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अलकायदा के मुखिया अल जवाहिरी की कश्मीर के अपने जंगजुओं के लिए जारी नई गाइड लाइन काबिले गौर है। इसमंे उन्होंने हिदायत जारी की है कि आम हिन्दू, सिख, ईसाइयों को हमले का निशाना न बनाया जाये। बाजार, मस्जिद व भीड़भाड़ वाले इलाके में दुश्मनों से परहेज रखने की सलाह भी उन्होंने दी है।
जेहादी विचारधारा के भटकने की मूल वजह अमेरिकी साजिश है। सीआईए को वितंडा युद्ध में महारथ हासिल है। सोवियत संघ को जब उसे अफगानिस्तान से खदेड़ना था उस समय उसने मदरसों को फंडिग करके इस्लामी शिक्षाओं को भोले भाले लोगों के सामने तोड़ मरोड़कर पेश किया। आज इसके वायरस पूरी दुनिया मंे फैलकर आतंकवाद का कहर ढहा रहे हैं। ईमान के निजाम को कुचलने के लिए शैतानी साजिशों के खिलाफ जेहाद का फर्ज मुकर्रर होता है। जिसमें शैतानी सत्ता की नुमांइदगी करने वाली फौज और पुलिस पर तो हमले किये जा सकते हैं लेकिन निरीह अवाम पर बिल्कुल भी नहीं। भले ही वह ईमान पर किसी दूसरे मजहब के जरिए यकीन रखता हो।
ईमान के मायने है ऐसी पाबंदियों को मानना जो उन कामों को करने से रोकती हैं जिनके लिए जमीर गवारा नहीं करता। इस्लाम ही नहीं सारे मजहबों के वैचारिक स्रोत की यही बुनियादी कंुजी है। ईमान के रास्ते पर चलने के लिए कितने भी प्रिय का बलिदान करना पड़ सकता है हजरत इस्माइल द्वारा अपने बेटे की कुर्बानी के लिए तत्पर होने की कथा से इंसान के किरदार को इस मामले में मजबूती से ढ़ालने की कोशिश इस्लाम मंे झलकती है। अगर ईमान के खिलाफ चलाने के लिए लोगों को दबाव में लेने या फुसलाने की कोशिश कोई करे तो इस्लाम किसी अवतार के आने की प्रतीक्षा करने की वजाय खुद उसके खिलाफ जंग करने की नसीहत देता है और जेहाद इसी का नाम है। जिस तरह माक्र्सवादी विचारधारा बुर्जुआजी द्वारा क्रांति के अंजाम तक पहुंचने के पहले लोगों को गुमराह करने की आशंका के चलते सांस्कृतिक क्रांति के दौर में वर्ग शत्रुओं के सफाये के रास्ते पर चल पड़ी थी वैसे ही कई जगहों पर इस्लाम को अपनी पाक दुनिया के फिर से नापाक होने के अंदेशे के चलते ईमान के शत्रुओं के खिलाफ संहार की आयोजना करनी पड़ी हो लेकिन यह गलत फहमी है कि अरब के बाहर सारी दुनिया में इस्लाम तलवार के जोर पर फैलाया गया है। मध्य एशिया के शून्य से काफी नीचे के तापमान वाले इलाकों में अव्वल तो अरेबियन खिलाफ मौसम के कहर से ही मर जाते इसके अलावा उन पैदायशी बर्बर जातियों पर ताकत से कोई चीज उनके द्वारा थोप पाने का तो सवाल ही नहीं था। समता, स्पष्ट न्याय भावना व बंधुत्व इस्लाम की विचारधारा के इन मूल तत्वों मंे ऐसा आकर्षण था जिससे उसे दुनिया के दूसरे हिस्सों में खुशी खुशी अपनाया गया। विचार की ताकत किसी भी हथियार से ज्यादा होती है। भारत का बौद्ध धर्म भी तो इसी ताकत की बदौलत दुनिया के तमाम देशों में फैला था।
आज मुनाफे के नाम पर संयम या पाबंदियों की सारी दीवारें ढहा देने की बाजार की रफ्तार इब्लीस की करतूतों से भी ज्यादा अनिष्टकारी हैं। सादगी, त्याग जैसे मूल्य इसके अंधड़ ने बेमानी कर दिये हैं। कामोद्दीपन तो जैसे व्यापारिक कौशल के बतौर स्थापित कर दिया गया है। चूंकि अपने सुख के लिए किसी को भी सूली पर चढ़ा देना इसके तहत जायज करार दिया जा रहा है। जिससे असीम उपभोगवाद का नारा तेजी से प्रसारित हो रहा है। नतीजतन मुट्ठीभर दौलत मंदो के ऐशो आराम के लिए दुनिया की सारी आबादी अभाव के बोझ तले सिसकती हुई मरने को छोड़ देने में संकोच नहीं किया जा रहा है। जिनके अंदर लेश मात्र भी धार्मिक या आध्यात्मिक भावनाऐं हैं उनका खून तो हैवानियत के इस नंग नाच पर खौलेगा ही। आश्चर्य यह है कि जिहाद की कवायद केवल इस्लाम को मानने वाले क्यों कर रहे हैं। दुनिया की पूरी आबादी किसी न किसी मजहब को मानती है और यह नंग नाच उस मजहब के प्रभाव की वजह से हर शख्स के जमीर को कचोटता होगा। फिर भी वह चुप बैठा है तो मतलब यह है कि वह अपने विश्वास और आस्था के साथ घात कर रहा है लेकिन जेहाद अंधाधुंध नहीं हो सकता। इस्लाम से अमेरिकी दुष्टता की धंुध एक दिन छटती ही थी और अलकायदा के सुप्रीमों का बयान जाहिर करता है कि वह दिन आ पहंुचा है। इस्लाम का मूल निर्मल स्वरूप उभरा तो जेहाद एक मजहब तक सीमित नहंी रहेगा बल्कि बाजार के खिलाफ धर्म युद्ध का सार्वभौम नगाड़ा कुछ ही दिन बाद शायद गूजता सुनायी दे तब इस्लाम विभाजनकारी विचारधारा के रूप में दिखने की बजाय नई वैश्विक क्रांति के केन्द्र बिन्दु के रूप मंे अपनी भूमिका अदा कर सके।
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