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सब कुछ ठीक नहीं भाजपा में

मुक्त विचार
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भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी पहले ही पार्टी को वन मैन शो बनाये जाने पर आपत्ति जता चुके हैं। अब केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठक में डा.मुरली मनोहर जोशी और सुषमा स्वराज के अघोषित बर्हिगमन से पार्टी की अंदरूनी दरारें और गहरी होकर सामने आ गयी हैं। नरेन्द्र मोदी का मीडिया मैनेजमेंट शानदार है जिसकी वजह से अभी तक पार्टी के सारे पैबंद रफू होते आये हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सींवन के निशान मिट जायें। चुनाव तक आते-आते भाजपा का अंतर्कलह कितना विस्फोटक रूप ले सकता है इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तय है कि नरेन्द्र मोदी के लिये अपशकुनों की शुरूआत हो चुकी है।
भाजपा नरेन्द्र मोदी के उभार के बाद से जनरेशन गैप से गुजर रही है। हालांकि जनरेशन गैप के मुहावरे से भी भाजपा की अंदरूनी स्थितियां पूरी तरह व्यक्त नहीं होतीं। जनरेशन गैप के तहत 70 वर्ष से अधिक उम्र के नेताओं को चुनाव मैदान से हटाने की योजना तो हो सकती है जिसके लक्ष्य पर डा.मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी के हमवय सुषमा स्वराज जैसे नेताओं को भी हाशिये पर धकेलने की कोशिश हो रही है। मोदी और राजनाथ की जोड़ी लगता है कि पार्टी में अपने समकक्ष या अपने से किसी सीनियर को प्रभावी नहीं रहने देना चाहती। इससे उठापटक तेज हो रही है। संघ बार-बार नरेन्द्र मोदी के साथ खड़े रहने की प्रतिबद्घता जता रहा है। संघ के लिहाज ने मोदी विरोधियों को अपनी भावनाओं का संवरण करने के लिये विवश किया लेकिन इसकी एक सीमा है। संघ ने दो दिन पहले ही चेतावनी दी थी कि मोदी से असहमति को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। इसके बाद असंतुष्ट लगता था कि चुप्पी साध लेंगे लेकिन केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठक में जो हुआ उससे कुछ और ही इशारा मिलता है। जोशी और सुषमा स्वराज ही नहीं लालजी टण्डन भी अपने तरीके से इस जोड़ी के दबदबे के खिलाफ जुबान खोल चुके हैं। उन्होंने लखनऊ सीट पर मोदी के अलावा किसी और के आने पर अपनी फिर से उम्मीदवारी के लिये आ जाने का खुलेआम ऐलान किया है। यह राजनाथ सिंह के नेतृत्व को नकारने का उपक्रम है। उत्तरप्रदेश में भाजपा के कई और दिग्गज नेता हैं जो समय का इंतजार कर रहे हैं। अगर सुषमा स्वराज का सुर इसी तरह का रहा तो कल को कलराज मिश्र, ओमप्रकाश सिंह, विनय कटियार आदि भी उनकी पंक्ति में शामिल हो जायें तो आश्चर्य न होगा। बहरहाल भाजपा के अंदर घमासान बढ़ता जा रहा है और चुनावी अभियान पर इसका असर जरूर पड़ेगा। मोदी के मंसूबे इससे किस हद तक प्रभावित होंगे इसको लेकर अटकलबाजियां शुरू हो गयी हैं।

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