Menu
blogid : 11660 postid : 731531

बाबा साहब को आज भी नहीं मिला अपेक्षित सम्मान

मुक्त विचार
मुक्त विचार
  • 478 Posts
  • 412 Comments

भारत को देवभूमि कहकर महिमा मंडित करने का रिवाज है लेकिन सही बात यह है कि यह पापियों का देश है। आश्चर्य होता है कि जिस देश में परदुख कातरता, त्याग, सादगी और मनुष्य मात्र के प्रति प्रेम के उसूलों पर आधारित सभ्यता का प्रकाश उत्पन्न किया गया कालांतर में वह देश अन्याय, अनैतिकता और मानव विरोधी कार्य व्यवहार का पुंज कैसे बन गया। हजार वर्ष की गुलामी इस देश को कुदरत की ओर से इन्हीं पापों की सजा की बदौलत दी गयी।
14 अप्रैल को बाबा साहब अम्बेडकर की जयंती है। यह तिथि आती है तो देश की पापी तस्वीर को लेकर मेरे जैसे लोगों की पीड़ा फिर हरी हो जाती है। पूरे स्वाधीनता आंदोलन में बाबा साहब जितना विद्वान, जनतांत्रिक मूल्यों में परिपक्व, देश की संस्कृति के प्रति अगाध अनुराग का धनी और त्यागी व्यक्तित्व तलाशना मुश्किल है लेकिन वह महामानव देश में आज भी सर्व सम्मान का पात्र नहीं बन सका है। यह दूसरी बात है कि भारतीय जनता पार्टी जैसे वर्ण व्यवस्थावादी दल भी कई वर्ष पहले से डा.अम्बेडकर को पूजने लगे हैं। लेकिन यह पूजा प्रवंचना है क्योंकि इसमें निष्ठा नहीं चालाकी निहित है। खांटी सवर्ण भाजपाई बाबा साहब का नाम व्यक्तिगत बातचीत में जितने गर्हित अंदाज में लेता है उससे पार्टी की असलियत प्रतिबिंबित हो जाती है।
हिन्दू पौराणिक साहित्य में बहुत से ऐसे प्रसंगों को महिमा मंडित किया गया है जो सार्वभौम नैतिकता के किसी भी मानदंड के विरुद्घ है। मनुष्य जब पाप रहित शुद्घ आचरण करता है तो वह देवता माना जाता है। इस धारणा के बावजूद देवताओं के राजा इन्द्र को पौराणिक कथाओं में इतना कामुक चित्रित किया गया है कि वह अपने गुरु की पत्नी को भी व्यभिचार का शिकार बनाने से बाज नहीं आता। किसी धर्म में फरिश्तों को ऐसा कृत्य करते हुए प्रदर्शित नहीं किया गया। इसी तरह द्यूत क्रीड़ा धर्म विरोधी आचरण में शुमार है लेकिन जो इतना चरम जुआरी हो कि अपनी पत्नी को भी जुए में दाव पर लगा दे उसे धर्मराज की पदवी देने वाले ग्रंथ कैसे समाज के निर्माण के प्रेरक बनेंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। यह चिंतन का विषय होना चाहिये कि अनाचार को महिमामंडित करने वाले प्रसंग धर्मशास्त्रों का हिस्सा बनाने वाले हिन्दू धर्म के झंडाबरदार रहे होंगे या पक्के दुश्मन। हिन्दुत्व की पहेलियां किताब में बाबा साहब ने इनकी बखिया उधेड़ी जिससे उन्हें हिन्दू विरोधी करार दिया जाता है लेकिन वे हिन्दू धर्म के विरोधी नहीं थे। लाहौर में 1936 में जातपांत तोड़क मंडल की ओर से आयोजित हिन्दू सम्मेलन के कार्यक्रम में उन्हें अध्यक्षता के लिये आमंत्रित किया गया था हालांकि बाद में इसी कारण संतराम बीए के संयोजन में प्रस्तावित उक्त कार्यक्रम निरस्त कर दिया गया था। इसके लिये बाबा साहब ने अपना जो भाषण तैयार किया था उसमें उन्होंने हिन्दू धर्म को मजबूत बनाने के लिये कई सटीक सुझाव प्रस्तुत किये। आयोजन रद्द हो जाने के बाद इस भाषण की पुस्तिका छपवाकर वितरित करायी गयी थीं जिसकी सामग्री को पढऩे से विदित होता है कि डा.अम्बेडकर को हिन्दू धर्म की कमजोरियों का कितने वास्तविक रूप में पता था और उनको दूर कर हिन्दू समाज को नैतिक समाज के रूप में मजबूत करने के उनके सुझाव कितने कारगर थे। इन सुझावों में था कि हिन्दू धर्म में हर धार्मिक पद के लिये एक योग्यता तय की जाये साथ ही हिन्दू धर्म की मानक पुस्तकों की सूची तय कर दी जाये जो किसी भी विवाद या शंका की स्थिति में फैसला देने के लिये उद्घरण के रूप में इस्तेमाल की जा सके। बाबा साहब ने जो सुझाव दिये थे उससे हिन्दू समाज में अराजकता की स्थिति समाप्त हो जाती। न