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मनमोहन की खोखली शुभेच्छा

मुक्त विचार
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प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिह ने आगामी सरकार मंे राहुल गांधी के नेतृत्व में काम करने की इच्छा जताई है। लेकिन यह फलीभूत कैसे हो क्योंकि काग्रेंस अगले चुनाव में बहुमत के आंकड़े से बहुत पीछे खिसकती नजर आ रही है। इलेक्ट्रानिक चैनलों के सर्वे में तीसरे मोर्चे की सरकार बनने और मुलायम सिंह के प्रधानमंत्री होने की जो स्थिति दिखाई जा रही है वह वास्तविकता के भी काफी करीब है। इसी एहसास की वजह से मुलायम सिंह ने सोनिया गांधी और राहुल के खिलाफ उम्मीदवार न उतारने के पिछले चुनाव के व्रत को भंग कर देने का इरादा जता डाला है। चूंकि अमेठी और रायबरेली में काग्रंेस अस्तित्व के संकट से गुजर रही है। जिसके कारण उन्हें अपने घर मंे ही दयनीय हालत में घेरकर मुलायम सिंह मुसलमानों को यह संदेश देना चाहते हैं कि जब काग्रंेस के कर्णधार ही शिकस्त खाने की स्थिति में हैं तो इस पार्टी के लिए वोट बर्वाद क्यों करना चाहते हैं।
काग्रेस की दुर्दशा सोनिया गांधी के बीमारी के चलते दृश्य से हट जाने जैसी स्थितियों की वजह से हो रही है। सोनिया गांधी ने जब काग्रेंस का नेतृत्व संभाला था उस समय पार्टी की हालत बुरी तरह जर्जर हो चुकी थी। उन्होंने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए पार्टी के लिए नये सामाजिक आधार का रास्ता तलाशा जिसके तहत संगठन के 52 फीसदी पद अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यक व महिलाओं के लिए आरक्षित करने की घोषणा उन्होंने की। मानव विकास सूचकांक के आधार पर पार्टी के मुख्यमंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड जांचने की व्यवस्था बनाई। उन्होंने अपने पति राजीव गांधी से रही रंजिश को भुलाकर सामाजिक न्याय के मामले में वीपी सिंह का अनुकरण शुरू किया और उनके कई सहयोगियों को अपने साथ जोड़ा। स्पष्ट है कि सोनिया गांधी के पास एक विजन था और संघर्षशील व्यक्तित्व भी जिसकी बदौलत उन्होंने काग्रेस को आखिरकार फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया। दूसरी ओर उनके सुपुत्र और बुजुर्ग युवा राहुल गांधी भावावेश मंे जोशीले भाषण करके फिर महीनों के लिए लुप्त हो जाने की अपनी आदत से लोगों को पूरी तरह निराश कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव के बाद पार्टी के काफी बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद पार्टी को बंधक रखने पर आमादा पुराने काग्रेंसियों द्वारा प्रायोजित मीडिया के दुष्प्रचार से पीडि़त होकर वे जब डिप्रेशन में चले गये तो जन मानस में उनकी संघर्ष क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लग गया। सोनिया गांधी में बीमार होने की वजह से पहले की तरह काम करने की क्षमता नहीं रह गई है और उनका यह निकम्मा बेटा पार्टी को सही तरीके से चलाने का बोझा कतई नहीं ढो पा रहा है। काग्रेेंस पार्टी की उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में उत्तरजीविता के लिए वर्तमान में पहली शर्त यह है कि मुसलमान उसके साथ पूरी तरह जुड़ें और सोनिया गांधी ने राजनीति में अपने अवतरण के तत्काल बाद सलमान खुर्शीद को यहां काग्रेेंस की बागडोर सौपकर इस जरूरत को पूरा किया था। मुसलमान जब काग्रेंस की संजीवनी बने तो ब्राह्मणों मंे भी अपने पुराने घर के लिए लगाव जागा था और एक मजबूत गोलबंदी से काग्रेंस अन्य जातियो को भी अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाव हुई थी। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के प्रभारी रहते हुए भी दिग्विजय सिंह इसी रणनीति के तहत विवादित बयान देने का सिलसिला बनाये हुए थे जिससे मुलायम सिंह या और मुसलमान वोटरों का बटवारा नहीं कर पा रहे थे लेकिन दिग्विजय सिंह को हटाकर काग्रेंस ने अपने पैरों पर देश मंे सर्वाधिक लोकसभा सीटों वाले प्रदेश में कुल्हाड़ी मार ली है। एक बड़ा बाबू उत्तर प्रदेश मंे काग्रेंस का संगठन दूसरी पार्टियों को बेच चुका है। मुलायम सिंह और भाजपा मिलकर जो खेल खेल रहे हैं उसमें मुसलमान सपा की झोली में तो ब्राह्मण बसपा सहित सभी दूसरे दलों का मोह छोड़कर एकतरफा भाजपा की ओर उन्मुख हो रहे हैं। इस जद्दोजहद में बडे़ बाबू व उसकी टीम के नेताओं द्वारा कोई मौलिक स्टेण्ड न अपनाये जाने की वजह से काग्रेंस किसी की सगी नहीं हो पा रही है। जाहिर है कि काग्रेंस उत्तर प्रदेश में दहाई के आंकड़े पर भी पहुंच जाये तो बड़ी गनीमत है। दूसरी ओर भाजपा भी अपने को मोदी के सहारे कितना भी आगे ले जाये लेकिन उसका गठबंधन सत्ता से तो काफी पीछे रहेगा ही। मोदी भाजपा के लिए कहीं ऐक्सीलेटर हैं तो कहीं बड़े ब्रेकर भी हैं। ऐसे में तीसरे मोर्चे के किसी अंधे के हाथ में बटेर लगने की संभावना से इन्कार करना खुद को मुगालते में रखना होगा और यह भी कि राहुल के लिए इन हालातों में मनमोहन की शुभेच्छा कितनी खोखली और बेमानी है इसके बारे में क्या कहना है।

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