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पत्रकारिता: विलक्षण विधा से सांचे में ढले उपक्रम तक की यात्रा

मुक्त विचार
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कुुछ भी इतना कुदरती नहीं होता कि उसका सांचा तैयार न किया जा सके और सांचा बनाकर हर चीज की पूरी जमात ढ़ाली जा सकती है। यह आधुनिक विचार है जिसे मुझ जैसे व्यक्ति के लिये पत्रकारिता को लेकर स्वीकार करना आसान नहीं है। मुझे लगता है कि कवि और कहानीकार की तरह पत्रकार भी जन्मना होता है। भले ही आज प्रोफेशनल कोर्स करके पत्रकार बनने वालों का जमाना हो। इन कैरियरवादी पत्रकारों में सबसे बुनियादी कमी है कि इनमें समाज की विसगंतियों से जुझने और बदलने की कोई बेचैनी नहीं है। जो कि पत्रकारिता के चरित्र का मूल तत्व है।
बुन्देलखण्ड में जालौन जिले की पत्रकारिता का एक अलग स्थान रहा है। इस जिले में लगभग साढ़े तीन दशक तक मुझे विभिन्न भूमिकाओं में पूर्णकालिक पत्रकारिता का अवसर मिला। हालंाकि मेरी पत्रकारिता की शुरूआत मध्य प्रदेश के चम्बल के बागियों के लिये चर्चित भिण्ड जिले से देश के जाने माने पत्रकार स्व.आलोक तोमर के साथ हुयी थी। 1982 और 1983 के दस्यु समर्पणों में जिसमें मलखान सिंह, फूलनदेवी, घंसा बाबा ने हथियार डाले थे आलोक और मैने किशोर होते हुये भी अपने समय के सबसे बड़े राष्ट्रीय इवेन्ट में से एक इस घटना क्रम को बहुत गहराई और व्याप्त से कवर किया था। दस्यु समर्पण को लेकर एक मुद्दा हत्या, अपहरण और डकैती जैसी सगीन वारदातों में शामिल रहे अपराधियों को महिमा मन्डित किये जाने के विरोध से जुड़ा था। इस विरोध में भी हम लोग सोशल एक्टिविस्ट की तरह सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। चूंकि उस समय जुझारू सामाजिक कार्यकर्ताओं की ही परिणति पत्रकार बनने के बतौर होती थी। उन दिनों तक डकैत गिरोहों को हथियार देने वाले सफेद पोशों के चेहरे बेनकाब करती हुयी मेरी एक स्टोरी दैनिक जागरण, ट्रिब्यून जैसे कई जाने माने अखवारों में एक सम्वाद सिन्डिकेट के जरिये प्रमुखता से छपी जिसने शीर्ष स्तर पर काफी तहलका मचाया।
लेकिन जालौन जिले के मुख्यालय उरई में असली तौर पर मैने दैनिक कर्मयुग प्रकाश के सम्पादक के रूप में अपनी पारी शुरू की। जो तब तक 13 वर्ष पुराना स्थापित अखबार बन चुका था। इसकी सबसे बड़ी विशेषता कारर्पोरेट मीडिया जैसा इसका प्रबन्धन था। जिसकी बदौलत जालौन जनपद ही नहीं आस पास के बुन्देलखण्ड अंचल समेत लगभग 10 जिलों के देहाती क्षेत्रों में पहुंचने वाला यह एक मात्र अखबार था। कर्मयुग प्रकाश का पहला पन्ना तैयार करने और अग्रलेख लिखने की जिम्मेदारी मेरी थी। इस मामले में दैनिक कर्मयुग प्रकाश मेरे समय राष्ट्रीय स्तर के प्रोफेशनल मानदण्डों के अनुरूप सम्पादकीय प्रतिष्ठा बना सका। जिससे 1984 के चुनाव अभियान में रेडिफ्यूजन जैसी अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञापन एजेन्सी ने जिला स्तरीय अखबारों में एक मात्र कर्मयुग प्रकाश को सूचीबद्ध किया। दुर्याेग यह रहा कि झांसी रेंज के तत्कालीन पुलिस डीआईजी ने एक प्रेस कान्फे्रंस में मुझे धमकाने की कोशिश की और बात यहां तक बढ़ी कि जब वे मुझे पर हावी न हो सके तो उन्होंने एक दिन स्व.रमेश चन्द्र गुप्ता को अपने यहां बुलवाकर मुझे अखबार से न निकालने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दे डाली। रमेश चन्द्र जी उनसे मिलकर लौटने के बाद काफी धर्म संकट में थे। किसी तरह यह बात मुझे मालूम हो गयी जिसके बाद मैने उन्हें स्वेच्छा से अपना इस्तीफा लिखकर दे दिया। हालांकि रमेश चन्द्र गुप्ता मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे। उनका सुझाव था कि मै कुछ समय के लिये छुट्टी ले लूं और डीआईजी का जैसे तबादला हो जाये वापस कार्यभार संभाल लूं। लेकिन मैने धन्यवाद देकर इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से मना कर दिया।