आसाराम बापू जैसे लोग अपने को भगवान के रूप में पुजवा सकते थे न साक्षी महाराज जैसा विवादित व्यक्ति महामंडलेश्वर की स्वयंभू उपाधि धारण कर सकता था। हिन्दू धर्म में भगवान के केवल 24 अवतार होना बताया गया है लेकिन यहां हर कोई अपने को भगवान घोषित कर लेता है और उसकी कोई रोकटोक नहीं हो पाती। अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाला ऐसा समाज आज तक नहीं देखा गया जिसे जगाने की कोशिश करने वाले बाबा साहब हिन्दू धर्म के शत्रु के रूप में प्रचारित किये जायें इससे बड़ी दुष्टता क्या हो सकती है।
यह बात सही है कि बाबा साहब ने कहा था कि हिन्दू धर्म में जन्म लेना उनके वश में नहीं था लेकिन यह उनके वश में है कि वे हिन्दू के रूप में मरेंगे नहीं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे हिन्दू द्रोही थे। दरअसल हिन्दू संज्ञा का कोई धर्म है ही नहीं। वेदों पर आधारित धर्म के रूप में प्रवर्तित होने से हिन्दू धर्म के रूप में रूढ़ हो चुके भारतीय धर्म का आरम्भ में नाम वैदिक धर्म था जिसमें जातिगत ऊंच नीच पर आधारित विचारधारा का कोई स्थान नहीं था। वैदिक युग में उपनिषदों में जाबाली पुत्र सत्यकाम की कथा बताती है कि किस तरह अज्ञात पिता की संतान को उसके गुण के आधार पर वर्ण निर्धारण में गुरुकुल के ऋषि ने ब्राह्म्ïाण की कोटि में रखा। वैदिक युग में ब्राह्म्ïाण जन्मना नहीं होता था और ब्राह्म्ïाण होना एक बहुत ही कठिन व्रत था। दुर्वासा जैसे महर्षि तक अपरिग्रह के इतने कठोर नियम का पालन करते थे कि अगली जोर तक का खाना संचित रखना उन्हें गवारा नहीं था। इसी कारण तो अज्ञातवास व्यतीत कर रहे पांडवों के पास वे सदल बल भोजन की व्यवस्था के लिये पहुंच गये थे और जब उन्हें पांडवों की दशा पता चली तो उस दिन उन्होंने और उनके साथी ऋषियों ने मात्र मुट्ठी भर भात में अपनी क्षुधा शांत हो जाने की बात कह दी थी लेकिन जाति के आधार पर समाज के बड़े हिस्से को गरिमापूर्ण जीवन के अवसर से वंचित करने का अपराध जब धर्म का हिस्सा बना दिया गया तो वैदिक धर्म सनातन धर्म कहा जाने लगा। गांधीजी तक ने कह दिया था कि वर्ण व्यवस्था पर आधारित ऊंचनीच और छुआछूत हिन्दू धर्म की सनातन व्यवस्था है हालांकि गांधीजी को बाद में अपने इन विचारों के लिये प्रायश्चित करना पड़ा था। बाबा साहब ने इसी विकृत हिन्दू धर्म को नकारने के लिये कहा था कि इसमें रहकर वे नहीं मरेंगे लेकिन अगर उन्हें भारतीय धर्म से घृणा होती तो वे वैकल्पिक धर्म की दीक्षा के लिये भारतीय भूमि पर उत्पन्न धर्म की तलाश तक अपने को सीमित नहीं रखते। उन्होंने सारे प्रलोभन त्यागकर बौद्घ धर्म को स्वीकार किया ताकि भारतीय धर्म सिद्घान्त की सही तस्वीर एक बार फिर निखर सके।
अंग्रेजों से आजादी को जिस तरह से हासिल किया गया वह देश के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात था। इसमें उनकी भाषा की सर्वोच्चता को आजादी के बाद भी स्वीकार किया जाना, ब्रिटेन की महारानी की अधीनता वाले राष्ट्र कुल की सदस्यता लिया जाना, देश के विभाजन के षड्यन्त्रकारी उपक्रम पर हथियार डालना, ब्रिटिश हितों की रक्षा करने वाले कई कानूनों को 50 वर्ष तक जारी रखने की शर्त मान्य करना। आजादी के बाद भी लार्ड माउण्ट बेटन को गवर्नर जनरल बनाये रखने का फैसला, देशभक्तों के खिलाफ काम करने वाले अंग्रेजों के खैरख्वाहों का गौरव बरकरार रखा जाना आदि कई अपमान जनक बातें इस आजादी में शामिल हैं। कई दूरदर्शी नेता नहीं चाहते थे कि जल्दबाजी में ऐसी आजादी हासिल की जाये। बाबा साहब ने भी ऐसी छद्म आजादी की बजाय व्यवस्था परिवर्तन की स्थिति न आने तक ब्रिटिश शासन जारी रखना मुनासिब बताया हो तो इसमें अपवाद क्या था। उन्होंने वायसराय की काउन्सिल में श्रम मंत्री के रूप में कार्य करते हुए मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिये जो कानून बनवाये। आधुनिक भारत के सारे श्रम कानूनों की आधारशिला उन्हीं से तैयार हुई। बाबा साहब ने इस तरह शहीद ए आजम भगत सिंह के उस सपने को पूरा किया जिसकी कल्पना उन्होंने अपने संकल्प में जाहिर की थी कि हम आजादी के बाद ऐसी व्यवस्था का निर्माण चाहते हैं जिसमें मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण की कोई गुंजाइश न हो।
