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उत्तरप्रदेश में उपचुनाव : कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

मुक्त विचार
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13 सितम्बर को उत्तरप्रदेश में 11 विधानसभा व एक लोकसभा सीट के लिये उपचुनाव हो रहे हैं। इनके नतीजों को केन्द्र में बनी नई नवेली मोदी सरकार और भाजपा के लिये राजनैतिक तौर पर संवेदनशील माना जा रहा है। उत्तरप्रदेश में हाल के लोकसभा चुनाव में 80 में से 73 सीटें भाजपा व उसके सहयोगी दलों ने झटकी थीं। साथ ही यह तथ्य और ज्यादा गौरतलब है कि जिन 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं उनमें पहले 10 पर भाजपा व 1 पर उसके सहयोगी दल अपना दल का कब्जा था। दो सीटें तो ऐसी हैं जो केन्द्रीय मंत्रियों द्वारा छोड़ी गयी हैं । इससे जाहिर है कि अगर यह 11 सीटें भाजपा के हाथों से छिनती हैं तो मोदी सरकार की बड़ी छीछालेदर होगी। वैसे भी केन्द्र में हुए बदलाव के बाद जहां-जहां उपचुनाव हुए मोदी का करिश्मा छींजता नजर आया। इससे जहां पस्त हो चुके विपक्ष के मनोबल में फिर से नये जोश का संचार हुआ है। वहीं जनमानस का नजरिया मोदी सरकार की सफलता को लेकर संदिग्ध हो उठा है लेकिन उत्तरप्रदेश का संदर्भ अधिक ज्वलंत है। यहां भाजपा का प्रदर्शन दयनीय रहा तो उसका प्रभाव ज्यादा ही गहरा होगा।
लोकसभा चुनाव के पहले उत्तरप्रदेश में भाजपा के लिये राजनैतिक बियावान की स्थिति राजनैतिक प्रेक्षक मानते थे कि मोदी के प्रभाव से प्रदेश की हर संसदीय सीट पर भाजपा के वोट कुछ बढ़ भी जायें तो स्थिति में कुछ ज्यादा फर्क नहीं आयेगा। भाजपा इतनी पीछे है कि ज्यादातर जगह पर बढ़त बना लेने पर भी जीतना तो दूर उसके लिये दूसरा नम्बर हासिल करना भी मुश्किल है लेकिन चुनाव नतीजे आये तो सारे कयास धरे रह गये। भाजपा को लोगों ने टूटकर समर्थन दिया। चुनाव आयोग इस बार ढीला था। रात में विरोधी दलों के उम्मीदवारों ने कई निर्वाचन क्षेत्रों में तो इसका लाभ उठाकर दबंगई से एक लाख से अधिक की फर्जी वोटिंग कर ली थी। फिर भी उन्हें लाखों के अन्तर से हार की जलालत झेलनी पड़ी। दरअसल उत्तरप्रदेश की प्रचंड जीत की वजह से ही भाजपा को केन्द्र में अकेले दम पर बहुमत मिल पाया। उत्तरप्रदेश में इतने अप्रत्याशित समर्थन की उम्मीद स्वयं प्रदेश के भाजपा नेता तक नहीं कर पाये थे। जिस कारण लोकसभा चुनाव के बाद गठबंधन सरकार की नौबत तय मानकर मोदी को पीछे करके स्वयं आगे आने की रणनीति का ताना बाना कई घाघ भाजपा नेताओं ने बुन रखा था।
ऐसे में उत्तरप्रदेश में भाजपा के प्रदर्शन को लेकर न केवल इस राज्य में बल्कि पूरे देश में लोगों की उम्मीदें काफी बढ़ी हुई हैं लेकिन जमीनी हकीकत इससे दूर है। उत्तरप्रदेश के सारे बड़े नेता चाहे वे मुरली मनोहर जोशी हों, कल्याण सिंह हों, लालजी टण्डन या केसरीनाथ त्रिपाठी। लूप लाइन में डाल दिये गये हैं। कलराज मिश्र को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में जगह जरूर दे दी गयी है लेकिन उनका राजनैतिक कैरियर भी ढलान पर पहुंच गया है या पहुंचा दिया गया है। उमा भारती को उत्तरप्रदेश की जागीर सौंपने के मामले में पार्टी नेतृत्व यथावत अनिच्छुक है। दूसरी पंक्ति के नेताओं में वरुण गांधी पर भी ब्रेक लगा दिया गया है। योगी आदित्यनाथ को उपचुनाव के लिये पार्टी के तीन मुख्य प्रचारकों में शामिल जरूर किया गया है लेकिन विवादित होने से उनकी स्वीकार्यता की एक सीमा है। जिसकी वजह से उन्हें भी उत्तरप्रदेश में पार्टी चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट किये जाने की कोई स्थिति नजर नहीं आती।
