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एंटी क्लाइमैक्स की ओर जाता पत्रकार हत्याकांड

मुक्त विचार
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शाहजहांपुर के पत्रकार जोगेंद्र सिंह की जलकर मौत के मामले में एंटी क्लाइमैक्स जैसी स्थितियां बन रही हैं। जिस तरह जोगेंद्र सिंह ने मृत्यु पूर्व बयान दिया था उससे यह मामला सनसनीखेज हो गया था। जो लोग घटना का इतर पक्ष सामने रखना चाहते थे वे भी भावनाओं का बवंडर देखकर चुप्पी साध गए थे। दूसरी ओर जोगेंद्र सिंह के मृत्यु पूर्व बयान से स्वाभाविक तौर पर देश भर के पत्रकारों में गुस्से का जबरदस्त उबाल आ गया था। अब जबकि उनके परिवार से भेंट करके मुख्यमंत्री ने उन्हें तीस लाख रुपए की आर्थिक सहायता और दो आश्रितों को सरकारी नौकरी का आश्वासन दे दिया है तो अब माहौल शांत है और इसमें उनकी मौत की छानबीन अब कायदे से आगे बढ़ती दिखाई दे रही है।
पुलिस ने फिलहाल उनके जलने की घटना के बारे में फोरेंसिक जांच की आरंभिक रिपोर्ट पर अपना जो निष्कर्ष बयान किया है उससे घटना की एक दूसरी तस्वीर उजागर हो रही है। फोरेंसिक जांच की रिपोर्ट में बताया गया है कि उनके शरीर के बांए हिस्से में ज्यादा घाव हैं। यह तभी हो सकता है जब दांए हाथ से काम करने वाला कोई व्यक्ति अपने शरीर पर ज्वलनशील पदार्थ डालता है। तो क्या यह बात सही है कि जोगेंद्र सिंह ने खुद ही अपने को आग लगाई है। आपराधिक घटना को लेकर किसी भी विलक्षण संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि कहा जा सकता है कि मंत्री को पहले दिन सेे ही बचाने में लगी पुलिस तथ्यों को तोड़मरोड़ रही है लेकिन अगर तटस्थ दृष्टि से सोचा जाए तो पुलिस के लिए हेराफेरी करना आसान नहीं रह गया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों की ही निगाह अब इस मामले पर है। याचिका कर्ताओं के वकील बहस में एक एक बिंदु की पैनी पड़ताल करेंगे इसलिए पुलिस अधिकारी जानते हैं कि उन्होंने जरा भी चालाकी की और पकड़ गए तो लेने के देने पड़ सकते हैं। राज्य सरकार भी अपने मंत्री को बचाने के लिए अब ज्यादा जोखिम मोल नहीं ले सकती क्योंकि अगर अधिकारी कोर्ट के द्वारा नपे तो यह उसकी भी साख पर बहुत भारी साबित होगा।
बहरहाल इंसाफ के लिए एकतरफा ढंग से सोचना ठीक नहीं है। जो तथ्य आ रहे हैं उनके निरपेक्ष विवेचन के बाद ही निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए। कानूनी तौर पर तो फोरेंसिक रिपोर्ट के बावजूद मंत्री और इसमें फंसे पुलिस अफसरों की मुश्किलों का अंत नहीं होगा क्योंकि हमारी न्यायिक प्रणाली तकनीकी है। इस कारण मृतक का मृत्यु पूर्व बयान आपराधिक मामले में बहुत ही अहम हो जाता है और यह बयान पुलिस अफसरों और मंत्री को जोगेंद्र सिंह को जलाने के मामले में पूरी तरह दोषी ठहराता है।
इस सारे मामले से सबक लेकर पत्रकारों की भूमिका पर एक बार फिर चिंतन करने की जरूरत है। पत्रकार समाज में सम्यक चेतना का निर्माण करके सड़ीगली व्यवस्था के बदलने का आधार तैयार करते हैं। यह एक स्लो मोशन वाली मूवी की तरह है जिसमें थ्रिल की ज्यादा गुंजायश नहीं होनी चाहिए। पश्चिम के प्रभाव से भंडाफोड़ की पत्रकारिता का जो नया ट्रेंड उभरा है उसकी वजह से तमाम विसंगतियां भी सामने आ रही हैं। बहरहाल यह मौका पत्रकार और पत्रकारिता के ज्यादा पोस्टमार्टम का नहीं है। जोगेंद्र सिंह का परिवार उनकी मौत कैसे भी हुई हो उनके न रह जाने से अनाथ हालत में हो गया था। अगर पत्रकार उनकी लड़ाई न लड़ते तो सरकार उनकी कोई मदद करने वाली नहीं थी। फिलहाल तो जोगेंद्र सिंह को श्रद्धांजलि देना ही उचित होगा।

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