जिन लोगों ने यह कहा कि ब्रिटिश शासन का समर्थन करने के कारण बाबा साहब को बहुत रिश्वत मिली थी। कायदे से उनकी जीभ में कीड़े पडऩे चाहिये। डा.अंबेडकर की लिखी किताबें देश विदेश में बिकती थीं जिसकी अच्छी खासी रायल्टी उन्हें मिलती रही। फिर भी जब उनकी मृत्यु हुई तो वे कर्जदार निकले। यानि अंग्रेजों से उन्हें पैसे मिलने की बात कितनी ज्यादा सफेद झूठ रही इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। भारतीय संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने बिना किसी जातिगत पूर्वाग्रह के नागरिकों को अधिकार संपन्न करने में जो योगदान दिया वह विलक्षण है। उनकी थीम पर आधारित संविधान बनने से भारतीय संविधान कई मायनों में अमेरिका जैसे विकसित देशों के संविधान से भी ज्यादा उत्कृष्ट बन सका। डा.अंबेडकर ने हिन्दू स्त्री को अधिकार देने के मामले में रूढि़वादियों द्वारा दिखायी जा रही हठधर्मिता से क्षुब्ध होकर नेहरू मंत्रिमण्डल से इस्तीफा दिया था न कि दलितों के मामले में। बाबा साहब का साहित्य भारतीय संस्कृति के कई अछूते पहलुओं से परिचित कराता है जिसके समर्थन में उन्होंने इतने उद्घरणों का समावेश किया है कि दूसरे विद्वान उनके अध्यवसाय पर भौचक रह जाते हैं।
लेकिन वे दलित थे और उन्होंने वर्ण व्यवस्था का घोर विरोध किया था जिससे बड़ा कुफ्र इस देश में किसी को नहीं माना जाता। इसी कारण उन्हें विवादों के घेरे में रखकर उनकी महिमा को बौना करे की कोशिश की गयी। उनके निधन के 34 वर्षों बाद वीपी सिंह सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न घोषित किया लेकिन सरकारी मान्यता के बावजूद सामाजिक मान्यता में अभी भी महानता के दर्जे से उन्हें काफी पीछे धकेलने की कोशिश की जाती है। यहां तक कि उनको भारत रत्न घोषित कर वर्ण व्यवस्था पर परोक्ष प्रहार करने की वजह से अपनी असंदिग्ध ईमानदारी के बावजूद वीपी सिंह को भी सबसे बड़े खलनायक के रूप में स्थापित कर दिया गया। बुद्घ के साथ भी यही हुआ था जिन्होंने सारी दुनिया को भारत की गुरुता के सामने नमन कराया उन्हें अपमानित करने के लिये घोषित किया गया कि पीपल के पेड़ पर ब्रह्म्ïा राक्षस और मसान का वास होता है। इसलिये रात में पीपल के नीचे से नहीं गुजरना चाहिये। वजह यह थी कि तथागत को बोधिज्ञान पीपल के पेड़ के नीचे ही मिला था। इसी तरह उनकी जन्मस्थली पर लोगों को तीर्थाटन से रोकने के लिये लुम्बनी के पास के स्थल मगहर को ऐसा स्थान घोषित कर दिया गया जहां पर जाने से सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं और जिस नदी से बुद्घ के जीवन का अभिन्न संबंध था उसे कर्मनाशा नाम देकर कह दिया गया कि इस नदी में स्नान करने से भी सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं। इसी कारण कबीर को इस बदमाशी के खिलाफ आगे आना पड़ा था। संतोष की बात यह है कि अंततोगत्वा प्राकृतिक न्याय के सिद्घान्त ही सर्वाइव करते हैं। बाबा साहब, डा.राममनोहर लोहिया और वीपी सिंह जैसे महापुरुषों ने नींव के पत्थर बनकर जिस इमारत का श्रीगणेश कराया आज भाजपा जैसी पार्टी के साथ-साथ पूरे देश में शूद्र समाज के मोदी का महाकाय व्यक्तित्व के रूप में उभरने का अवसर प्राप्त कर लेना उक्त ध्रुव सत्य की पुष्टि करता है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply