Menu
blogid : 11660 postid : 915805

बाजारू भगवान और भारत रत्न

मुक्त विचार
मुक्त विचार
  • 478 Posts
  • 412 Comments

क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर से भारत रत्न वापस लेने के लिए जबलपुर हाईकोर्ट में दायर याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली गई है। याचिका कर्ता का कहना है कि वे अपनी प्रसिद्धि का उपयोग विज्ञापनों में काम करके व्यवसायिक लाभ के लिए कर रहे हैं जो भारत रत्न की गरिमा के खिलाफ है। विधि विशेषज्ञों का मानना है कि हाईकोर्ट इस याचिका में सचिन तेंदुुलकर के खिलाफ फैसला सुना सकता है।
सचिन तेंदुलकर के खिलाफ यह कार्रवाई ऐसे समय सामने आई है जब क्रिकेट की दुनिया के एक और किंग आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी की मदद सरकार में बैठे लोगों द्वारा करने की वजह से राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। मोदी गेट के नाम से चर्चित हो चुके इस मामले में आज प्रधानमंत्री से सहमति लेकर गोवा के मुख्यमंत्री ने राज्य के पुलिस कमिश्नर का जवाब तलब किया है। उनसे अंतरंग संबंध के नाते राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहद नाराज हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जब उन्हें मुलाकात देने का समय देने से इनकार कर दिया था तब तो यह तक अफवाह फैल गई थी कि राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन किया जाएगा लेकिन बाद में संघ का दबाव पड़ा तो मोदी को उन्हें अभयदान देना पड़ा। अगर ललित मोदी की बिनाह पर वसुंधरा राजे को हटाया जाता तो फिर शायद सुषमा स्वराज की भी केेंद्रीय मंत्रिमंडल से विदाई तय करनी पड़ती। संयोग से दोनों को ही लेकर प्रधानमंत्री शुरू से ही सहज नहीं हैं। वसुंधरा राजे पर एक ओर तो राजनाथ सिंह का ठप्पा लगा हुआ है तो दूसरी ओर उन्होंने शुरू में मोदी को नजरअंदाज करने की कोशिश की थी इसलिए मोदी को उनसे अपना हिसाब चुकता करने का अवसर मिला तो राजनाथ आड़े आ गए। इस समय संघ भी मोदी के पार्टी और सरकार में निरंकुश वर्चस्व को भविष्य के लिए ठीक नहीं मान रहा और राजनाथ की ट्यूनिंग संघ प्रमुख से बहुत अच्छी है इसलिए संभव है कि संघ प्रमुख ने भी वसुंधरा राजे के लिए वीटो लगा दिया हो। इस समय सरकार की उपलब्धियों के चर्चे एक कोने में पड़ गए हैं जबकि चर्चाओं के केेंद्रबिंदु में भाजपा की अंदरूनी उठापटक छाई हुई है जिसका नुकसान मोदी को अपनी लोकप्रियता के क्षरण के रूप में देखने को मिल रहा है।
बहरहाल असल मुद्दा यह है कि कांग्रेस तो आधुनिकों की पार्टी होने की वजह से करने से रही थी लेकिन परंपरा और संस्कृति की बात करने वाली भाजपा का नेतृत्व भी क्रिकेट को बदनाम खेल के रूप में संज्ञान में लेने के लिए तैयार नहीं है जबकि हकीकत यही है। क्रिकेट का खेल राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए कलंक है क्योंकि यह केवल उन देशों में खेला जाता है जो कभी न कभी इंगलैंड के गुलाम रहे। इस मनोवैज्ञानिक नफरत को छोड़ भी दिया जाए तो देश की जलवायु की दृष्टि से यह खेल भारत के लिए अनुपयुक्त है। इस खेल में दस साल के अंदर सौ से भी कम खिलाड़ी ऐसे तैयार होते हैं जो अरबपति और खरबपति बनने की कोटि में पहुंच जाएं लेकिन करोड़ों किशोर जो उनका अनुकरण करते हैं क्रिकेट के खेल में गर्म मुल्क होने की वजह से अपनी बहुमूल्य ऊर्जा बर्बाद कर देते हैं। चिकित्सक और स्वास्थ्य विज्ञानियों का मत इस बारे में लिया जा सकता है। चतुर देश ऐसे खेल को अपनाते हैं जो पेशेवर खिलाडिय़ों के कैरियर को चमकदार बनाए लेकिन साधारण लोग ऐसे खेलों के लिए प्रेरित होकर बेहतर तंदरुस्ती की नैमत हासिल कर सकेें। चीन ने एथलीट और जिमनास्ट पर जोर देकर खेलों के चुनाव में एक उदाहरण स्थापित किया है जिससे नशे की लत में गर्क वहां के नौजवानों का स्तर सुधरा और उन्होंने नशे से छुटकारा पाकर अपनी ऊर्जा व प्रतिभा का भारी लाभ उस देश के विकास में दिया। दूसरी ओर भारत है जिसको आजादी के समय विरासत में राष्ट्रीय खेल के रूप में हाकी मिली थी जिससे यहां के नौजवानों में भारी स्फूर्ति का संचार होता था लेकिन देश की जलवायु के अनुकूल फुटबाल, कुश्ती, दौड़ आदि खेलों से मुंह मोड़कर यहां क्रिकेट के प्रति जिस तरह का मोह दिखाया गया वह आश्चर्यजनक है।