दैनिक कर्मयुग प्रकाश के मेरे कार्यकाल में जिले में डाकुओं का उत्पाद चर्म पर था और कई घटनायें तो ऐसी हुयी जिससे जिले का नाम देशभर में सुर्खियों में छाया रहा। एक घटना थी जालौन के तत्काल एसएसपी उमाशंकर बाजपेयी का दस्यु गिरोह द्वारा अपहरण किये जाने की। वे एक दस्यु सरगना से मिलने गये थे ताकि उसे समर्पण करने के लिये मना सके लेकिन उसने उमाशंकर बाजपेयी को ही बन्धक बना लिया। यह खबर कर्मयुग प्रकाश में छपने के बाद हंगामा हुआ। राज्यसभा में स्व.विजयाराजे सिधिया ने सरकार से कहा कि वह यूपी सरकार से सम्पर्क करके जालौन के एसएसपी का पता लगाकर बताये कि क्या उनका अपहरण हो गया। अलगे दिन उमाशंकर बाजपेयी को डकैत सरगना ने ससम्मान छोड़ दिया। लेकिन इस मामले में सरकार को कई दिन तक चेहरा छुपाना पड़ा। कर्मयुग प्रकाश छोड़ने के बाद मुझे उरई में ही अखबार के एक प्लेटफार्म की तलाश थी ताकि डीआईजी साहब के घमण्ड को चूर-चूर कर सकुं। लेकिन विकल्प न मिलने की वजह से ग्वालियर से मिल रहे दैनिक नव प्रभात के सम्पादन का प्रस्ताव स्वीकार करने का निश्चय मैने कर लिया था। लेकिन मैं ग्वालियर के लिये निकल पाता इसके पहले ही स्व.कृष्ण बल्लभ भारती मुझे दो दिन पहले शुरू किये गये अपने अखबार दैनिक अग्निचरण को स्थापित करने के लिये खींच लाये। इस अखबार की सारी व्यवस्थायें खस्ताहाल थी। कुर्सी और टेलीफोन जैसे संसाधन तक नहीं थे लेकिन मैने सोच लिया कि जब समुद्र में कूद ही पड़ा हूं तो कैसे भी हो पार उतर कर दिखाना पड़ेगा। दूसरे इस अखबार में मुझे डीआईजी साहब को करारा जबाब देने का भी मौका मिल रहा था। बिना संसाधनों के भी एक अखबार को भी मजबूती से खड़ा किया जा सकता है बशर्ते जुनूनी स्तर पर काम किया जाये। मेरी सबसे बड़ी कामयाबी यह थी कि ऐसी टीम तैयार कर सका जिसने रात दिन काम करने में मेरा साथ दिया। जबकि इसके बदले में उन्हें देने के लिये मेरे पास कुछ नहीं था। दैनिक अग्निचरण टीम के सामूहिक गौरव का प्रतीक बन गया था जिसकी वजह से संसाधनों की कमी की खाई को पाटकर यह अखबार काफी बढ़ गया। उन्हीं दिनों 1986 में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व.वीर बहादुर सिंह के कार्यकाल में राज्य कर्मचारियों की एतिहासिक हड़ताल हुयी जिसकी खबरें लो प्रोफाइल में देने के लिये सभी जिलों में पत्रकारों पर दबाब डाला गया था। लेकिन अग्निचरण ने कोई दबाब स्वीकार नहीं किया और कर्मचारी हड़ताल की खबरें प्रमुखता से प्रकाशित की। जिससे यह अखबार रातों रात कर्मचारियों का सबसे चहेता अखबार बन गया।
दैनिक अगिनचरण के बाद मुझे अपने मित्र और भिण्ड के उस समय के विधायक उदयभान सिंह कुशवाहा के आग्रह पर उनका अखबार निकलवाने के लिये दैनिक अग्निचरण छोड़कर जाना पड़ा। भिण्ड से दैनिक विवस्वान के नाम से प्रकाशित इस समाचार पत्र में अच्छी धाक जमाई। उदयभान सिंह कांग्रेस के विधायक थे और उनकी पार्टी की ही मध्य प्रदेश में सरकार थी। अर्जुन सिंह ने अखबार शुरू होने के कुछ ही समय बाद दूसरी बार मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला था और अपने पहले दौरे पर वे भिण्ड आये थे। भिण्ड जिले में हैलीकाॅप्टर से उन्होंने आधा दर्जन अलग अलग जगहों पर कार्यक्रम किये। कांग्रेस की गुटबन्दी की वजह से इन कार्यक्रमों में कई जगह बबाल हुआ। रौन कस्बे में तो युवा कांग्रेस के अध्यक्ष ने उनका माइक छीनकर उनके खिलाफ जबरदस्त आग उगलना शुरू कर दी। जिससे सनसनी फैल गयी। इस खबर को दैनिक विवस्वान में प्रमुखता से छापा गया जो कि विधायक जी के राजनैतिक हितों के विरूद्ध था। लेकिन इसकी वजह से अखबार ने जबरदस्त रफ्तार पकड़ी। लेकिन कुल मिलाकर एक राजनीतिज्ञ के लिये निष्पक्षता से अखबार चलाना मुश्किल काम है इसलिये एक वर्ष बाद, स्थापित हो चुकने के बावजूद दैनिक विवस्वान को बंद करने का फैसला कर लिया गया।
