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एक मुहिम पचनद की पवित्रता को बचाने की

मुक्त विचार
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बढ़ती आबादी के साथ-साथ जीवनशैली में आए बदलाव की वजह से पानी की खपत कई गुना और ज्यादा बढ़ गई है। एक ओर इसकी वजह से जल उपलब्धता का संकट पैदा हो गया है तो दूसरी ओर बढ़ते प्रदूषण की वजह से साफ पानी की समस्या भी गहराने लगी है। ऐसे में बड़ी सदानीरा नदियों को शक्ति देने के लिए बरसाती नालों और छोटी नदियों के सिकुड़ते जा रहे अस्तित्व को बचाने की जिम्मेदारी अहम हो गई है।
नदी प्रदूषण किस खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है इसकी वानगी इटावा और जालौन की सीमा पर प्रवाहित होने वाला पचनद है। इसमें यमुना और उसकी सहायक नदियों चंबल, काली सिंध, पहुज और क्वारी नदियों का संगम है। विश्व में पांच नदियों के एक मात्र संगम का यह उदाहरण अनूठी प्राकृतिक धरोहर के बतौर विद्यमान है। पांच नदियों के मिलने से यह तो सुस्पष्ट ही है कि यह संगम कितना प्रांजल है। इसके बावजूद पचनद तक का पानी कितना प्रदूषित हो चुका है यह देखना हो तो जालौन जिले के कंजौसा गांव के घाट पर पहुंचिए। इसके घाट के इर्दगिर्द पचनद में दूर तक मानव शवों के अïवशेष दुर्गंध फैलाते हुए बिखरे पड़े हैं। यह शव उन मृतकों के हैं जिनके परिजन अंत्येष्टि के लिए विधिविधान से जलधारा के बीच उन्हें प्रवाहित करते हैं। पुराने लोग बताते हैं कि पानी साफ करने वाले जलचर इन शवों को घंटों में चट कर जाते थे लेकिन यह अतीत की बात है। अब पचनद का पानी भी प्रदूषण के कारण इतना जहरीला हो चुका है कि जलचरों की अधिकांश प्रजातियों का इसकी वजह से सफाया हो गया है। कई-कई दिन तक इस वजह से शवों का निस्तारण नहीं हो पाता और वे लहरों के साथ किनारे पर आ लगते हैं। पचनद में यह स्थिति तब है जब यमुना को छोड़कर इसकी अन्य घटक नदियों के किनारे न तो कोई शहर है और न ही औद्योगिक इकाई। यहां प्रदूषण में सामाजिक धार्मिक कुरीतियों, शीशम जैसे वृक्षों के सफाए और बरसाती नाले खत्म हो जाने के कारकों ने अहम भूमिका निभाई है। पानी पर महिलाओं की प्रथम हकदारी परियोजना के तहत परमार्थ स्वयंसेवी संस्था ने पचनद को साफ करने का बीड़ा उठाया। परियोजना क्षेत्र के गांव मल्लाहनपुरा के लोगों को इस क्रम में तैयार किया गया। उन्होंने पहुज में गिरने वाले नालों की सफाई से अभियान का श्रीगणेश किया। बेशरम व अन्य खरपतवार पेड़ों के उगे होने से यह नाले अपना अस्तित्व खो चुके थे। इनकी सफाई से गांव के आसपास के सभी नाले पुनर्जीवित हो गए हैं। गांव के किनारे पहुज नदी के जल स्तर में वृद्धि के रूप में इसका प्रत्यक्ष सकारात्मक प्रभाव दृष्टि गोचर होने लगा है। दूसरी ओर इसके सात्विक प्रभाव ने आसपास के गांवों के लोगों को भी इस दिशा में काम करने के लिए आकर्षित किया है। पहुज क्षेत्र में नालों की सफाई का अभियान नदी स्वच्छता का रूप ले चुका है। इसके पहले 2011 में जलपुरुष राजेंद्र सिंह के मार्गदर्शन में कंजौसा में पचनद महोत्सव आयोजित कर इसमें शामिल नदियों के लिए जनचेतना के निर्माण का कारगर प्रयास किया गया। पूरे बुंदेलखंड में यह प्रयास मील का पत्थर साबित हो रहा है। अगली बारी स्थानीय नदी नून को बचाने की है। नालों और छोटी नदियों के सूखने से सदानीरा नदियों का वेग और जल समेट तो कमजोर पड़ता ही है साथ ही अतिक्रमण जैसी गतिविधियां भी शुरू हो जाती हैं जो हमेशा के लिए विलुप्त नदी नालों के पुनर्जीवन की संभावनाओं पर विराम लगा देती हैं। इस कारण जागो बुंदेलो जागो अपनी नदी माताओं को बचाने के लिए।

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