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इस देश में कौन हैं झूठे भगवान

मुक्त विचार
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बाबा साहब अंबेडकर को लेकर झूठे भगवान की पूजा किताब लिखने वाले अरुण शौरी को एक जमाने में देश के सफेदपोश समुदाय ने उनके इस साहस के लिए उन्हें अपनी पलकों पर बिठा लिया था। लेकिन आज अरुण शौरी कहां हैं। भाजपा में ही वे एक गुमनाम चेहरा बन चुके हैं जबकि भाजपा के आज के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी डाॅ. हेडगेवार और गुरु गोलवलकर की बजाय बाबा साहब का महिमा मंडन करके स्वयं को कृतार्थ कर रहे हैं। महानता को लेकर ऐसे विरोधाभासों का भारतीय समाज में यह एक अकेला उदाहरण नही है बल्कि कहा यह जाना चाहिए कि ऐसे विरोधाभासों से अभिशप्त रहना भारतीय समाज की सबसे बड़ी बिडंबना साबित हुआ है लेकिन स्वयं की बुनी इस कारा से बाहर निकलने की कोई इच्छा शक्ति अभी भी इस समाज में जाग्रत नही हुई है। ताजा मामला कलियुग के मर्यादा पुरुषोत्तम अमिताभ बच्चन का है। मर्यादा पुरुषोत्तम यानी समाज के लिए रोल माॅडल व्यक्तित्व। बिडंबना यह है कि हर काल में मर्यादा पुरुषोत्तम को अनुकरणीय मानना संदिग्ध रहा है और अमिताभ बच्चन के मामले में भी इतिहास अपनी इस नियति को ही दोहरा रहा है। पनामा लीक्स मामले में दो आॅफशौर कंपनियों के बोर्ड आॅफ डायरेक्टर्स की मीटिंग में उनके द्वारा टेली कांफ्रेसिंग के जरिए शामिल होने की खबरें मीडिया में सुर्खरू हैं। जबकि अमिताभ बच्चन सफाई दे रहें हैं कि उन्होंने विदेशों में कोई कंपनियां अपने नाम से नहीं बनवाईं।
आखिर लोग अमिताभ बच्चन के पीछे ही क्यों पड़े हैं। बोफोर्स की दलाली का पैसा स्विटजरलैंड में जिस लोट्स नाम के खाते में जमा हुआ वह अमिताभ बच्चन का था यह खबरें विदेशी मीडिया में छपीं। अमिताभ बच्चन ने इस मामले में मानहानि का मुकदमा दायर किया था और जीत जाने पर उन्हें हर्जाना अदायगी का आदेश पारित हुआ था। बड़े लोगों के आंखों के सामने उजागर अपराध अक्सर अदालत में साबित करना मुश्किल होता है। अब मुलायम सिंह से ज्यादा कोई ईमानदार होगा वे जब यह मंचों से बताते हैं कि सीबीआई से प्रमाणित ईमानदार हैं तो लोगों की बोलती बंद हो जाती है। लेकिन कोई दिल पर हाथ रखकर यह कह सकता है कि मुलायम सिंह का दावा यकीन करने लायक है। शायद मुलायम सिंह को भी खुदा को हाजिर नाजिर करके ऊपर वाले की अदालत में इस मामले में हकीकत बताने को कहा जाये तो उनका भी बयान कुछ और ही होगा। बोफोर्स मामले में अदालत द्वारा सत्यापित ईमानदार अमिताभ बच्चन की कलई उनके मुंह बोले भाई अमर सिंह ने कुछ ही दिनों पहले एक टेलीविजन चैनल के कार्यक्रम में जमकर पोती जिसमें बोफोर्स का भी जिक्र आया। अमर सिंह ने इसमें खुलेआम कहा कि चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस मामले में अमिताभ की मदद के लिए तत्कालीन कानून मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी को लगाया गया था। क्लीन चिट मिलने के बाद फिर कहीं इस गाड़े हुए मुर्दे को कोई न उखाड़ दे इसके लिए पेशबंदी के तौर पर चंद्रशेखर सरकार ने एक अर्द्धन्यायिक फैसले को पारित कराने की व्यूह रचना की जिसे भविष्य में चुनौती न दी जा सके।
अमर सिंह के बयान का खंडन न अमिताभ बच्चन से करते बन रहा है और न ही सुब्रमण्यम स्वामी से। उनकी बातों को बहस का मुददा बनने से रोकने के लिए दोनों ने इस पर चुप्पी लगा जाने का इलाज तलाश रखा है। अमर सिंह ने और भी रहस्योदघाटन किये हैं। जिनके मुताबिक एक विदेशी के अमिताभ बच्चन पर उधार को चुकाने के लिए सहारा श्री सुब्रत राय ने उसे 50 करोड़ रुपये का कर्जा अपनी कंपनी से दिया। अमर सिंह ने इस मामले में बहुत पैने तीर चलाये हैं। उन्होंने पूंछा है कि सहारा का पूरा पैसा सुब्रत राय का पुश्तैनी धन नही था। यह निवेशकों का धन है जिसे