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पानी को लेकर जंग में तमाम लोगों के मारे जाने की आशंका भले ही कभी चरितार्थ न हो लेकिन गंदे और खराब पानी को पीने की मजबूरी को आदत बना लेने से बीमारियों से बड़ी तादाद में लोगों के बेमौत मरने का सिलसिला तो जारी ही है। इसी के बीच स्वच्छ पेयजल के अधिकार के लिए आंदोलनकारी जंग लडऩे वाली हमीरपुर जिले के सरीला विकास खंड अंतर्गत बंगरा गांव की महिलाओं की कामयाबी ने एक नई कौंध जगा डाली है।
पानी पर महिलाओं की प्रथम हकदारी अभियान से जुड़कर इस गांव की स्त्रियों ने पानी पंचायत का गठन किया जिसकी हर महीने होने वाली बैठक ने उनके चक्षु खोलने शुरू कर दिए। जल ही जीवन है यह कहावत तभी सच्ची है जब पीने के लिए शुद्ध और स्वच्छ पेयजल मिले अन्यथा जल अमृत की जगह गरल बना हुआ है। पानी पंचायत ने इस हकीकत से रूबरू कराया तो वे स्वच्छ पानी के अधिकार को हासिल करने के लिए कमर कस कर खड़ी हो गईं।
गांव के व्यस्ततम मेडिकल प्रैक्टिसनर डा. बलराम सचान ने बताया कि गांव की जलकर इकाई से आपूर्ति घटिया पाइप लाइनों के बस्र्ट होने से बाधित हो गई। इसी बीच गांव की सड़क बनी तो रही सही कसर कई जगह पाइप लाइन उखड़ जाने ने पूरी कर दी। एक साल तक गांव वाले हर अधिकारी से मिलते रहे पर किसी को उन पर रहम नहीं आया जबकि लोग पानी का दूसरा साधन न मिलने से गांव के कच्चे कुंओं से कीचड़ युक्त पानी प्यास बुझाने के लिए लाने लगे थे जिसमें कीड़े बिलबिलाते रहते थे। पानी पंचायत की बैठकों से महिलाओं का एकदम रूपांतरण हो गया। जो युवतियां अच्छी तरह बोल नहीं पाती थीं उन्होंने डीएम और अन्य अफसरों से उनकी स्थिति के प्रति संवेदनशीलता न दिखाने के लिए इतने कड़े लहजे में बात की कि गांव वाले दांतों तले उंगली दबाकर देखते रह गए। महिलाओं से मिली इस फटकार से प्रशासन भी सहमे बिना नहीं रहा। आखिर गांव में पूरी पाइप लाइन नए सिरे से बिछवाने का फैसला हुआ। 1720 मीटर पाइप लाइन बिछाने के लिए 299386 रुपए का स्टीमेट तैयार हुआ। 275555 रुपए का बजट इसके लिए पानी पर महिलओं की प्रथम हकदारी परियोजना का संचालन कर रही परमार्थ स्वयंसेवी संस्था ने दिया तो ग्राम पंचायत ने भी इसमें 23830 रुपए का अंशदान कर सहभागिता की।
घरों में स्वच्छ पानी की व्यवस्था हो जाने से गांव के लोगों के हालात किस करिश्माई ढंग से सुधरे इसकी सबसे बड़ी गवाह है इस साल हाईस्कूल बोर्ड की परीक्षा अव्वल दर्जे में पास करने वाली मंजू। मंजू बताती है कि गांव में चंद हैंडपंप हैं। जब पाइप लाइन की सप्लाई ठप हो गई तो उन पर पानी भरने के लिए वह सुबह से लाइन में लग जाती थी और दोपहर दो बज जाते थे फिर भी उसका नंबर नहीं आ पाता था। वह न पढ़ाई कर पा रही थी और न अन्य कामों में हाथ बटा पा रही थी। अब पानी भरने से निजात मिला तो उसे पढ़ाई का पूरा मौका मिल गया जिसकी वजह से इस बार मन लगाकर उसने परीक्षा में तैयारी की। उसे 63.39 प्रतिशत माक्र्स मिले हैं जिसके कारण हर जगह उसे शाबासी मिल रही है। नतीजतन वह बहुत खुश है। उसकी कई और सहेलियों ने भी इसी तरह की बात दोहराई। अन्य महिलाओं यहां तक कि पुरुषों ने भी पानी भरने के लिए घंटों मशक्कत से छुटकारा मिल जाने के बाद वक्त का बेहतर ढंग से इस्तेमाल करने के अपने खुशनुमा अनुभव सुनाए।
कुल 2145 की आबादी के बंगरा गांव में 1128 पुरुष और 1007 महिलाएं हैं। अनुसूचित जाति के लोगों की तादाद 486 है। परियोजना में कार्यरत जल सहेली सरोज व मंजूलता गुप्ता को पहले पानी पंचायत की बैठक के लिए महिलाओं को इकट्ठा करने में ऐड़ी चोटी का जोर लगा देना पड़ता था लेकिन अब तो मासिक बैठक का दिन आने के पहले ही महिलाएं खुद पूछने लगती हैं कि इस बार की बैठक कब और कहां होगी। गांव के बड़े हिस्से में ऊंचाई पर होने के कारण अभी भी पानी नहीं पहुंच पा रहा। पानी पंचायत की बैठक में इस समस्या के निराकरण के लिए कई प्रस्तावों पर विचार हुआ है। हैंडपंपों की तादाद भी बहुत कम है और ज्यादातर हैंडपंप ठप पड़े हैं। पर्याप्त हैंडपंप लगवाने के लिए महिलाएं अधिकारियों के सामने प्रभावी प्रदर्शन करने की योजनाएं बना रही हैं। परियोजना समन्वयक सतीश कहते हैं कि मंजिलें अभी और भी हैं यह नारा लगाते हुए उत्साहित पानी पंचायत पानी से जुड़े मुद्दों के साथ-साथ व्यापक सामाजिक मुद्दों पर लाइन आफ एक्शन का तानाबाना बुनने में जुटी हुई है।
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