राजनाथ सिंह का हाल यह है कि भले ही वे घोषित रूप से सरकार में नंबर दो पर हों लेकिन सच्चाई यह है कि उन्हें अपने राजनैतिक वजूद की रक्षा की लड़ाई लडऩी पड़ रही है। उन्हें अपना पीएस तक अपनी मर्जी से रखने की अनुमति नहीं मिली। नगा समस्या पर सरकार की ओर से वार्ताकार के लिये उनके सुझाये गये नाम को मोदी ने खारिज कर दिया था। यहां तक कि वे अपने पुत्र पंकज सिंह को नोएडा से उपचुनाव का टिकट नहीं दिलवा सके। ऊपरी तौर पर भले ही वे कुछ कहें लेकिन पंकज के टिकट के लिये वे बेहद उत्सुक थे जबकि पार्टी के सामने वंशवाद का आरोप आ जाने की भी कोई समस्या नहीं थी क्योंकि लालजी टण्डन के पुत्र गोपालजी टण्डन को लखनऊ ईस्ट की सीट पर उपचुनाव में उम्मीदवार बनाकर पार्टी ने पहले ही यह वर्जना तोड़ रखी है।
एक नियुक्ति के मामले में किसी अधिकारी से पैसे लेने की वजह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पंकज को डांटे जाने की अफवाहें किसी और पार्टी के नेता ने नहीं भाजपा के ही एक वर्ग ने उड़ाई है। इस बात को राजनाथ सिंह ने स्वयं ही परोक्ष में उजागर कर दिया है। पीएमओ ने इस अफवाह का खंडन करने में जो तत्परता दिखाई उसका भी मकसद राजनाथ सिंह का साथ देना नहीं बल्कि उनकी रही सही फजीहत भी करा देना था और यह हुआ भी। पर राजनाथ लाचार हैं। उनका नम्बर दो का ओहदा खोखला है। वे लगातार बोनसाई होते जा रहे हैं।
मोदी की निगाह में उत्तरप्रदेश सबसे विघ्न संतोषी प्रदेश है। नरसिंहराव की भी उत्तरप्रदेश को लेकर ऐसी ही धारणा थी। इसीलिये उन्होंने अपने कार्यकाल को सुकून से पूरा करने के लिये एक ही काम किया कि उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के सारे बड़े नेताओं का राजनैतिक वजूद बेरहमी से खत्म करवा दिया। मोदी कुछ कुछ नरसिंह राव की लीक पर चल रहे हैं लेकिन वे उत्तरप्रदेश की ताकत भी जानते हैं। इसीलिये प्रदेश को अनाथ का बोध कराने की बजाय वे किसी और को मौका न देकर स्वयं उत्तरप्रदेश के नाथ बनने की कवायद में जुटे हैं। लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में मिली भारी सफलता का श्रेय उन्होंने अपने विश्वासपात्र अमित शाह को दिला दिया। आज हालत यह है कि उत्तरप्रदेश का आम कार्यकर्ता अमित शाह का नाम आने पर यह याद करने की जरूरत नहीं समझता कि वे बाहरी हैं। मोदी ने अपनी चालों से अमित शाह तक को उत्तरप्रदेश के लोगों के साथ इतने अपनेपन से बावस्ता कर दिया है कि अब उन्हें पार्टी में प्रदेश स्तर पर भी कोई मजबूत चेहरा प्रोजेक्ट करने की मांग उठाने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है। इसी श्रंखला की कड़ी में लोकसभा चुनाव के बाद मोदी ने गुजरात की बड़ोदरा सीट अपने पास रखने के बजाय उत्तरप्रदेश की वाराणसी सीट से लोकसभा में नुमाइंदगी करने की जरूरत समझी। जाहिर है कि यह एक रणनीतिक पैंतरा है। उत्तरप्रदेश के दुलारे नेता के रूप में अपनी छवि सुदृढ़ करने के क्रम में उन्होंने जापान यात्रा के दौरान वहां की क्योटो स्मार्ट सिटी की तर्ज पर बनारस को भारत की पहली स्मार्ट सिटी बनाने का करार किया। इसका मनोवैज्ञानिक असर निश्चित रूप से हुआ है और होगा। अब मोदी शाह की जोड़ी को गैर प्रदेश का मानने की बजाय अपना स्वाभाविक नेता मानने की मानसिकता उत्तरप्रदेश के लोग बना चुके हैं।
