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भाजपा के पीछे पड़ गया ललित मोदी मुद्दे का भूत

मुक्त विचार
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ललित मोदी मुद्दे का भूत भाजपा का पीछा नहीं छोड़ रहा है। राजस्थान में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की कुर्सी के लिए खतरा अभी टल नहीं पाया है। हालांकि पार्टी में उनके सरपरस्त माने जाने वाले केेंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने उन्हें खुला बरदहस्त देते हुए कहा है कि एनडीए में यूपीए की तरह किसी मंत्री का इस्तीफा नहीं होगा। वसुंधरा राजे भी अपनी घेराबंदी से अब बौखला सी गई हैं। उन्होंने कांग्रेस के साथ साथ मीडिया को भी उन्हें बदनाम करने का अभियान चलाने के लिए लपेट लिया है। उनके द्वारा मीडिया में यह खबरें भी प्लांट कराई जा रही हैं कि जहां राज्य के सारे विधायक और मंत्री उनके साथ हैं वहीं संगठन भी उनकी मुट्ठी में है। राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष के माध्यम से जारी कराया गया उनके समर्थन का बयान यही आभास देता है।
भारतीय कानून के भगोड़े होने के बावजूद ललित मोदी की मदद में सभी हदें पार करके वसुंधरा राजे ने अपने कैरियर में ग्रहण लगा लिया है। इस मामले में रोज नए रहस्योद्घाटन हो रहे हैं। नया रहस्योद्घाटन यह है कि वसुंधरा राजे ने पार्टी हाईकमान के सामने इस बात को कबूल कर लिया है कि ललित मोदी को उनका पासपोर्ट रद्द हो जाने के बावजूद ब्रिटेन में बने रहने के लिए ब्रिटिश सरकार की अनुमति दिलाने हेतु उनके 2011 को दिए गए आवेदन पर उन्होंने गोपनीय गवाह के तौर पर इस बात की तस्दीक की थी कि अगर ललित मोदी को भारत लाया जाता है तो राजनीतिक कारणों से उनकी हत्या किए जाने की आशंका है। वसुंधरा राजे ने यह नहीं सोचा कि इससे देश की छवि कितनी खराब होगी। साथ ही उन पर भारतीय कानून के तहत वांछनीय आरोपी की मदद करने का आरोप भी पुष्ट हो गया है जिसके लिए वे भी कार्रवाई के घेरे में आ गई हैं।
ललित मोदी की उनके द्वारा इस तरह मदद करने के पीछे कोई नि:स्वार्थ भावनात्मक कारण नहीं है। उनकी उक्त बदनाम उद्योगपति से अंतरंगता में विशुद्ध धंधेबाजी है। उनके पुत्र दुुष्यंत कुमार की कंपनी के शेयर कई गुना ज्यादा कीमत में ललित मोदी द्वारा खरीदने का तथ्य उजागर होने से इस बात की पुष्टि हो जाती है। ऐसे में जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा में अपने कार्यकाल में बेदाग माहौल बना देने की साख कायम करने के लिए जुटे हैं। वसुंधरा राजे जो पहले से ही विवादित और बदनाम हैं के कारनामे ने उनकी सारी मेहनत पर पानी फेरने जैसा काम कर दिया है। वैसे भी वसुंधरा को नरेंद्र मोदी पसंद नहीं करते। उस पर उनकी यह गुस्ताखी अब नरेंद्र मोदी उन्हें छोड़ें तो छोड़ें कैसे। संघ का दबाव उनके लिए आया था इसलिए शुरू में मोदी ने आभास दिया था जैसे वसुंधरा को बख्श दिया गया हो लेकिन अब एक बार फिर मोदी की भवें तन गई हैं। इसके पहले वसुंधरा के समय मांगने पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने नकारात्मक रुख प्रदर्शित करके यह संकेत दिया था कि पार्टी उनके साथ अपनी साख नहीं फंसाएगी। बीच में स्थितियां बदलने के बावजूद नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अभी तक उनसे मिलना गवारा नहीं किया है। 28 जून को दिल्ली में प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्रियों के साथ होने वाली बैठक में मोदी उनसे कैसा सलूक करते हैं इस पर अब सबकी नजर है। खुद वसुंधरा ने भी इस बैठक के मद्देनजर विदेश यात्रा के एक महत्वपूर्ण एप्वाइंटमेंट को रद्द कर दिया है।
वसुंधरा का मामला राजनाथ और मोदी के बीच टकराव का कारण बन सकता है। राजनाथ खुलकर वसुंधरा के साथ आ गए हैं। हालांकि उन्होंने जो बयान दिया है उससे जनमानस में उनकी छवि भी बुरी तरह धूमिल हुई है। राजनाथ के साथ कहीं न कहीं संघ का बल भी है। भाजपा में जटिल होती राजनीतिक स्थितियों का एक नमूना पूर्व गृह सचिव और सांसद आरके सिंह का वसुंधरा के खिलाफ सार्वजनिक रूप से दिया गया बयान है। साथ ही यशवंत सिन्हा ने मोदी के खिलाफ जो सीधा मोर्चा खोला वह भी चर्चा का विषय बना हुआ है। इसके पहले डा. मुरली मनोहर जोशी और अरुण शौरी जैसे लोग सरकार के कामकाज पर असंतोष जताने लगे हैं। राजनीति शायद किस्मत का खेल है इसीलिए लोक सभा चुनाव में शक्ति शून्य हो जाने के बावजूद कांग्रेस में अचानक प्रखर तेज पैदा हो गया है। वसुंधरा राजे द्वारा कांग्रेस पर राजनीतिक बदले की भावना से उनके खिलाफ अभियान चलाने का आरोप लगाकर पेशबंदी की जो कोशिश की गई है उसे कोई गंभीरता से नहीं ले रहा जिससे उनका पैंतरा असर नहीं दिखा पा रहा। बहरहाल अभी तक राजनीतिक बिसात पर मोहरे जिस तरह से आगे बढ़ रहे हैं उससे यह लगता है कि वसुंधरा की छुट्टी शायद अवश्यंभावी है।

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