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अब शिवराज सिंह बमके

मुक्त विचार
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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत के आरक्षण को लेकर दिए गये बयान के बाद भारतीय जनता पार्टी में हलचल पैदा हो गयी है | इस बयान से बिहार में नुक्सान होता देख नरेन्द्र मोदी को कहना पड़ा कि आरक्षण के वर्तमान आधार में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा | प्रधान मंत्री के बयान के बाद सत्तारुढ पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने भी इसी अंदाज में कमजोर वर्गो को आश्वस्त किया लेकिन इनके बयानो के अंदाज में बहुत जोर नहीं था इसलिए प्रधान मंत्री और भा जा पा अध्यक्ष के बयान मजबूरी में वोटरों की नाराजगी से बचने का कूटनीतिक पैंतरा माना जा रहा था लेकिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस हमलावर अंदाज में इसके लिए आगे आये है उससे भा जा पा के भी लोग कम सन्न नहीं है | शिवराज सिंह चौहान की टोन संघ प्रमुख को चुनौती देने वाली है जो कि भा ज पा नेता के सन्दर्भ में दुस्साहसिक कहा जाएगा |
शिवराज सिंह चौहान के बयान से एक बात उजागर हो गयी है कि प्रमोशन में आरक्षण को ख़त्म करने के मामले में भले ही पिछड़ों को भ्रमित कर दिया हो जिसकी वजह से इसे बचाने की लड़ाई अकेले दलितों को लड़नी पड रही है लेकिन जाति के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था ख़त्म करने की नौबत आने तक पिछड़े सोते नहीं रहेंगे | शिवराज सिंह चौहान ने जता दिया है कि पिछड़ों को यह भान है कि जाति के आधार पर आरक्षण ख़त्म करने की संघ प्रामुख की बात दूर तलक जायेगी | यह सिलसिला केवल दलितों तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि मंडल सिफारिशों को भी ले डूबेगा इसलिए हिंदुत्व के मामले में पिछड़ों का रवैया पुराने जमाने जैसा नहीं रहा | वे हिंदुत्वा के प्रति अनुरक्त होते हुए भी अपने हित और सम्मान के मामले में कोई समझौता नहीं करेंगे | संघ को चाहिए कि कूट रचना की वजाय पिछड़ों की जागरूकता के अनुरूप ही हिंदुत्व के समायोजन की रूपरेखा गढ़े वरना उसकी गाडी आगे नहीं बढ़ पाएगी |
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी बिहार चुनाव में गड़बड़ी होते देख पलटी खाते हुए दिखने का प्रयास किया है | उन्होंने अपने बयान को गलत ढंग से प्रस्तुत करने का ठीकरा तो प्रेस के सिर पर फोड़ा लेकिन इसके बाद भी वे अपनी हठधर्मिता से बाज नहीं आये | उन्होंने कहा कि मैंने आरक्षण को ख़त्म करने की बात नहीं कही थी बल्कि समीक्षा की बात कही है लेकिन जब वे कह रहे है कि जाति के आधार पर आरक्षण देने की वजाय आर्थिक आधार पर आरक्षण देने पर विचार होना चाहिए जो साफ़ है कि दलितों और पिछड़ों को प्रदत्त आरक्षण ख़त्म कराना ही उनका आशय है | संघ प्रमुख इतने तो भोले नहीं है कि यह न जानते हो कि मौजूदा सविधान के तहत गरीबी के आधार पर आरक्षण दिया जाना संभव ही नहीं है |
हालांकि इस बीच एक विसंगति उभरी है | आरक्षण का लक्ष्य जाति विहीन समाज की रचना के लिए अनुकूलन पैदा करना था लेकिन जिस तरह से आवादी के आधार पर आरक्षण को एक अधिकार के रूप में स्थापित किया जा रहा है उससे यह लक्ष्य काफी दूर खिसकता नजर आ रहा है हालांकि इसके पीछे रूढ़िवादियों की समय से पहले जातिआधारित आरक्षण को समाप्त करने की कपट चाल ही जिम्मेदार है जिसकी वजह से प्रतिरक्षा में दलित और पिछड़े भी शील और न्याय की केंचुल उतार फेकने को तैयार हो गये है वरना नैतिक उत्थान की वजह से ही कांशीराम जैसे नेता कमजोर वर्ग में पैदा हुए थे जिन्होंने अपने लाभ के लिए आरक्षण को ठुकराकर जीवन भर अनारक्षित सीटों से चुनाव लड़ा अगर वातावरण सुधर जाए तो सरकारी नौकरियों के मामले में तमाम दलित और पिछड़े नौजवान कांशीराम की तरह नैतिक साहस दिखा सकते है

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