इस वातावरण को और स्थायी बनाया जाना है। मोदी बहुत ही सुनियोजित ढंग से इस दिशा में गोटियां आगे बढ़ा रहे हैं। जिसकी वजह से मोदी और अमित शाह को उत्तरप्रदेश में बेहतर नतीजे लाने की कोई बड़ी फिक्र फिलहाल नहीं है। वैसे भी उत्तरप्रदेश के मतदाताओं का वर्ग चरित्र है कि वे सत्तारूढ़ पार्टी का कोपभाजन बनने से बचने और सरकार रहने तक अपने व्यक्तिगत काम कराने की गुंजाइश बनाये रखने के लिये उपचुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी को ही समर्थन देते हैं। मोदी मतदाताओं की इस कमजोरी में बदलाव लाने के लिये उपचुनाव में कोई बड़ा हस्तक्षेप करना जरूरी नहीं समझ रहे। साथ ही यह भी तथ्य है कि समाजवादी पार्टी और अखिलेश सरकार उनके सामने सरेंडर है। धर्म निरपेक्षता के नाम पर लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के पहले आक्रामकता में कोई लिहाज न रखने वाले बाप बेटे की जोड़ी ने मय बहू के जब नये प्रधानमंत्री की ताजपोशी में शामिल होकर उनको सलामी ठोंकी तभी उनके पिलपिलेपन का नजारा सामने आ गया था। राज्यसभा में वे मोदी सरकार को सहयोग का आश्वासन दे ही चुके हैं। इस कारण विधानसभा के आम चुनाव आने तक मोदी ने उन पर दया भाव बनाये रखने की हामी भर दी है। उन्हीं के इशारे की वजह से प्रदेश के नेताओं ने कार्यकाल पूरा होने के पहले ही उत्तरप्रदेश की अखिलेश सरकार को गिरा देने की डींगें हांकना बन्द कर दिया है। मोदी को मालूम है कि छद्म धर्म निरपेक्ष छुटभइया पार्टियों की असल विपक्ष को दबाये रखने के लिये शिखंडी की भूमिका में इतनी बड़ी उपयोगिता है इसलिये सपा का मोहरा साधना उनके दूरंदेशी इरादों के अनुरूप है।
व्यक्तिगत रिश्ते की वजह से मुलायम सिंह के पौत्र को मैनपुरी में सेफ पैसेज देने के लिये उन्होंने भाजपा से किसी कद्दावर नेता को उसके सामने खड़ा करने की कुछ लोगों की कोशिशें कामयाब नहीं होने दीं। वैसे भी सपा हर हालत में मैनपुरी सीट जीतती है लेकिन नेताजी की ख्वाहिश तेजू के डेबू को जीत के सबसे बड़े रिकार्ड के रूप में इतिहास में दर्ज कराने की है और मोदी ने पिद्दी उम्मीदवार देकर उनकी इस मंशा को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अन्य स्थानों पर भी उम्मीदवारों के चयन में बड़ी गम्भीरता नहीं दिखाई गयी। महोबा जिले की चरखारी सीट पर कप्तान सिंह राजपूत को वैसे भी बढ़त में माना जा रहा था। उस पर राजू भटनागर गिरोह की सूची में रह चुके लक्ष्मी नारायण गलिया की पत्नी गीता राजपूत को टिकट देकर भाजपा ने अपने सिर कलंक मढ़वाने के साथ-साथ उनका रास्ता एकदम आसान कर दिया। हमीरपुर सीट पर भी भाजपा ने जगदीश व्यास जैसे कमजोर उम्मीदवार को उतारकर सपा को वाक ओवर देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उत्तरप्रदेश के कुछ कुर्मी नेताओं को सिर उठाने से रोकने के लिये इस उपचुनाव के माध्यम से अमित शाह ने पूर्व कैबिनेट मंत्री रामकुमार वर्मा की घर वापसी करा ली है और उन्हें लखीमपुर की निघासन सीट का टिकट थमा दिया है। जहां उनकी भी हालत फिलहाल पतली है। सारा परिदृश्य कुल मिलाकर यह है कि फिर भाजपा को लेकर फिलहाल कुछ महीने चाहे कुछ चर्चा चलती रहें लेकिन उत्तरप्रदेश में होने जा रहे उपचुनाव में उसके नेताओं ने कम से कम आधी सीटें गंवा देने के लिये अपने को मानसिक रूप से तैयार कर लिया है।

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