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राहुल के मूर्खतापूर्ण प्रवचन

मुक्त विचार
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राहुल गांधी का जबसे ब्राह्मण अïवतार हुआ है तबसे उनकी मति सी मारी गयी है। उनके मूर्खतापूर्ण प्रवचनों से लगातार उनके लिये मुश्किल पैदा होती जा रही है। इसका श्रेय उन धूर्त सलाहकारों को है जिन्होंने निश्चित रूप से कांग्रेस की लुटिया डुबोने के लिये मोदी के साथ अंदरखाने पैक्ट कर रखा है।
ब्राह्मणों का देश के बौद्घिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक विकास में बहुत बड़ा योगदान है। आज भी हिन्दुओं की सभी कौमों में ब्राह्मण ज्यादा प्रगतिशील हैं जो उदारता के जन्मजात गुण के कारण बदलते वक्त के मुताबिक खुद को बदलना जानते हैं। बुद्घिजीविता के लिये उनके मन में सहज आकर्षण है और इस कारण अतीत में भी उन्होंने मेधावी अछूतों को प्रोत्साहित करने का महान काम किया है। इस कारण स्वयं को ब्राह्मण कहना गौरव का विषय होना चाहिये लेकिन एक तो राहुल गांधी ब्राह्मण हैं नहीं क्योंकि उनके पितामह फिरोज गांधी पारसी थे। इस नाते राहुल भी पारसी हुए। दूसरे वे ब्राह्मण सहित सारे सवर्णों ने सदियों तक सामाजिक सत्ता के शिखर पर रहकर शोषित वंचित जातियों को सामूहिक चेतना के स्तर पर बढऩे से रोका इस कारण ब्राह्मण समाज के महान नेताओं द्वारा आजादी के तत्काल बाद उनकी क्षति पूर्ति के लिये विशेष अवसर का जो सिद्घांत लागू कराया उससे बने वातावरण में कोई बुद्घिमान दलित नेता सार्वजनिक रूप से यह गर्वोक्ति करे कि वह दलित है जैसा कि मायावती करती हैं तो यह उसके लिये मुफीद है लेकिन एक नकली ब्राह्मण जबर्दस्ती अपने को ब्राह्मण कहने लगे जिसकी अपेक्षा ब्राह्मणों ने भी नहीं की तो उसके शब्द दलितों और पिछड़ों को हीन साबित करने के उद्गार बन जाते हैं। यह बात राहुल को समझ में नहीं आयी। क्या इतने नादान को प्रधानमंत्री पद के लायक समझा जाना चाहिये जो कि भले ही अपने को युवा कह रहा हो लेकिन वास्तव में वह उम्रदराज हो चुका है फिर भी उसे अपनी बात के दूरगामी नतीजे का अंदाजा नहीं है।
जिन सलाहकारों ने जिनमें कांग्रेस मुख्यालय में बैठा बुंदेलखंड का एक बाबू सर्वोपरि है उनसे ब्राह्मण होने की असंगत घोषणा करायी। वे रोज उनसे हास्यास्पद होने की हद तक नाटकीय घोषणायें करा रहे हैं जैसे मध्यप्रदेश में उन्होंने कहा कि मेरे पिता झुग्गी वालों को सांसद और विधायक बनाना चाहते थे। राहुल गांधी वहां यह कहते हुए भूल गये कि उनके द्वारा घोषित मध्यप्रदेश का नया मुख्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया है जो कि शायद झुग्गी वाला तो नहीं कहा जा सकता। एक तरफ आप महाराजा को लोकतंत्र में गद्दी दे रहे हैं दूसरी तरफ खुद ही कह रहे हैं कि आपके पापा रंक को राजा बनाना चाहते थे। यह तो वही बात हुई मियां की जूती….. या अपनी जूती अपने ही सिर मारना। राहुल गांधी के एक और अजीबोगरीब भाषण से बैठे बिठाये नरेन्द्र मोदी को झांसी में मुसलमानों को उनके खिलाफ करने और अपने लिये उनकी हमदर्दी बटोरने का मौका मिल गया। यह बात बाद में झांसी की रैली में राहुल गांधी के भाषण पर मोदी ने जो कानूनी सवाल खड़ा कर दिया है वह बेहद गम्भीर है। राहुल गांधी ने भाषण में यह कहा था कि खुफिया एजेंसियों से उन्हें पता चला है कि मुजफ्फरनगर के दंगा पीडि़त नौजवानों से आईएसआई संपर्क में है ताकि उनको गुमराह करके आतंकवाद के रास्ते धकेला जा सके। मोदी ने पूछा है कि राहुल क्या हैं। खुफिया एजेंसी अपनी जानकारी किस हैसियत से उनको शेयर कर रही है जिसने गोपनीयता की शपथ न ली हो उसे ऐसी जानकारियां बताना अपराध है। नरेन्द्र मोदी की यह आपत्ति बहुत हद तक जायज है और आगे चलकर यह मामला तूल पकड़ता है तो राहुल के लिये मुसीबत खड़ी हो सकती है। मोदी ने यह भी कहा कि राहुल को उनके नाम उजागर करना चाहिये कि कौन से मुसलमान नौजवान हैं जो आईएसआई के एजेंटों से मिले। राहुल ने तो बिना नाम लिये मुजफ्फरनगर के सारे मुसलमान नौजवानों को संदिग्ध बना दिया। यह बेहद गलत बात है। मोदी की यह अपील मुसलमानों को छू गयी और राहुल गांधी का इससे भारी नुकसान हुआ है।
लोकतांत्रिक सत्ता इस देश में पैतृक विरासत का हिस्सा बना दी गयी है जो बेहद गलत है। मुलायम सिंह का आरामतलब बेटा इसी के नाते मुख्यमंत्री बना दिया गया जिसे लेकर मुलायम सिंह को खुद कहना पड़ा कि अखिलेश तुम सही तरीके से सरकार को नहीं संभाल पा रहे। फिर भी अखिलेश गद्दी पर हैं क्योंकि ऐसा लगता है कि जैसे उत्तरप्रदेश की जनता मुलायम सिंह की गुलाम रियाया है जिसके साथ प्रयोग करना उनके लिये पूरी तरह जायज है क्योंकि उनके बेटे को उनकी राजनीतिक सत्ता के उत्तराधिकारी के बतौर प्रदेश शासन की चाभी लेने का जन्मसिद्घ अधिकार है। इसी तरह राहुल गांधी में चाहे योग्यता हो या न हो लेकिन उन्हें ढोना इस देश की जनता के लिये अनिवार्य है क्योंकि यह देश सोनिया गांधी के परिवार की पैतृक संपत्ति जो है। जनमत को इस मामले में दृढ़ता से पेश आना होगा। वरना लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह जायेगा।

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