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नेहरू को हाशिए पर डालने की कोशिश के पीछे सोच

मुक्त विचार
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आधुनिक भारत के निर्माता कहे गए देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू को आज सुनियोजित ढंग से अप्रासंगिक साबित करके हाशिए पर डालने की कोशिश की जा रही है। दूसरी ओर मरणासन्न हो चुकी कांग्रेस एक बार फिर नेहरू का नाम लेकर उठ खड़ी होने की जद्दोजहद में जुटी है। नेहरू को देश के लिए तमाम सकारात्मक योगदान के वास्ते याद किया जाता है लेकिन संघ परिवार उन्हें देश की कमजोरी का सबसे बड़ा कारण साबित करने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहता। आज जबकि संघ के पूर्व प्रचारक देश के प्रधानमंत्री हैं तब संघ के लिए नेहरू को देश का सबसे बड़ा खलनायक साबित करने का शानदार मौका है।
जाहिर है कि नेहरू ने कई गलतियां कीं। इसके बावजूद वे विश्व स्तरीय नेता थे इसमें कोई शक नहीं। कांग्रेस में आजादी के बाद जब नए प्रधानमंत्री के चुनाव के लिए मतदान कराया गया तो नेहरू सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी के बाद तीसरे नंबर पर थे लेकिन महात्मा गांधी ने वीटो करके नेहरू को प्रधानमंत्री निर्वाचित कराया। नेहरू गांधी जी के प्रिय जरूर थे लेकिन जहां तक नीतियों के स्तर की बात है नेहरू का रास्ता गांधीवाद से काफी जुदा था। फिर भी गांधी जी ने नेहरू को देश की बागडोर सौंपी। यह विपर्यास आजादी के बाद से लेकर अभी तक की देश की नियति को देखते हुए गांधी जी की सूझबूझ को साबित करता है। यह दूसरी बात है कि संघ परिवार इस मामले को नेहरू के प्रति गांधी के अंधमोह के रूप में दिखाने की कोशिश करे।
आजादी के बाद भारत ने स्वराज लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चलाने का निश्चय किया। इस देश के लोगों का जो माइंड सेट है उसमें लोकतांत्रिक व्यवस्था को सफल करना एक बड़ी चुनौती थी। आज निष्पक्ष दृष्टिकोण से आजाद भारत के इतिहास का मूल्यांकन करने वाला हर शख्स इस नतीजे पर पहुंचता है कि अगर नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री न होते तो इस देश में भी भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य देशों की तरह लोकतंत्र की अकाल मौत हो जाती और शायद पाकिस्तान की तरह यह देश भी और ज्यादा बंट जाता। नेहरू भारत के सबसे बड़े बेरिस्टरों में से एक मोतीलाल नेहरू के इकलौते पुत्र थे जिसकी वजह से उनकी शिक्षा दीक्षिा बहुत ही शाही अंदाज में हुई। आरंभिक शिक्षा उन्हें इलाहाबाद में ही उनके घर में दिलाई गई। इसके बाद वे इंग्लैंड भेज दिए गए जहां उन्होंने प्रसिद्ध हेरी स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद ग्रेजुएशन टे्रनिटी से किया। ला ग्रेजुएट वे कैैंब्रिज यूनिवर्सिटी से बने। ऐसे में उनका मिजाज बेहद सुकुमार था। अंग्रेजियत का उन पर जबरदस्त प्रभाव था। बावजूद इसके वे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े तो उन्होंने अपनी जिंदगी का सारा तौर तरीका बदल दिया। उन्होंने अंग्रेजों के विरोध में हुए आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया। पराकाष्ठा तो तब हुई जब 1929 में उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस का सम्मेलन लाहौर में हुआ जिसमें उन्होंने अंग्रेजों से पूर्ण मुक्ति का प्रस्ताव पारित कर स्वतंत्र भारत का पहला ध्वज फहराया।
