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नदी माता को बचाने का संकल्प ठाना

मुक्त विचार
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रवींद्र सिंह।
रवींद्र सिंह।

नदी माता को बचाने के लिए मैदान में कूदे पूर्व प्रधान रवींद्र सिंह के साथ क्षेत्र के अगुआकारों की लामबंदी बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ वर्षों से सदानीरा स्थानीय नदी नून के प्रवाह को बीच-बीच में रोककर बनाये गये चेकडैमों का दुष्परिणाम यह है कि 2007 के सूखे के बाद इसके अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न नजर आने लगा था। रवींद्र सिंह अपनी मुहिम के तहत नये चेकडैमों के निर्माण का विरोध करने में लगे हैं।

लगभग 70 गांवों के लिए जीवन रेखा मानी जाने वाली नून नदी कई बरसाती नालों के मिलन से बनती है। ग्राम गोरा से यह नदी शेखपुरा गुढ़ा के पास जमुना मैया में अपने को समाहित कर देती है। जालौन जनपद के महेबा ब्लाक को पहले डार्कजोन में माना जाता रहा है जिसकी वजह से यहां नलकूपों से लेकर हैंडपंप लगवाने तक में शुरू में परहेज बरता गया। उस समय तटवर्ती सारे गांवों की पानी संबंधी आवश्यकतायें नून से ही पूरी होती थीं। नहाना, कपड़ा धोना व मवेशियों को पानी पिलाने का काम तो होता ही था पेयजल के रूप में भी नून के पानी का इस्तेमाल होता था क्योंकि इसका पानी बेहद स्वच्छ और शुद्ध है। इस नदी की फितरत यह रही कि गर्मियों में भी इसकी जलराशि नहीं सूखती थी।

इस बीच सिंचाई के लिए नदी के जल समेट क्षेत्र में जगह-जगह चेकडैम बनवाने की योजना क्रियान्वित की गयी। इससे सिल्ट जमा होने के कारण नून को भरने वाले झरने मुंदने लगे। 2008 में जब यह नदी सूखी तो 80 वर्ष से ऊपर की उम्र के बुजुर्गों का कहना था कि यह उनकी जिंदगी में पहली बार हुआ है जो किसी भीषण अनिष्ट का सूचक है। दूसरी ओर ब्लाक प्रधान संघ के तत्कालीन अध्यक्ष रवींद्र सिंह जैसे युवाओं में नदी सूखने के असली कारणों को समाप्त करने का जज्बा घुमडऩे लगा। उन्होंने चेकडैम बनाने की बजाय निजी साधनों से जल संरक्षण कर सिंचाई का विकल्प लोगों के सामने तजबीज किया और इसे अमली रूप देते हुए अपने परिवार की 18 एकड़ ऊबड़ खाबड़ खेती की सिंचाई के लिए 150 मीटर लंबा और तीन मीटर ऊंचा बंधा खुद के खर्चे से बनाया। इसमें उन्होंने तीन आउटलेट बनाये हैं। गर्मियों में जब तलहटी में बने अंतिम आउटलेट को खोलकर वे पूरा पानी निकाल देते हैं तब भी इसमें नमी बनी रहती है। बंधा के पानी से ही वे पलेवा करते हैं और इसी से पंपिंग सेट के जरिये सिंचाई।

जिन खेतों में कभी अरहर और चना के अलावा कुछ पैदा नहीं होता था उनमें वे और उनके अन्य परिवारी जन गेहूं की फसल काटने लगे हैं। ‘हाथ कंगन को आरसी क्या…’ की तर्ज पर खुद मिसाल बनकर उन्होंने दूसरे किसानों में भी अपनी राह पर चलने का आत्मविश्वास पैदा किया है। रवींद्र सिंह के साथ खल्ला, सतरहजू, गोरा कला, पिपरौंधा, टिकौली, पिथऊपुर, हथनौरा आदि के पुराने साथी यानी पूर्व प्रधान भी जुट पड़े हैं। इनके निशाने पर फिलहाल लघु सिंचाई विभाग के माध्यम से स्वीकृत आधा दर्जन से अधिक चेकडैम परियोजनायें हैं। उनका कहना है कि वे इन पर कार्य शुरू नहीं होने देंगे।

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