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जनता दल परिवार का सर्कसी जमावड़ा

मुक्त विचार
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नई दिल्ली में गुुरुवार को नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए जनता दल परिवार का जमावड़ा मुलायम सिंह यादव की पहल पर उनके आवास पर हुआ। मुलायम सिंह काफी समय से मोदी की काट के लिए छटपटा रहे हैं क्योंकि वे इस बात से आश्वस्त नहीं हो पा रहे कि अगले विधान सभा चुनाव में उनकी पार्टी मोदी के सामने अपना वजूद सलामत रख पाएगी। हालांकि उप चुनावों में उन्होंने बेहतरीन सफलता हासिल की है फिर भी उनका डर बरकरार है। इसी डर की अनुगूंज समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन में सुनने को मिली। जब मुलायम सिंह ने भाषण करते हुए अचानक मंडल आयोग का जिक्र छेड़ा और कहा कि उन्होंने सबसे पहले मंडल रिपोर्ट को लागू किया था जिसमें उनका समर्थन चंद्रशेखर और बीजू पटनायक ने किया था। जनता शासनकाल अभी इतना पुराना नहीं हुआ कि लोग उसकी याद भूल गए हों। सही बात तो यह है कि बीजू पटनायक ने मंडल आयोग की रिपोर्ट की जबरदस्त मुखालफत की थी और उनके सुपुुत्र नवीन पटनायक तो प्रतिगामी सोच में अपने बाप से भी दो कदम आगे हैं। इसके बावजूद इन दिनों उनका भाजपा से मनमुटाव चल रहा है और मुलायम सिंह ने उन्हें अपने पाले में खींचने के लिए उनके पिता द्वारा मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने के समर्थन का सफेद झूठ बोला था। बावजूद इसके अभी तक नवीन पटनायक ने उनके साथ कोई गठबंधन करने का उत्साह नहीं दिखाया।
इसका अर्थ यह नहीं है कि नरेंद्र मोदी सर्व स्वीकार्य नेता हैं और उनके विरोध में कोई गठबंधन नहीं बनना चाहिए। सही बात तो यह है कि नरेंद्र मोदी अभी अपने साम्राज्य के चक्रवर्ती विस्तार की प्रक्रिया में हैं। उनका सपना है कि कांग्रेस की तरह ही केेंद्र के अलावा सभी राज्यों में भी भाजपा की सरकारें वे कायम करा दें। उनके कार्यकाल में भाजपा को जिन राज्यों में सफलता मिली उनमें मुख्यमंत्री के चुनाव में उसकी संघी पृष्ठभूमि को सबसे ज्यादा अंक दिए जा रहे हैं। जाहिर है कि मोदी अभी भले ही लीपापोती की भाषा बोल रहे हों लेकिन भाजपा के एकछत्र राज्य कायम होने के बाद संघ के संकीर्ण एजेंडे को लागू करना उनका सर्वोच्च लक्ष्य है। मुख्यमंत्री के चयन में इसी कारण वे वैचारिक प्रतिबद्धता को महत्व दे रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने अपने द्वारा नामजद मुख्यमंत्री में पर्याप्त प्रशासनिक क्षमता के अभाव को भी नजरअंदाज किया है जो हरियाणा के मामले से जाहिर है। हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर ना तजुर्बे की वजह से ही सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े की तर्ज पर अपने कार्यकाल के कुछ ही दिनों में समस्याओं से घिरने के लिए अभिशप्त हो गए हैं। उनके सामने आ रही चुनौतियां अभी मीडिया में विशेष रूप से सुर्खी इसलिए नहीं बन पा रही हैं क्योंकि अधिकांश मीडिया निष्पक्षता का दामन छोड़कर मोदी के कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहा है।