अंग्रेजियत के माहौल में पले बढ़े नेहरू का यह कारनामा उनके क्रांतिकारी किरदार को उजागर करता है। दूसरी ओर जब वे गांधी जी के संपर्क में आए तो फेशनेबिल नेहरू से खादी का कुर्ता पायजामा और सफेद टोपी लगाने वाले नेहरू बन गए। इसमें उन्होंने कुछ भी अटपटापन महसूस नहीं किया। आजादी की लड़ाई के लिए बार-बार जेल जाना उन्होंने अपना शगल बना लिया। एक ओर सुख सुविधाओं के बीच रहने की आदत और दूसरी ओर देश की आन बान शान के लिए इन सबको कुर्बान करके सहर्ष संघर्ष व कठिनाइयों का रास्ता चुनने का साहस दिखाना नेहरू के संदर्भ में उनके त्यागमय व्यक्तित्व को उजागर करने वाला रहा और निश्चित रूप से इसकी बड़ी छाप देश के जनमानस पर पड़ी। नेहरू का सुदर्शन व्यक्तित्व भी एक फैक्टर था जिसकी वजह से गांधी ने उन्हें आगे रखना जरूरी समझा। इस व्यक्तित्व के आधार पर ही नेहरू करिश्माई नेता का विंब अपने लिए संजो सके जिससे राजशाही व अन्य चीजों को लेकर देश की जनता में जमी आस्था की गहरी पैठ को हिलाकर वे उसे लोकतांत्रिक चेतना में पिरोने का बड़ा काम कर सके।
गांधी की छाया में राजनीतिक परवरिश पाने वाले नेहरू का राजनीतिक चिंतन एकदम स्वतंत्र था इसीलिए उन्होंने गांधी जी की धार्मिकता को परे करके बहुलता वादी समाज वाले इस देश के लिए मुफीद धर्मनिरपेक्ष शासन की लीक बनाई और आज तक की देश की अखंडता कायम रहने की मुख्य वजह उनकी यही बुनियाद है। नेहरू की शक्ति का एक बड़ा रहस्य उनका अंतर्राष्ट्रीय विजन भी था। गुट निरपेक्ष आंदोलन के रूप में उन्होंने इस विजन को रूपायित किया। भारत के सफल प्रधानमंत्री के लिए नेहरू के विरोधी होते हुए भी मोदी नेहरू के ही इस गुर के कायल हैं। वीपी सिंह ने देश में सामाजिक बदलाव के लिए क्रांतिकारी भूमिका अदा की। इसके बावजूद वे सफल प्रधानमंत्री नहीं हो सके तो मुख्य वजह यह रही कि उन्होंने अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि मजबूत करने पर ध्यान नहीं दिया। दूसरी ओर मोदी इस मामले में शायद नेहरू को ही गुरु मानते हैं इसी कारण वे पहले दिन से ही अपने को विश्वस्तरीय ब्रांड बनाने की मशक्कत में जुटे हैं और इसकी वजह से देश के अंदर भी उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। बहरहाल गांधी जी आर्थिक मोर्चे पर कुटीर उद्योगों के समर्थक थे जिससे परे जाकर नेहरू जी ने देश में भारी उद्योग कायम किए। उनके बाद देश में जो प्रगति हुई और जिसका क्रम आज भी जारी है उसमें नेहरू का यह फैसला सटीक साबित हुआ।
नेहरू पर भले ही वंश और जाति विशेष का शासन बढ़ाने का आरोप लगता हो। देश के विभाजन और कश्मीर के मामले में ढुलमुल नीति अपनाने का आरोप लगता हो और चीन से देश को शिकस्त दिलाने का कलंक उनके मत्थे हो लेकिन यह सबकुछ हर उस नेता की तरह है जो अपनी लंबी पारी में कई चूक करता ही है और सफलता के साथ-साथ इतनी दीर्घावधि में कुछ विफलताएं अपने खाते में जोड़ लेना भी उसके लिए स्वाभाविक होता है। इसके बावजूद संपूर्णता में नेहरू ने अपनी प्रगतिशील नीतियों से देश को स्थिर बनाने में जो योगदान दिया वह अविस्मरणीय है। आज देश जिस संकीर्ण एजेंडे पर चल रहा है उससे कोई तात्कालिक तौर पर तो वाहवाही लूट सकता है लेकिन दूरंदेशी सोच वाले लोग भांप रहे हैं कि अल्पसंख्यकों के लिए नफरत से भरी शासन नीति देश के मुस्तकबिल के लिए बहुत ज्यादा अपशकुन कारी है। अखंड भारत की जो धरोहर नेहरू ने बनाई और अभी तक जो कायम है वह धरोहर नए शासक लुटा देने की स्थिति पैदा न कर दें यह आशंका दूरदृष्टा चिंतकों को परेशान कर रही है। नेहरू को पृष्ठभूमि में ढकेलने के पीछे केवल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से स्थाई बढ़त लेने का मकसद ही नहीं है बल्कि नेहरू जिस उदारवाद के प्रतीक हैं उससे देश को बेपटरी करने का अपशकुन कारी चिंतन भी इसमें निहित है। देर सवेर कट्टरवादी लोग भले ही इसको स्वीकार न करें लेकिन ढुलमुल सोच वाले लोगों को जिनकी तादाद बहुतायत में है इस मामले में अपनी गलती के लिए जरूर पछतावा करना पड़ेगा।

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