इसी दौरान मेरे लिये उरई में एक शानदार अखबार की शुरूआत करने का प्रस्ताव इंतजार कर रहा था। दैनिक लोक सारथी के नाम से इस अखबार का प्रकाशन शुरू हुआ। उस समय रीडर कनेक्ट का फण्डा सामने नहीं आया था लेकिन दैनिक लोक सारथी में इस तरह के प्रयोग अनायास किये गये। दूरदर्शन पर प्रसारित महाभारत सीरियल की जबरदस्त लोकप्रियता को देखते हुये महाभारत के ज्वलंत प्रसंगों पर विवादित परिचर्चायें आयोजित की गयी। जिसमें सैकड़ो लोगों के मन्तव्य प्रकाशित कर उन्हें अखबार के परिवार का स्नेहिल सदस्य बना लिया गया। अखबार की ब्राण्डिंग के लिये भी किये गये प्रयोग काफी सफल रहे। जिनमें जाने माने साहित्यकार डा.रामशंकर द्विवेदी के द्वारा दस्तक नाम से दैनिक स्तम्भ लेखन शामिल था। लोक सारथी में इस स्तम्भ के तहत प्रकाशित उनके आलेखों का संग्रह दस्तक के नाम से ही देश के जाने माने प्रकाशन ने पुस्तक रूप में प्रकाशित किया। इस तरह गरिमा पूर्ण, संदर्भ और खोजी पत्रकारिता के लिये लोक सारथी समूचे बुन्देलखण्ड में नया इतिहास बनाने में सफल रहा। फक्कड़, कुसमा और निर्भय जैसे डकैतों के बीहड़ में किये गये दुर्लभ साक्षात्कार दैनिक लोक सारथी में प्रकाशित किये गये। मण्डल आयोग की रिपोर्ट, बहुजन समाज पार्टी के उभार और अयोध्या विवाद के मामले में प्रकाशित अग्र लेखों के लिये दैनिक लोक सारथी को राष्ट्रीय स्तर के सम्पादकों तक से सराहना मिली।
2007 में जब मैने दैनिक जागरण के जिला प्रभारी के रूप में कार्यभार संभाला उस समय जालौन जिले की खबरों का परिदृश्य बदल गया था। डकैत गिरोह समाप्त हो चुके थे, डकैतों के बिना जालौन जिले में राष्ट्रीय स्तर की खबरें बनाने के लिये क्या है यह एक सवाल बना हुआ था। लेकिन दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में यहां के एक रिपोर्ताज पर मैने सर्वश्रेष्ठ रिपोटिंग का पुरूस्कार हासिल किया। जिसके लिये कानपुर में भव्य समारोह आयोजित कर मुझे सम्मानित किया गया।
मेरी 60 खबरे दैनिक जागरण के रविवार विशेष के लिये चुनी गयी जिन्हें देशभर में पढ़ा गया। इनसे जालौन जिले का नया चेहरा सामने आया। जिसमें दस्यु समस्या की कालिख कहीं नहीं थी। इस जिले में दशरथ, माझी जैसे अपने गांव को बाढ़ से बचाने के लिये पहाड़ काटकर नदी को सीधा कर देने वाले जुनूनी राजाराम पाठक मौजूद है। यह कोई कल्पना नहीं करता था। सलाघाट पर बेतवा में उभरी हुयी दुर्लभ शिलाओं पर नजर गड़ाये खनन माफियाओं से लोहा लेने वाले जागेश्वर बाबा से बड़ा पर्यावरण रक्षक देश में कौन हो सकता है लेकिन अगर दैनिक जागरण में मेरी यह खबर न छपती तो यह प्रेरक योगदान लोगों के लिये आजाना ही बना रहता। बहरहाल जालौन जिले के लोगों के रचनात्मक उद्यम, अभिनव प्रयास और विलक्षण प्रतिभा के ऐसे नये प्रतिमान पत्रकारिता के जरिये सामने लाये जा सके। जिससे आत्म गौरब की जगमग ज्योति जिले के बांशिदों में जली जो कि किसी स्थान के आगे बढ़ने की पहली शर्त है।
पत्रकारिता की यह मेरी यात्रा का वृत्तांत है। जालौन जिले में कई और साथी है जिन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत बेहतर उदाहरण स्थापित किये है। आज जबकि मीडिया और मास कम्युनिकेशन सबसे क्रेजी कोर्स में शामिल है। अनुभवी पत्रकारों के जीवन का सफरनामा इसके विद्यार्थियों को बहुत कुछ दे सकता है।
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