लेकिन मोदी के खिलाफ मोर्चा बनाते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे कौन सी बातें हैं जिनके कारण मोदी को इतनी अप्रत्याशित सफलता मिली। निश्चित रूप से भारत ने जब लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया तो करिश्मे की राजनीति हावी थी जो कि लोकतांत्रिक गतिशीलता के लिए सबसे बड़ा अवरोध है। एक वंश के करिश्मे के अंधसम्मोहन में लोग कांग्रेस के लिए वोट करते थे। इस कमजोरी को दक्षिणपंथी प्रपक्ष ने भी भांपा और प्रगतिशील विपक्ष ने भी। इस कारण लोहिया से लेकर जनसंघ के नेताओं तक ने वंशवाद पर प्रहार को अपने राजनीतिक एजेंडे में सर्वोपरि रखा। जैसे-जैसे लोगों की लोकतांत्रिक चेतना विकसित होती गई वैसे-वैसे वे विपक्ष की इस बात के हामी होते गए। आज वंशवाद का नकार भारत में राजनीतिक सफलता के लिए सबसे पहली शर्त बन गया है। सोनिया गांधी तक को यह एहसास हो रहा है। कांग्रेस में जिस तरह खुलेआम राहुल के नेतृत्व के खिलाफ बगावत हो रही है वह वंशवादी राजनीति के अंत का बहुत बड़ा सबूत है। मुलायम सिंह अपने को डा. लोहिया का शिष्य घोषित करते हैं जो वंशवाद के सबसे बड़े विरोधी थे लेकिन आज कहीं सबसे ज्यादा वंशवाद है तो उनकी समाजवादी पार्टी में ही है। सारे शीर्ष पदों पर मुलायम सिंह के परिवार के लोगों का कब्जा है। लोकसभा में तो उनकी पूरी पार्टी सिर्फ उनके परिवार में ही सिमटी हुई है। वक्त की धार वंशवाद के खिलाफ है और आप वंशवाद को बिना नकारे विकल्प बन जाएं इससे बड़ा शेखचिल्ली का सपना दूसरा कोई नहीं हो सकता। जनता दल परिवार के गठन के लिए मुलायम सिंह क्या वंशवादी राजनीति का बलिदान करने को तैयार हैं। शायद कदापि नहीं। बल्कि जनता दल परिवार की बैठक में उनके अनुज शिवपाल सिंह की औचित्यहीन मौजूदगी से जाहिर है कि मुलायम सिंह इस मामले में कोई समझौता नहीं करने वाले। मोदी के वंश का कोई व्यक्ति राजनीति में नहीं था। इसी कारण लोगों ने वंशवाद की पूर्ण समाप्ति की अभिव्यक्ति मोदी को रातोंरात देश के सबसे बड़े नेता के रूप में चुनकर की। मोदी भी जानते हैं कि आगे की सफलता का फार्मूला भी वंशवाद से पार्टी को पूरी तरह दूर रखना ही होगा। इसी कारण उन्होंने राज्यों के विधान सभा चुनावों में यथासंभव नेताओं के परिवार के लोगों को टिकट नहीं मिलने दिए। दिग्गज लोग उनसे नाराज हुए फिर भी मोदी ने इस मामले में कोई समझौता नहीं किया। दूसरा इस समय की सबसे बड़ी मांग है गर्वनेंस की। लोग यह जान चुके हैं कि बिना गर्वनेंस के विकास नहीं हो सकता। मोदी चाहे अट्ठारह घंटे काम करने की बात हो या सत्ता के गलियारों में साफ-सुथरे काम के लिए दलालों पर पूरी तरह रोक का मामला। गर्वनेंस को न केवल पटरी पर ला रहे हैं बल्कि इस बात का आभास भी करा रहे हैं कि अब गर्वनेंस क्या होती है वे लोगों को यह करके दिखाएंगे। लोग उनकी इस अदा पर भी रीझे हुए हैं। अब मोदी का मुकाबला करना है तो गर्वनेंस को साबित करना होगा लेकिन मुलायम सिंह का विश्वास गर्वनेंस में न होकर वीरभोग्या वसुंधरा में है। उन्हें छात्र वोट देते हैं तो इसलिए कि उनके कार्यकाल में नकल की पूरी छूट मिल जाती है। दबंग उनकी राजनीति के सबसे ज्यादा कायल हैं तो इसलिए कि उनके कार्यकर्ता बनकर वे पूरी सरकारी मशीनरी और कायदे-कानून से ऊपर हो जाते हैं। गर्वनेंस के उपहास का एक और सबूत यह है कि भ्रष्टाचार से लेकर हत्या तक के मामले में जेलों में बंद नेताओं को जो ऐशोआराम उनकी पार्टी के राज में उपलब्ध है वह किसी भी राज में संभव नहीं है। कुल मिलाकर अराजकतावादी सोच के लोग मुलायम सिंह का जनाधार हैं। यह समाज की कमजोरी है कि व्यक्ति बंधनों में नहीं जीना चाहता इसलिए वह अराजकता का समर्थक हो जाता है लेकिन व्यक्ति की सामाजिकता के गुण का आधार यह है कि अंततोगत्वा लोग एक व्यवस्था चाहते हैं और उसमें ही रहना पसंद करते हैं। इस कारण अराजकता की राजनीति से कुछ समय के लिए तो सफलता प्राप्त की जा सकती है लेकिन बहुत जल्दी लोग इससे ऊब जाएंगे। यह ख्याल शायद समाजवादी पार्टी के नेताओं को नहीं है। इस कारण वे जाने-अनजाने जनविरोधी राजनीति के उपकरण बनकर अपने लिए कब्र खोदने का काम कर रहे हैं।
