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आजम खां की तिलमिलाहट से राज्यपाल के घावों पर मलहम

मुक्त विचार
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उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक को अपने घावों पर अब मलहम का एहसास जरूर हुआ होगा। उनकी सरेचौराहे फजीहत कर रहे प्रदेश के अल्पसंख्यक मामलों और नगर विकास विभाग के मंत्री मो. आजम खां की सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह के घर उनके पौत्र और मैनपुरी के सांसद तेजू के तिलक में गर्मजोशी के साथ की गई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगवानी को लेकर जिस तरह से आजम खां ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है उससे उनके अंदर की तिलमिलाहट झलकती है। राज्यपाल राम नाइक को इसमें खुद को काफी सुकून मिला होगा क्योंकि कुछ लोगों के लिए परपीडऩ में ही सबसे ज्यादा सुख का स्रोत होता है और राज्यपाल नाइक के लिए तो परपीडऩ का यह सुख बहुत अधिक प्रीतिकारक इसलिए है कि उन्हें कई दिनों से परेशान किए हुए मो. आजम खां इससे खुद बहुत ज्यादा परेशान और झल्लाए नजर आए हैं।
ऐसा लगता है कि मो. आजम खां की इच्छा बिल्कुल नहीं रही कि जिन्हें वे गुजरात के मुसलमानों का हत्यारा बताते हैं उन्हें मुलायम सिंह अपने निजी आयोजन में सबसे ज्यादा महिमा मंडित करें लेकिन मुलायम सिंह ने इस मामले में उनकी बिल्कुल न सुनी। मुलायम सिंह लंगोट के पक्के हों या न हों लेकिन सिद्धांतों के पक्के तो बिल्कुल नहीं हैं। उनकी सारी प्रतिबद्धताएं राजनीतिक स्वार्थ साधन के लक्ष्य को ध्यान में रखकर गढ़ी गई होती हैं इसलिए अपनी प्रतिबद्धता को कभी भी शीर्षासन करा देना उनके बाएं हाथ का खेल है। खुद और अपने परिवार मात्र के पांच लोग ही लोक सभा में पहुंच पाने से मुलायम सिंह की जो राजनीतिक तौहीन हुई उससे वे हीनभावना से अंदर ही अंदर घिर गए हैं। कभी अपनी पार्टी को राष्ट्रीय विकल्प के रूप में उभारने और खुद को प्रधानमंत्री के सबसे मजबूत दावेदार के रूप में सामने लाने की डींग हांकने वाले मुलायम सिंह इस झटके से राष्ट्रीय राजनीतिक समंदर में नगण्य जीव बनकर रह गए थे। ऐसे में वे किसी तरह फिर राष्ट्रीय राजनीति के प्रमुख नेता के रूप में दर्जा पाने के लिए तड़प रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के साथ मुलायम सिंह के भारी राजनीतिक बैर के बावजूद उनके पैतृक गांव में अच्छा खासा समय उनके पौत्र की शादी में देकर नेता जी की यह पिपासा काफी हद तक तृप्त कर दी है। इस कारण मुलायम सिंह को इसमें अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि गंवाने का डर क्यों लगे आखिर मुसलमान उन्हें छोड़कर जाएंगे कहां। कांग्रेस किसी काम की बची नहीं हैं। बसपा की भी हालत मायावती पर लग रहे टिकटों की बिक्री के आरोप और उनके सिपहसलारों की लगातार बगावत से खराब हो चुकी है। इसके पहले लोक सभा चुनाव में शून्य सीटें मिलने का नतीजा उनकी पार्टी को लंबे समय के लिए राजनीतिक मैदान में दफन करने का कारण बन गया। मायावती अभी तक इससे उबरने के लिए बहुत कुछ नहीं कर पाई हैं। बहरहाल तेजू के तिलक के एक दिन पहले आजम खां ने मोदी के लिए गुजरात के मुसलमानों का हत्यारा बन गया मुल्क का बादशाह जुमला सोचसमझ कर दोहराया था ताकि भाजपा और मोदी चिढ़ जाएं और मुलायम सिंह के कार्यक्रम में उनके आने का कार्यक्रम व्यवधान का शिकार हो जाए पर मोदी ने गौर नहीं किया और भाजपा में दिल्ली विधान सभा चुनाव की हार की वजह से मोदी की छवि दरकने के बावजूद अभी इतना साहस नहीं है कि अपने नेता की इच्छा में बाधक बनने की जुर्रत करें इसलिए लक्ष्मीकांत वाजपेयी से लेकर उत्तर प्रदेश भाजपा के सारे नेता राजनीति अलग है और निजी संबंध व शिष्टाचार अलग है का राग अलापते हुए सौ-सौ जूते खाएं तमाशा घुसकर देखें की कहावत याद दिलाते रहे।
