभूत हो गये लेकिन कुछ विघ्न संतोषी भी थे जो उनके पीछे पड़ गये। उन्होंने कई बार उनकी बगिया में आग लगा दी और उद्दंडता की फिर भी वे नहीं डिगे। ऐसे लोगों की साजिश से बचाने के साथ-साथ पेड़ों की जंगली जानवरों से भी सुरक्षा उन्हें करनी पड़ी जिसके लिए उन्होंने चारों तरफ झाडिय़ों की बाड़ बना दी।
अब उनके द्वारा रोपे गये पौधे वृक्ष का रूप लेने लगे हैं। उस उजाड़ जगह नीम, लभेड़ा, छौंकरा, आम, बेलपत्र, नीबू, करौंदा, बांस, शहतूत, गूलर, जामुन आदि का घना उद्यान तैयार हो चुका है। उनकी तपस्या से प्रभावित होकर सिंचाई के लिए न केवल विधायक निधि से हैंडपंप लगाने में मदद की गयी बल्कि अब उसमें सबमर्सिबल पंप भी लग गया है। टूटी झोपड़ी की बजाय अब वहां श्रद्धालुओं के सहयोग से पक्का मंदिर स्थापित हो चुका है जहां न केवल दिन में बल्कि रात में भी भीड़ बनी रहती है। बाबा रामप्रसाद सही मायने में जंगल में मंगल को चरितार्थ कर रहे हैं।
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