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नई कोपल को मौका के लिए मायावती भी लाईं पतझड़

मुक्त विचार
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बसपा के संस्थापक कांशीराम ने अपने उत्तराधिकारी के बतौर मायावती को मजबूत करने के लिए जब शुरूआती दौर में रामाधीन जैसे कई कद्दावर नेताओं को बिना कारण पार्टी से बाहर कर दिया था तो इस संंवाददाता ने उनकी इस कार्रवाई के औचित्य के बारे में एक पत्रकार वार्ता में सवाल किया जिस पर वे बोले कि पतझड़ में पुराने पत्ते गिरते हैं तभी नई कोपलें जन्म ले पाती हैं। इस तरह उन्होंने निष्कासन की कार्रवाई का कारण बताने से भी अपने को बचा लिया और निष्कासित नेताओं पर उन्हें कोई आरोप लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ी। कांशीराम का इतिहास ही शायद अब मायावती दोहरा रही हैं। वे आज उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहां उस समय कांशीराम थे। इस कारण उन्होंने भी पार्टी में पतझड़ लाकर पुराने पत्ते गिराने शुरू कर दिए हैं। बुंदेलखंड में उनकी कार्रवाई के बुलडोजर की चपेट में पूर्व ग्राम विकास मंत्री दद्दू प्रसाद आ गए हैं जो कल तक उनके अत्यंत विश्वासपात्र लोगों में शुमार थे। दस्यु सरगना ददुआ जिसने कभी बांदा और चित्रकूट जिलों में पैर जमाने में बसपा को बहुत मदद दी थी और जिसके मारे जाने से एक बड़ी कौम बसपा के खिलाफ चली गई। मायावती ने अपनी सरकार में उसका एनकाउंटर पुलिस से इसीलिए करवाया क्योंकि दद्दू प्रसाद यही चाहते थे। इस कारण यह सवाल होना लाजिमी है कि आखिर ऐसी क्या वजह हो गई जिससे दद्दू प्रसाद उनकी नजरों से उतर गए। आज मायावती पार्टी में सर्वमान्य नेता हैं और उनके नेतृत्व को कोई चुनौती दे सके इसकी संभावना भी फिलहाल एक प्रतिशत तक नहीं बची है। इन हालातों की रोशनी में उक्त सवाल और ज्यादा जरूरी लग रहा है।
दद्दू प्रसाद के निष्कासन का असर बुंदेलखंड में बसपा के असर पर गहरा घाव करने वाला साबित हो सकता है। बसपा के इतिहास में बुंदेलखंड वह अंचल है जिसकी अलग ही अहमियत है। वजह यह है कि इसी अंचल से बसपा ने चुनावी फतह का खाता खोलना शुरू किया था। 1989 के विधान सभा चुनाव में बसपा के पक्ष में जीत का पहला एलान हुआ था और यह एलान था जालौन जिले की कोंच सीट से चैनसुख भारती के निर्वाचन का जिन्हें बाद में मायावती ने पहली बार अपनी सरकार गठित होने पर कैबिनेट मंत्री बनाया। चैनसुख भारती कांशीराम के जमाने के मिशनरी नेता हैं लेकिन मायावती ने पार्टी में अपना दबदबा कायम करने के बाद उन्हें भी हाशिए पर ढकेल दिया था। यह दूसरी बात है कि चैनसुख भारती ने इसके बावजूद उनके खिलाफ मुंह खोलने की जुर्रत नहीं की जबकि दलित नेता होने की वजह से अगर वे ऐसा करते तो मायावती को पार्टी के इस सबसे मजबूत गढ़ में उसी समय काफी नुकसान हो सकता था। मायावती ने बुंदेलखंड में दलितों में एक समय बृजलाल खाबरी को सर्वेसर्वा बना दिया था जब वे 1999 में जालौन जिले से लोकसभा की सीट स्वयं जीत हासिल करके पार्टी की झोली में डालने में सफल रहे थे जबकि इसके पहले जिले में सारी विधान सभा सीटें जीतने का रिकार्ड बनाने के बावजूद बसपा यहां की लोकसभा सीट का चुनाव नहीं जीत पा रही थी पर पार्टी के लिए इतने लकी होने के बावजूद वे भी मायावती की नजरों में गिरने से अपने को नहीं बचा पाए। 2007 के विधान सभा चुनाव के पहले उन्हें भी बहुत ही नाटकीय ढंग से मायावती ने बसपा से निकाल फेेंका था पर उन्होंने भी उनके खिलाफ अपने असंतोष का संवरण किया और कहीं भी बगावती तेवर प्रकट नहीं होने दिए इसलिए तीन साल बाद मायावती ने उन्हें यह कह चुकने के बावजूद पार्टी में वापस ले लिया कि अगर बृजलाल नाक भी रगड़ेगा तब भी उसे कभी पार्टी दोबारा नहीं अपनाएगी।