मुलायम सिंह के आमंत्रण को स्वीकार करने की पीड़ा राज्यपाल राम नाइक को भी अंदर ही अंदर कम नहीं होगी। उन्होंने उत्तर प्रदेश के राजभवन में उस समय प्रवेश किया जब लोक सभा चुनाव की भारी जीत से इतराए उमा भारती, साक्षी महाराज, योगी आदित्यनाथ सहित तमाम भाजपा नेता डेढ़ सौ से अधिक सपा एमएलए अपने संपर्क में होने की गप्पें हांक रहे थे जिससे लग रहा था कि अखिलेश सरकार कहीं कुछ ही दिनों की मेहमान साबित न हो जाए। इसी भ्रम के घटाटोप में राम नाइक ने अपनी शुरूआत राज्य सरकार के लिए रिंग मास्टर का रोल निभाने के अंदाज में की। कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार के मामले में राज्य सरकार की ढुलमुल नीति पर निशाना साधकर पहले तो राज्यपाल ने जनमानस की सराहना बटोरी लेकिन जब उन्होंने हर सार्वजनिक कार्यक्रम में इसे संपुट बना लिया तो लोगों को यह बात रास नहीं आई। राजभवन की भूमिका क्या है लोग उसी के अनुरूप उसके व्यवहार को पसंद करते हैं। राज्य सरकार से लोगों की नाराजगी कितनी भी हो पर एक हद के बाद वे राजभवन को प्रतिपक्ष के केेंद्र के रूप में देखना गंवारा नहीं कर सकते। इसी कारण राज्यपाल ने कुछ दिनों बाद आम जनता की तो सहानुभूति खो ही दी उन्हें राज्य सरकार को परेशान करने की वजह से अपनी केेंद्र सरकार से शाबाशी मिलने की जो उम्मीद थी उसमें भी उन्होंने विपरीत स्थिति देखी तो बेचारे राम नाइक सकपका से गए। इसी बीच मुलायम सिंह और अखिलेश यादव ने राज्यपाल की गरिमा का सम्मान करने का अभिनय बहुत ही कुशलता से अंजाम देकर उनकी विरोधी बयानबाजी की धार खत्म कर दी लेकिन दूसरी ओर बेलगाम बयानबाजी के लिए कुख्यात आजम खां को राम नाइक के पीछे लगा दिया कि वे उनको दुरुस्त करने में किसी तरह का लिहाज न करें।
पार्टी नेतृत्व की उम्मीदों के अनुरूप मो. आजम खां ने राज्यपाल पर हमलों की जबरदस्त बौछार कर डाली। न उन्होंने यह देखा कि उनके वाकबाण शोभनीय हैं और न ही अशोभनीय। राज्यपाल पर अपनी हत्या की योजना बनाने का आरोप लगाकर उन्होंने ड्रामेबाजी की इंतहां ही कर दी। साथ ही यह भी एलान कर दिया कि वे उनके खिलाफ सबूतों का गट्ठर इकट्ठा करके राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मिलेंगे। एक ओर मो. आजम खां उनकी पगड़ी उछालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे दूसरी ओर राज्यपाल के पास लाचारगी के अलावा कुछ नहीं बचा था। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह और अखिलेश को चाहिए कि वे अपने मंत्री के राज्यपाल के खिलाफ इस तरह के बयानों को लेकर फैल रही संवैधानिक अव्यवस्था का निराकरण करें। इसमें यह ध्वनि निहित थी कि अगर मो. आजम खां उनके खिलाफ विषवमन करना बंद नहीं करते तो उनके पास राज्य में संवैधानिक तरीके से शासन संचालन संभव नहीं रह गया है की रिपोर्ट केेंद्र को भेजने का ब्रह्म्ïाास्त्र आ जाएगा और उन्होंने इसका इस्तेमाल कर दिया तो राज्य सरकार के अस्तित्व पर बन आएगी लेकिन मुलायम और अखिलेश इसके बावजूद अविचलित रहे और उन्होंने राज्यपाल व आजम खां को खुद ही निपटो की तर्ज में छोड़ दिया। राज्यपाल वैसे राज्य सरकार के खिलाफ प्रतिकूल रिपोर्ट भेजने की सोचते भी लेकिन उनके सामने केेंद्र का रुख भी स्पष्ट होता जा रहा था। खास तौर से इस तनातनी के बीच मोदी द्वारा मुलायम सिंह के पौत्र के तिलक में शामिल होने की सहमति देने से तो राज्यपाल अपने आप को एकदम निहत्था और अकेला पड़ जाने की स्थिति सोचने को मजबूर हो गए।
राज्यपाल जब प्रधानमंत्री के सैफई पहुंचने के कारण खुद के भी पहुंचने की मजबूरी आ जाने से अंदर ही अंदर अपने को आहत महसूस कर रहे होंगे। उसी समय आजम खां का गुस्सा फिर भड़क जाने से उनको गर्मी के मौसम में शीतल हवाएं चल पडऩे का आनंद मिला होगा। आजम खां ने पहले तो सपा के अन्य नेताओं की तरह तेजू के तिलक में समय पर पहुंचने की बजाय मोदी, राज्यपाल और अमर सिंह के चले जाने का इंतजार किया जबकि वे और मुलायम सिंह कितने अंतरंग हैं यह जगजाहिर है। इसके बाद उन्होंने यह बयान देने में भी हिचक महसूस नहीं की कि मुलायम सिंह और नरेंद्र मोदी दोनों ही बादशाह हैं। वे कहीं भी आ जा सकते हैं। जाहिर है कि उनके रफीकुल मुल्क भी इस कचोट को लेकर उनके व्यंग्यबाण के निशाने पर आने से न बच सके। बहरहाल मुलायम सिंह का मोदी और आजम खां के बीच संतुलन साधने का नट कौशल अभी तो कामयाब हो गया है लेकिन आगे यह स्थिति उनके लिए जटिल चुनौती का कारण बनेगी तब इस मौकापरस्ती का अंजाम क्या होगा इसको लेकर अटकलें लगाना दिलचस्प होगा।

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