मोदी के खिलाफ मोर्चा बनाने में और भी पेंच हैं। जनता दल परिवार में कई छत्रप हैं। सर्व सत्तावाद से इनको जोड़े रखना संभव नहीं है। अगर जनता दल परिवार की राष्ट्रीय स्तर पर कोई सांगठनिक संरचना बनती है तो क्या मुलायम सिंह शीर्ष पदों का वितरण अपने कद के बराबर के नेताओं में करना पसंद कर सकते हैं। बिल्कुल नहीं अगर यह होता तो जनता दल परिवार में बिखराव ही नहीं होता। जनता दल परिवार जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति का सपना आंखों में संजोए आकार में आया था जिसमें सत्ता के विकेेंद्रीकरण पर सबसे ज्यादा जोर था और उसका समर्थक तबका इसी आधार पर उससे जुड़ा था लेकिन जनता दल शासन में जब मुलायम सिंह से कहा गया कि आप या तो मुख्यमंत्री बनें या प्रदेश अध्यक्ष तो एक व्यक्ति एक पद के फार्मूले को इन्होंने बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया। इसी कारण जब रामपूजन पटेल को उनके मुख्यमंत्रित्व काल में प्रदेश जनता दल की बागडोर सौंपी गई तो मुलायम सिंह समर्थकों ने उन्हें पीटकर भगाने में गुरेज नहीं किया। मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में रेवती रमण सिंह जैसे नेताओं को जो एक समय प्रतिपक्ष के नेता पद की होड़ में उन्हें हरा चुके थे। भले ही अपना अनुयायी बना लिया हो लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर शरद यादव, नीतीश कुमार जैसे नेता अपने व्यक्तित्व को विगलित करके उनके अनुचर बनने की नियति को स्वीकार कर लें यह मुमकिन नहीं है। इसके अलावा मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश में तो जनता दल यू या राष्ट्रीय जनता दल को कोई सीट देने वाले नहीं हैं जबकि बिहार से लेकर कर्नाटक तक में उन्हें समाजवादी पार्टी के लिए सीटें चाहिए। इतने विरोधाभासों में जनता दल परिवार के एक होने का खिलवाड़ दिवास्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता। सही बात तो यह है कि मोदी के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील राजनीति का विकल्प पैदा होने की संभावनाओं को इस तरह की मारीच राजनीति से धक्का लगता है। मोदी के खिलाफ सशक्त विकल्प तैयार होना अवश्यसम्भावी है। यह विकल्प धर्मनिरपेक्ष होगा तो पूरी तरह ईमानदार धर्मनिरपेक्ष। ऐसा नहीं होगा कि समाजवादी पार्टी धर्मनिरपेक्षता की ठेकेदार भी है और यहां भाजपा शासित राज्यों की तरह ही सरकारी उद्घाटन और शिलान्यास वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच में ही होते हैं। संविधान और उच्चतम न्यायालय के निषेध के बावजूद इस पार्टी के नेता भी सरकारी परिसरों में भाजपा के नेताओं से दो कदम आगे बढ़कर भव्य मंदिर बनवाने के कायल हैं। विकल्प में ज्यादा लोकतांत्रिकता का गुण भी होना चाहिए और वंशवाद की तो उसमें बिल्कुल भी गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। इतिहास हमेशा विकल्प तैयार करने के लिए प्रस्तुत होता है क्योंकि इतिहास किसी व्यक्ति पर निर्भर होकर गतिमान नहीं होता। हू आफ्टर नेहरू एक समय यह सवाल होता था। फिर हू आफ्टर इंदिरा का सवाल आया। दोनों शख्सियत नहीं रहीं फिर भी देश सलामत रहा। जनता दल परिवार न होगा तो मोदी का विकल्प नहीं होगा इतिहास
और वक्त इसमें यकीन नहीं रखता।

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