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नेपाल में संविधान सभा ने देश को फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित करने के प्रस्ताव को अमान्य कर दिया है और आठ वर्ष पहले इसे धर्म निरपेक्ष राज्य बनाने की व्यवस्था को बहाल रखने का एलान किया है। नेपाल से समय चक्र पीछे नहीं लौटता की यह उदघोषणा भारत के लिए भी प्रासंगिक है। जहां कुछ लोग आजादी के बाद से ही देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का शेखचिल्ली ख्वाब देख रहे हैं। सन् 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से तो हिंदू राष्ट्र के सपनों में जीनें वालो का उन्माद कुछ ज्यादा ही बढ़ा हुआ है।
हिंदू राष्ट्र से जो असहमति है उसके पीछे हिंदू समुदाय को हेय भावना से देखे जाने का कोई दृष्टिकोण नहीं है। अमेरिका के नये विश्व की धुरी बनने और महाशक्ति के रूप में उसके दर्जे के विकास के युग में पिछली कई अवधारणायें खारिज हुई हैं और दुनिया के हर कोंने के लोगों के सामने शक्तिशाली होने का एक नया माॅडल सामने आया है। अमेरिका में इस समय जो लोग हुकूमत कर रहे हैं वे पिछले पांच सौ वर्षों में बाहर से आये हुए लोग हैं। पिछले कुछ वर्षों से तो अमेरिका में उच्च पदों पर आसीन होने वालों में ऐसे लोगों की झड़ी लगी हुई है जिनके पूर्वज दो तीन पीढ़ी पहले तक अमेरिका के बाशिंदे नही थे। इस तरह अमेरिका ने एक नया माॅडल दुनिया के सामने शक्तिशाली होने के लिए रखा है। जिसमें यह सूत्र निहित है कि वही देश अपना दबदबा सबसे ज्यादा बढ़ा सकता है जो धर्म और पीढ़ियों से मातृभूमि जैसे सिंद्धातों से बंधा न हो। धार्मिक राष्ट्र आज किस तरह अभिशाप बन गये हैं। इसका उदाहरण मुस्लिम विश्व के राष्ट्र हैं। जिनमें कोई एकता और शांति नहीं है आपस में खून खराबा ही जिनकी नियति बन चुकी है। अमेरिका का सबक चेतन अचेतन तौर पर सभी देशों के जहन में है इसीलिए नेपाल अपने को हिंदू राष्ट्र घोषित करने से पीछे हट गया। भारत तो बिल्कुल भी धार्मिक राष्ट्र नहीं बन सकता क्योंकि यह तो धर्म, नस्ल, भाषा किसी दृष्टि से एकात्म नही है फिर भी एक ऐसे समायोजन को इसने विकसित किया है जो इसकी अखंडता की शक्ति है। धार्मिक राष्ट्र घोषित होने से यह समायोजन छिन्न-भिन्न हो जायेगा।
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