वापस कराने के लिए सेवी ने उनकी पूरी परिसंपत्तियां अपने कब्जे में कर ली हैं। अमिताभ बच्चन के लिए चुकाया गया 50 करोड़ का कर्जा भी डिपोजीटरों का है इसलिए क्या सेवी उनसे यह रकम जमा करायेगी। अमर सिंह की बात बाजिब है। अमर सिंह ने इस मामले में दूसरी बात यह कही है कि विदेशी नागरिक को लेनदेन का रिकार्ड फैरा और फैमा के तहत किया जाना चाहिए क्या अमिताभ बच्चन के मामले में ऐसा हुआ है। अमर सिंह के इन सवालों से न केवल अमिताभ बच्चन बल्कि उन्हें राष्ट्रपति बनाने की तैयारी कर रही मोदी सरकार को भी सांप सूंघ गया है। माना जा सकता है कि अमर सिंह निजी अदावत की वजह से अमिताभ के खिलाफ भड़ास निकाल रहे हैं। लेकिन क्या उनके आरोपों का मजबूत कानूनी आधार नही है। क्या सरकार की यह जिम्मेदारी नही है कि प्रथम दृष्टया गंभीर आर्थिक आरोप की झलक देने वाले अमर सिंह के रहस्योदघाटन को संज्ञान में लेकर तत्काल कार्रवाई शुरू करायें।
अमिताभ बच्चन के मामले में उनके द्वारा फिल्मों में काम करने के इच्छुक करोड़ों युवाओं से ढाई-ढाई सौ रुपये का पोस्टल आॅर्डर एबीसीएल कंपनी बंद करके गटक जाने का आरोप तो स्वयं सिद्ध है। लेकिन इसमें भी उनके खिलाफ कार्रवाई की जहमत किसी भी सरकार ने नही उठाई। इस स्वयंभू महानायक ने बैंगलोर में वल्र्ड ब्यूटी कंटेस्ट आयोजित कराया था जिसका टैक्स और इंतजामों पर हुआ सरकारी खर्चा देने से भी वे मुकर गये थे। लेकिन यह विवाद उनका आज तक कुछ नही बिगाड़ सका। बीपीएल के अनुबंध के 25 करोड़ रुपये के मेहनताने पर देश को टैक्स देने से बचने के लिए उन्होंने कुछ समय के लिए अमेरिका की ग्रीन कार्ड नागरिकता ग्रहण कर ली थी। उनके साथ जुड़े इस कलंक को कौन गलत करार दे सकता है। राजीव गांधी के समय उनके भाई अजिताभ बच्चन को अरबों रुपये का चावल निर्यात का ठेका क्या किसी स्वच्छ और पारदर्शी टैंडर नीति के तहत मिलना संभव हुआ था या यह सत्ता के केंद्र में ऊंची हैसियत के दुरुपयोग का मामला था। इसका जबाब क्या है लोग यह खूब जानते हैं। एक कहावत है कि बिना आग के धुआं नही उठता लेकिन अमिताभ बच्चन के व्यक्तित्व से हमेशा धुएं के गुबार उठते रहते हैं जबकि उनका कहना होता है कि उनके व्यक्तित्व में आग तो दूर आंच तक का संस्पर्श कही नही है।
अमिताभ बच्चन भद्रता और संस्कारिता के मूर्तिमान प्रतीक के रूप में स्थापित किये जा चुके हैं। लेकिन जब वे सांसद थे उस समय अपने पिता के साथ के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के प्रतिनिधि मंडल को उन्होंने मुलाकात के लिए कितना लंबा इंतजार करवाकर जलील किया था यह भी स्मरण रखे जाने योग्य है। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने अमिताभ बच्चन से कभी कोई मुलाकात न करने का फैसला लिया था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की जो गरिमा है उसको ध्यान में रखते हुए किसी व्यक्ति के बारे में उसका यह असाधारण निंदात्मक प्रस्ताव सामने हो तो उस शख्सियत को भद्रता का तगमा देना कितना दुष्कर है यह अनुमान लगाया जा सकता है लेकिन यहां हर मर्यादा पुरुषोत्तम और धर्मराज की तासीर इसी तरह की उलटी है। जहां लोगों के रोल माॅडल साजिशी वितंडावाद से गढ़े जाते हों वहां का समाज किसी नेक रास्ते पर चलने की समझदारी दिखा सकता है यह सोचना भी मूर्खता है। यहां अमिताभ बच्चन और देश भर को महाभारत युग से भी बदतर सटटे के जुएं में गर्क करने वाले अधम खेल क्रिकेट के खिलाड़ी होने के नाते सचिन तेंदुलकर को भगवान बनाकर उनके मंदिर बनाये जाते हों। वहां झूठा भगवान कौन है और सच्चा भगवान कौन है इसका फैसला बुद्धि विलासिता में डूबा रहने वाले देवलोक का कोई अरुण शौरी नही नही कर सकता। ऐसे समाज में नीरक्षीर विवेक के लिए पढ़ने के साथ-साथ गुनने वाले मस्तिष्क वैचारिकी के केंद्र में लाने होंगे।

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