क्रिकेट कुछ लोगों के फायदे की चीज है। इसने यह साबित कर दिया कि इस देश में आम आदमी बाजार के खिलवाड़ की कठपुतली भर है। क्रिकेट के जरिए सट्टेबाजी गांव गांव तक पहुंची और युवा पीढ़ी को इसने पूरी तरह से अपने में ग्रसित कर लिया है जिसकी वजह से नैतिक संस्कार छिन्नभिन्न होकर रह गए हैं। जाहिर है कि इस सट्टेबाजी से किंग बनने वाले ललित मोदी जैसे लोग अपनी जीवनशैली से लेकर देशप्रेम तक में उच्छृंखल रवैए का प्रदर्शन करते हैं। क्रिकेट लंपट पूंजी को बढ़ावा देती है जिससे दूरगामी तौर पर मूल्यों पर आधारित मानव सभ्यता का विगलन हो रहा है। दूसरी ओर क्रिकेटरों के भी जीवन का एक ही ध्येय है कि वे इसके इंद्रजालिक तानेबाने के कारण लोगों में अपने प्रति बुने गए सम्मोहन को कैसे कैश कराएं। इसके लिए वे उनकी अपने प्रति आस्था का दोहन तमाम कंपनियों के बेजा प्रोडक्ट को बिकवाने में करें। क्रिकेटरों को मौका मिला है तो वे ज्यादा पैसे के लिए देश की टीम छोड़कर प्रतिद्वंद्वी विदेशी टीम में शामिल होने से भी नहीं हिचके। इनका सामाजिक सरोकारों से कोई लेनादेना नहीं है। सिर्फ अपने ऐश्वर्य के लिए जीने वाले लोगों को इस देश की परंपरागत व्यवस्था में वे कितने भी समृद्ध क्यों न हो जाएं कभी सम्मान नहीं मिला लेकिन आज उसी कोटि में आने वाले क्रिकेटर भगवान का दर्जा हासिल कर रहे हैं। भगवान का इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है। सचिन तेंदुलकर के मंदिर बन गए और उन्हें भगवान का खिताब मिल गया। रही सही कसर उनको भारत रत्न देकर पूरी की गई। हालांकि यह काम मोदी सरकार ने नहीं मनमोहन सरकार ने अपनी राजनीतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए किया था लेकिन जब आप सांस्कृतिक आक्रमण के प्रभाव को दूर करने और देश की गौरवमयी मान्यताओं को बहाल करने की शपथ लेकर सत्ता तक पहुंचे हैं तब आपको तो दृढ़ता दिखानी चाहिए लेकिन यह तब हो सकता है जब आप में अंदर अपनी चीजों को लेकर नाज हो। जिस वैभव को पश्चिमी प्रतिमानों के तहत श्रेष्ठता के रूप में स्थापित किया गया है उसके आगे नतमस्तक होकर अपनी शपथ भूल जाना आंतरिक दरिद्रता और हीनभावना का परिचायक है। इस देश ने उन्हें अलंकृत किया है जो समाज के लिए जिए हैं और जिनका जीवन त्याग का दूसरा रूप है। गांधी के लिए महात्मा और जयप्रकाश जी के लिए लोकनाायक के अलंकरण पर कोई सरकार मोहर नहीं है लेकिन यह अलंकरण भारत रत्न से नहीं नोबेल पुरस्कार से भी ऊंचे हैं और रहेंगे। इन महापुरुषों को समाज द्वारा दी गई स्वत: स्फूर्त उपाधियां जो महिमा की एवरेस्ट साबित हुई उनसे कुछ सीखा जाना चाहिए कि उपाधियों का हकदार भारत जैसे देश में किस आचरण के लोग हैं। जबलपुर हाईकोर्ट सचिन तेंदुलकर के बारे में जो भी फैसला करे लेकिन भारत सरकार को इससे पहले ही सचिन से पूछ लेना चाहिए कि वे वेंडरगीरी बंद करने को तैयार हैं या नहीं और अगर उच्च स्तर की मर्यादा का वरण करने का ताव उनमें नहीं है तो उनसे सर्वोच्च नागरिक अलंकरण क्यों न छीन लिया जाए। साथ ही क्रिकेट के खेल के महिमा मंडन पर मोदी सरकार को उसी तरह विराम लगाने की शुरूआत कर देनी चाहिए जैसे विदेशी फंडिग से देश के अंदर हस्तक्षेप बढ़ाने वाले गैर सरकारी संगठनों के प्रति उसने सख्ती की है। क्रिकेट को भगवान के दर्जे से नीचे लाने का काम केवल एक औपनिवेशिक खेल को उसकी औकात तक सीमित करने का ही काम नहीं होगा बल्कि यह प्रस्थान बिंदु है जिससे सारे संसार और भारतीय समाज को यह संदेश देने की शुरूआत होनी चाहिए कि हिंदुस्तान बाजारवाद का मोहरा भर नहीं है। वह तरक्की करेगा लेकिन बुनियादी नैतिक मान्यताओं और मर्यादाओं की परिधि के अंदर। समाज में जो सचमुच सत्यम शिवम सुंदरम है उसे बनाए रखते हुए प्रगति की लीक गढऩे का काम भारत को करना है। मायावी बाजार के सम्मोहन में अंधे हो जाना भारत को शोभा नहीं देता। इस दुनिया के निकृष्ट होते जा रहे प्रतिमानों को बदलना चाहिए और यह काम भारत को करना है। खासकर संस्कृतिवादी सरकार के युग में इस लक्ष्य से कोई समझौता गवारा नहीं होना चाहिए।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply