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अवैध खनन को और बढ़ावा, नये हंथकंडे ईजाद

मुक्त विचार
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दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन के बाद अवैध खनन का मामला पूरे प्रदेश में सुर्खियों में छाया है। बेतवा में खनन की अवैध कारगुजारी पहले से ही वेलगाम ढंग से चल रही है। भले ही राज्य सरकार फिलहाल अब कुछ दिनों के लिये खनन के मामले में अपना दामन बचाने के प्रयास में लग जाये लेकिन जालौन जिले में प्रशासन पर इसका कोई असर नहीं दिख रहा है। अवैध बालू खनन को बढ़ावा देने के लिये लखनऊ से लेकर यहां तक नये-नये हथकंडे ईजाद किये जा रहे हैं। इसके चलते सरकार को करोड़ों रुपये की रायल्टी का नुकसान तो हर महीनें झेलना ही पड़ रहा है। इससे ज्यादा बड़ा और स्थाई नुकसान समाज के लिये बुंदेलखंड की जीवनदायिनी नदी कही जानी वाली बेतवा के अस्तित्व के समाप्त होने के खतरे के रुप में नजर आ रहा है।
पिछले कुछ वर्षों से खनन का व्यवसाय माफियागीरी के नये पहलू के रूप में सामने आया है। दूसरी ओर इससे पर्यावरण पर घातक चोट हो रही है। एक जनहित याचिका में इसकी गंभीरता को संज्ञान में लेते हुये उच्चतम न्यायालय ने खनन के संबंध में कड़े दिशा निर्देश जारी किये थे। इसके अनुरूप रा्ज्य सरकार ने नये नियमावली तो बना दी लेकिन नेताओं को मोटी कमाई का चोर दरवाजा बंद करना गवारा नहीं हो रहा है। जिसकी वजह से पहले दिन से ही इसका तोड़ ढूंढने की मशक्कत शुरु हो गई थी। जालौन जिले में बेतवा के किनारे ३९ खनन क्षेत्र चिन्हित हैं जिनमें नये नियमों की जटिलता की वजह से केवल १३ क विधिवत पट्टे हो पाये हैं हालांकि सभी क्षेत्रों में उच्चतम न्यायालय की आंखों में धूल झोंक कर खनन कराया जा रहा है। जिससे सरकारी खजाने में रायल्टी जमा करने की जरूरत भी नहीं पड़ती। भंडारण अनुज्ञा की नई परिपाटी बना कर इसे अंजाम दिया जा रहा है। क्या है भंडारण अनुज्ञा
यह एक नई व्यवस्था है जिसमें अनुज्ञापी पट्टे धारक से जितनी घनमीटर बालू खरीदता है उस पर जारी रायल्टी की पर्ची एमएम ११ खनिज विभाग में जमा करके प्रपत्र सी प्राप्त किया जा सकता है। जिस पर विक्रय के लिये बालू का पार गमन मान्य है। जालौन जिले में कुछ ही महीनों में भंडारण अनुज्ञा के १३ आवेदन स्वीकृत किये गये हैं। इसकी आड़ में अनुज्ञापी खाली खंडों में खनन कराकर बालू निकालते हैं निकासी को वैध बनाने के लिये बेरियर पर जमा होने वाली एमएम ११ की पर्चियां इकट्ठी कर खनिज विभाग को सौंप दी जाती हैं इन पर्चियों पर प्रपत्र सी जारी हो जाते हैं इस तरह रायल्टी की एक ही पर्ची से कितनी ही बार बालू की निकासी की जा सकती है। साथ ही इससे उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का पालन किये बिना बालू खनन का रास्ता खुल गया है। हालांकि खनिज अधिकारी पीके सिंह ने सफाई देते हुये कहा कि भंडारण