मायावती को दद्दू प्रसाद से भी उम्मीद रही होगी कि वे भी निष्कासन से हुए अपमान का घूंट चुपचाप पी लेंगे और बाद में जब वे रहम की बहुत भीख मांगेंगे तब उन्हें भी क्षमा कर दिया जाएगा पर यह भी एक तथ्य है कि इतिहास अपने आपको हमेशा नहीं दोहराता। दद्दू प्रसाद ने मायावती के आंकलन को फेल कर दिया। उन्होंने अगले ही दिन बगावती तेवर साध लिए और टिकट के बहाने पार्टी को बेचने की उनकी कोशिश के खिलाफ जंग छेडऩे का एलान कर दिया। दद्दू प्रसाद बहुत अच्छे आइडिलाग हैं और उनमें तार्किक ढंग से अपनी बात रखने की क्षमता है इसलिए मायावती उनके अभियान से घबड़ा गईं। महोबा के बाद जब उन्होंने 6 फरवरी को उरई में अपने समर्थकों के साथ गोपनीय तौर पर अनौपचारिक बैठक की तो पार्टी हाईकमान के इशारे पर बसपा के उग्र कार्यकर्ता वहां पहुंच गए। उन्होंने तोडफ़ोड़ और उपस्थित लोगों के साथ झूमाझटकी की। यहां तक कि दद्दू प्रसाद को भी एक-दो हाथ पड़ गए। मौके पर पुलिस पहुंच गई थी लेकिन दद्दू प्रसाद ने पैंतरा बदल दिया। बजाय घटना की रिपोर्ट कराने के उन्होंने रणनीति के तहत मायावती से सीधे टकराव का रास्ता बदल लिया तब से दद्दू प्रसाद ने कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं किया है पर उनकी हर गतिविधि मायावती के रडार पर है। जालौन जिले में 17 फरवरी को माधौगढ़ थाने के सुरपतपुरा में ठाकुरों ने एक दलित युवक अमर सिंह के साथ बदसलूकी कर दी। यह घटना माधौगढ़ थाने में रिपोर्ट दर्ज होने के कारण दब सी गई थी लेकिन दद्दू प्रसाद अमर सिंह को लेकर झांसी में डीआईजी से मिलने चले गए और उन्होंने घटना का सनसनीखेज प्रस्तुतीकरण किया। मायावती को उसी दिन यह खबर लग गई और वे इसके बाद इतनी विचलित हुईं कि रात में ही उन्होंने पार्टी के बुंदेलखंड प्रभारी एमएलसी तिलक चंद्र अहिरवार की क्लास ले ली। तत्काल जालौन जिले के पार्टी अध्यक्ष मान सिंह ने घटना पर कड़ा बयान जारी किया। तिलक चंद्र अहिरवार ने इस मुद्दे को विधान मंडल के बजट सत्र में जोरदारी से उठाने का एलान कर डाला। जाहिर था कि यह सब दद्दू प्रसाद की सक्रियता से पैदा हुए संकट के अंदेशे का आनन-फानन में प्रबंधन करने की योजना के तहत हुआ था।
दद्दू प्रसाद गोपनीय तौर पर बसपा से जुड़े रहे या अभी भी बसपा में मौजूद घनघोर मिशनरी दलित नेताओं से तार जोडऩे की कोशिश कर रहे हैं। रामाधीन से, जिन्हें वह अपना मार्गदाता कहते हैं उनके कांग्रेस में होते हुए भी अपने अभियान की कामयाबी के लिए उन्होंने खुले तौर पर आशीर्वाद मांगा है लेकिन गोपनीय तौर पर अपने लोगों के जरिए चैनसुख भारती को भी कुरेदने की कोशिश की है। दद्दू प्रसाद की बृजलाल खाबरी से बिल्कुल नहीं पटती लेकिन बृजलाल खाबरी को भी मायावती ने इन दिनों बुंदेलखंड बदर कर रखा है जिसे लेकर उनमें बेचैनी होना स्वाभाविक है और उनकी इस बेचैनी को अपने ढंग से कैश कराने में भी दद्दू प्रसाद पीछे नहीं हैं। दद्दू प्रसाद की ब्यूह रचना मायावती के लिए बेहद घातक है। इस कारण मायावती को अपने गुरू कांशीराम की रणनीति की लगता है शिद्दत से याद आ रही है। भले ही कांशीराम का ही नाम लेकर दद्दू प्रसाद उनके खिलाफ अपनी चुुनौती को प्रबलतम बना रहे हैं। जिस तरह से कांशीराम ने उस समय पार्टी में उभरते मायावती के नए नवेले नेतृत्व की कोपल को महत्व दिया था वैसे ही मायावती भी बुंदेलखंड में पार्टी में नए अखुआ फूटने की जमीन तैयार कर रही हैं। उन्होंने बड़ा सांगठनिक फेरबदल इस अंचल में किया है जिसमें पार्टी की बड़ी जिम्मेदारियां सचिन पलरा जैसे छात्र नेताओं को सौंप दी हैं। उन्होंने दलितों में नए खून के लगभग आधा दर्जन दलित नेता रातोंरात बुंदेलखंड में उभार दिए हैं जो उनका जबरदस्त जनरेशन गैप की वजह से मनोवैज्ञानिक तौर पर पूरा अदब करने को मजबूर रहेंगे। साथ ही उनकी युवा उमंग पुराने गढ़ में पार्टी में नए ज्वार को उठाने का भी लाभ दे सकती है। मायावती बनाम दद्दू प्रसाद की कुरुभूमि बन चुके बुंदेलखंड में इस जद्दोजहद के बीच राजनीति का रंग बेहद चटख हो गया है।

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