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आमिर खान ने दी भा ज पा के कट्टरपंथियों को संजीवनी

मुक्त विचार
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फिल्म अभिनेता आमिर खान के बयान पर मचा हंगामा थमने का नाम नहीं ले रहा है | एक ओर राहुल गांधी , समाजवादी पार्टी और शरद पंवार ने उनकी हौसला अफजाई की है दूसरी ओर मुस्लिम बुध्दिजीवियों और उनके फ़िल्मी साथियों समेत एक बड़े वर्ग ने उनकी आलोचना भी की है | भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार को तो उनके प्रति नाराजगी प्रकट करनी ही थी कुछ हिन्दू संगठनों के वाक् वीरों ने तो उन्हें चौराहे पर फासी पर लटका देने की बात तक कह दी है |
हाल ही में जब आमिर खान केंद्र सरकार के एक कार्यक्रम के ब्रांड एम्बेसडर बन गये थे उस समय प्रगति शील तत्वों को उनका यह कदम बेहद नागवार गुजरा था | पूंछा जा रहा है कि क्या इसी कलंक के प्रक्षालन के लिए वे असहिष्णुता के विरोध के बहाने कागजी इन्कलाब दिखाने की कोशिश कर बैठे | केंद्र में अकेले दम पर भारतीय जनता पार्टी के बहुमत में आने के बाद तमाम कागजी शेर जिस तरह की बेतुकी बयान बाजी पर उतर आये थे उससे देश का माहौल सचमुच बेहद खराब नज़र आने लगा था | भा ज पा के इन बचकाने समर्थकों का आकलन लोकसभा चुनाव के परिणाम के कारण कुछ और ही था | एक तो उन्होंने अपनी जीत की व्याख्या इस रूप में कर ली थी कि मुसलमानों के एकतरफा विरोध में हो जाने के वावजूद भा ज पा चुनाव जीत सकती है जबकि इसके पहले धारणा यह थी कि किसी कौम या धार्मिक वर्ग को पूरी तरह शत्रु बनाकर इस देश में कोई पार्टी सत्ता में नहीं आ सकती | मुसलमानों के एकतरफा विरोध के डर को टालने के लिए ही भा ज पा ने राजग का सूत्रपात किया था और संघ की लाइन की बजाय ज्यादातर अपनी स्वतंत्र लाइन पर चलने वाले अटल बिहारी वाजपेयी को लाल कृष्ण आडवाणी की बजाय नेतृत्व के लिए मान्य किया था | दूसरे लोकसभा चुनाव के नतीजे ने उनके अन्दर यह भ्रम पैदा कर दिया था कि पूरा हिन्दू समुदाय तमाम अपने सामाजिक अंतर विरोधों को भुलाकर मुसलमानों को खदेड़ने के लिए पूरी तरह लामबंद हो गया है जिसका फायदा उठाने का कोई मौका न चूकने का उतावलापन उन पर हावी हो गया था |
इसी घमंड में वे जो गलतियां करते चले गये उसकी सजा भा ज पा को बिहार के चुनाव मे मिल गयी और बिहार के चुनाव ने यह साबित कर दिया कि हिन्दुओ में ही एक बड़ा तबका कागजी शेरो की हरकतों को बर्दास्त नहीं करेगा | अचरज यह है कि कागजी शेर जब भड़काऊ बयानों का तांडव कर रहे थे तब तो आमिर खान खामोश रहे और जब हवा पलटने लगी थी तब उन्होंने ऐसा सम्बेदंनशील बयान दे डाला जिससे भा ज पा के कट्टरपंथियों को नए सिरे से खाद पानी मिलने की आशंका पैदा हो गयी है | बेहतर होता कि आमिर खान इस मामले में विवेक और दूरदर्शिता का परिचय देते | कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और शरद पवार का स्थितियों में परिवर्तन से कोई लेना देना नहीं है | यह दल राजनीतिक लाभ और अवसर वादिता के लिए कार्य करने के आदी हो चुके है इसलिए इनके समर्थन से उन्हें कोई बल प्राप्त नहीं होने वाला |
नरेन्द्र मोदी का प्रधान मंत्री के रूप में लगभग डेढ़ वर्ष का समय व्यतीत होने के बाद वर्ण व्यवस्थावादी भारतीय जनता पार्टी के अन्दर स्थितियां बदलने लगी है | सलेमपुर से भा ज पा के सांसद रवीद्र कुशवाहा ने पार्टी के नियामको की हकीकत को बेनकाब करते हुए हाल ही में आरोप लगाया है कि पार्टी की सरकार में पिछड़े वर्ग के सांसदों की उपेक्षा की जा रही है | यह पार्टी में सतह के अन्दर चल रही उथल पुथल की बानगी है | संक्रमण काल में वर्ण व्यवस्था के नियमों को ढीला करके दिखावे के लिए शूद्र को सत्ता सौंपने की नजीरे पहले भी सामने आती रही है लेकिन यह एक अस्थाई प्रबंधन होता है और इसके लिए ऐसे शूद्र पर भरोसा किया जाता है जो सुग्रीव परपरा का कायल हो लेकिन मोदी ने जिस तरह से पूरी पार्टी को एक तरफ करके निजी लोगो का प्रभुत्व स्थापित करने का उपक्रम शुरू किया है उससे संघ को लग रहा है कि अगर उन्हें छूट जारी रही तो वे लम्बी पारी खेलेंगे कल्याण सिंह की तरह अस्थाई प्रबंधन के बाद उनका स्थाई हश्र करना संभव नहीं होगा इसी से विचलित होकर संघ प्रमुख ने बिहार विधान सभा के चुनाव अभियान के बीच आरक्षण पर बयान का ऐसा पटाखा फोड़ा कि महाकाय मोदी बोनसाई हो गये ,जिसकी मिसाल है असम विधान सभा के होने वाले चुनाव में उन पर भरोसा करने की बजाय मजबूत स्थानीय नेता के चेहरे को आगे करके चुनाव लड़ने का भा ज पा का फैसला | यह एक मजेदार स्थिति थी और भा ज पा के प्रति वंचित तबके में तीव्र मोहभंग को हवा मिलने के आसार इससे पैदा हो गये थे लेकिन आमिर खान के बयान ने भा ज पा और संघ के लिए इस जद्दोजहद के बीच रक्षाकवच का काम किया है जिससे हिंदुत्व आधारित ध्रुवीकरण का सिक्का फिर चल पड़ने के आसार पैदा हो गये है |

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