अनुज्ञापी को खनन करने की छूट बिल्कुल नहीं है भंडारण अनुज्ञा मात्र ६ माह की अवधि की होती है और केवल १० से २० हजार घनमीटर बालू ही इस पर भंडारित की जा सकती है। लेकिन यह निर्देश कागजी हैं हर कोई जनता है कि खनिज अधिकारी की मिलीभगत स डंप लाइसेंसी जमकर खनन करवा रहे हैं यहां तक कि नदी तट पर बालू नहीं बची तो जलधारा के बीच से मशीनों के जरिये खनन करके नदी को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। भेड़ी घाट पर पोकलैंड ठीक करने गये दो इंजीनियरों के २७ जुलाई से लापता होने से मशीनों के जरिये खनन की कहानी खुलकर सामने आ गई है। यहीं नहीं जिलाधिकारी के आदेश के बावजूद लाइसेंसी द्वारा चंदरसी, सिमिरिया व टीकर में हो रहे अवैध खनन की जांच के लिये खनिज अधिकारी ने मौके पर जाना जरुरी नहीं समझा। खनिज अधिकारी खुलेआम मुख्यमंत्री के परिजनों का नाम लेकर अवैध खनन रोकने में लाचार होने का नाटक जताते हैं।
बालू व्यापार में सोने की बारिश बालू खनन के व्यापार में एक तरह से सोना बरसता है जिसकी वजह है इसमें टैक्स चोरी की जबर्दस्त गुंजाइश। वित्तीय वर्ष २०१३-१४ में खनन रायल्टी से जिले को १९ करोड़ रुपये की राजस्व उगाही का लक्ष्य दिया गया है। जबकि यह बहुत कम है क्योंकि जितना खनन हो रहा है उसकी रायल्टी ईमानदारी से जमा करायी जाये तो सरकार के खजाने में कम से कम एक अरब रुपये पहुंचने चाहिये। कम खनन होने के कारण ही जिला प्रशासन लक्ष्य से तीन प्रतिशत अधिक उगाही का अभी तक दावा कर अपनी पीठ थपथपा रहा है। दूसरी ओर एक ट्रक के लिये रायल्टी ९ घनमीटर की जमा कराई जाती है जबकि १८-२० घनमीटर बालू भरी जाती है। यही कारण है कि एक ट्रक के लिये डेढ़ हजार रुपये रायल्टी देकर कम से कम १२ हजार रुपये वसूले जाते हैं। हमाम में सभी नंगे सत्ता पक्ष से लेकर विपक्षी नेता तक सभी बालू क हमाम में नंगे हैं। विपक्षी नेता पहले अवैध खनन के खिलाफ आंदोलन चलते हैं और अदालत का दरवाजा खटखटाने की डींगे हांकते हैं लेकिन इसके बाद रहस्यमय ढंग से चुप्पी साध जाते हैं। दरअसल सौदेबाजी के लिये विरोध प्रदर्शन का नाटक किया जाता है। जिससे उक्त मुकाम पर पहुंचकर आंदोलन का दमतोड़ देना स्वाभाविक है। प्रतिवाद की गुंजाइश खत्म हो जाने की वजह से ही निरंकुश खनन को और ज्यादा बढ़ावा मिला है। लेकिन भाकपा माले जैसी पार्टियां अब इस मुद्दे पर संघर्ष का निर्णायक बिगुल बजाने को कमर कस रही हैं। कामरेड केएस राणा ने कहा कि वे अंर्तदेशीय जनहित याचिका के माध्यम से उच्चतम न्यायालय को खनन मामले में सरकार व प्रशासन द्वारा उसके निर्देशों की अवमानना के बारे में अवगत करायेंगे। साथ ही सड़कों पर भी इसके लिये संघर्ष छेड़ा जायेगा। आम आदमी पार्टी के जिला मंत्री प्रभात निगम ने भी कहा कि बेतवा का अस्तित्व बचाने के लिये अवैध खनन रोकने की आर-पार की लड़ाई लड़ी जायेगी।

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