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हिंग्लिश का प्रयोग अन्य भारतीय भाषाओं में नहीं

मुक्त विचार
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हिंग्लिश का प्रयोग अन्य भारतीय भाषाओं में नहीं
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित डा.रामशंकर द्विवेदी का कहना है कि बाजार की आड़ में विज्ञान, पत्रकारिता व अन्य क्षेत्रों में हिंग्लिश को मान्यता दी जा रही है जिसे वे उचित नहीं मानते। किसी अन्य भारतीय भाषा के लोगों में ऐसे प्रयोग की स्वीकार्यता सम्भव नहीं है क्योंकि उनकी दृष्टि में यह उनकी भाषा को भ्रष्ट करने का अपराध है।
बांग्ला के चोटी के लेखकों के साहित्य का हिन्दी में अनुवाद करने के लिये विशेष रूप से ख्याति प्राप्त डा.रामशंकर द्विवेदी का तमाम भारतीय भाषाओं से गहरा परिचय है। उनका कहना है कि हिन्दी सशक्त और व्यापक शब्दावली वाली भाषा है। जिससे उसे सम्प्रेषण के लिये किसी दूसरी भाषा का सहारा लेने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि विज्ञान व चिकित्सा जैसे विषयों पर भी हिन्दी में ग्राह्यï रचनायें लिखी जा सकती हैं। बशर्ते लेखक ऐसा हो जिसका शब्द और वाक्य विन्यास पर पूरा अधिकार हो। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह सरकार के समय कर्मचारियों ने जो हड़ताल की थी उसका प्रतिवाद करने के लिये संस्कृति सचिव के रूप में अशोक बाजपेयी ने धारदार विज्ञापन लिखे। जब यह हृदयग्राही विज्ञापन समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए तो कर्मचारी आन्दोलन की हवा निकल गयी। उन्होंने भाषा के मामले में पश्चिमी बंगाल की स्थिति का जिक्र किया। बताया कि वहां न केवल विज्ञापन बांग्ला में होते हैं बल्कि बांग्ला के साहित्यिक व्यक्तित्व वहां सबसे बड़े ब्रांड एम्बेसडर हैं। बांग्ला में प्रकाशित एक पुस्तक का हवाला उन्होंने चर्चा में दिया जिसका शीर्षक है रवीन्द्र नाथ टैगोर और विज्ञापन। इसमें गुरुदेव को कितने विज्ञापनों में माध्यम बनाया गया। इसका रुचिकर उल्लेख है। कुछ वर्ष पहले पश्चिम बंगाल में एक खाद्य तेल कम्पनी ने जो विज्ञापन प्रकाशित कराया था उसमें बांग्ला साहित्य के पुरोधा सुनील गंगोपाध्याय का चित्र व वक्तव्य शामिल था। यह विज्ञापन अत्यन्त लोकप्रिय साबित हुआ। हिन्दी फिल्मों में संवाद और गीत कुशल लेखकों कवियों के बजाय फूहड़ और तुकबन्दी करने वाले लेखकों से लिखवाये जा रहे हैं जिससे मातृ भाषा की गरिमा खराब हो रही है। स्वर्गीय मनोहर श्याम जोशी ने कहा था कि हिन्दी बाजारू नहीं बाजार की भाषा है। इस शब्द को बाजार की शक्तियां स्वीकार नहीं करना चाहतीं।
सरकारी खरीद के लिये छपती हिन्दी में पुस्तकेें
प्रतिष्ठित प्रकाशनों से छपी डा.रामशंकर द्विवेदी की अभी तक 32 पुस्तकेें बाजार में आ चुकी हैं। हिन्दी प्रकाशकों की मानसिकता को लेकर उनका कहना है कि वे सरकारी खरीद के लिये पुस्तक छापते हैं जिसमें उन्हें कमीशन देना पड़ता है। नतीजतन किताब की कीमत बहुत ज्यादा हो जाती है और ऐसी हालत में पुस्तकेें आम पाठकों की पहुंच से बाहर होकर पुस्तकालयों में डंप हो जाती हैं। दूसरी ओर बांग्ला के प्रकाशक अपने पाठकों के लिये किताब छापते हैं जिससे बांग्ला साहित्य अपेक्षाकृत सस्ता होता है।

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