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समाजवादी पार्टी में उठापटक अभी शांत नही हुई है। अमर सिंह की पार्टी से राज्यसभा के लिए उम्मीदवारी रोकने में नाकाम होने के बाद रामगोपाल यादव आत्म निर्वासन में चले गये थे। प्रदेश चुनाव के प्रभारी बनने के बाद परिवार की राजनीति में उनके प्रतिद्वंदी लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव अपर हैंड होेकर जिस तरह ताबड़तोड़ फैसले ले रहे थे उससे रामगोपाल यादव बेहद तकलीफ में थे। मथुरा कांड में जब शिवपाल सिंह का नाम उछला तो एक बार फिर रामगोपाल यादव को कुछ आस बंधी लेकिन मुलायम सिंह और अखिलेश द्वारा शिवपाल पर लगाये जा रहे आरोपों का भले ही दमदार खंडन न किया गया हो लेकिन उनका हाथ पकड़ने या इस कांड की वजह से मलिन हुई उनकी छाया से पार्टी को बचाने जैसा कोई उपक्रम भी उनके स्तर पर नही दिखाई दिया। इससे रामगोपाल यादव का डिप्रेशन अंततोगत्वा बरकरार ही रहा। लेकिन अब रामगोपाल के दिन अचानक से बहुर गये हैं।
मुख्तार अंसारी की पार्टी के सपा में विलय के विरोध में अखिलेश के कड़े तेवरों को देख वे शिवपाल से हिसाब चुकता करने के लिए फिर फाॅर्म पर आ गये। शिवपाल ने इसमें हेठी झेलने के बाद नये मंत्रियों की शपथ में अनुपस्थित होकर बगावती तेवर दिखाने की कोशिश की। लेकिन उनके शुभ चिंतक अमर सिंह ने समझाया कि इससे कुछ नही होगा और अगर आपने अड़ियल रुख अपनाया तो आपको निर्णायक शिकस्त का सामना करना पड़ सकता है। यही वजह है कि शिवपाल अपना गुस्सा पीकर रामगोपाल की किताब के विमोचन के कार्यक्रम में पहुंच गये। लेकिन इसके बावजूद दोनों की तल्खी छुपी नही रह गयी। इस कार्यक्रम में बोलने के बावजूद शिवपाल ने रामगोपाल को जन्म दिन की बधाई देने में तो परहेज रखा ही मुलायम सिंह और अखिलेश से संवाद भी नही किया। यह अबोलापन अभी तक जारी है। रामगोपाल इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं। उनकी नजर अब शिवपाल द्वारा तय किये गये विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों पर है। रामगोपाल ने मंडलवार पर्यवेक्षक नियुक्त करा दिये हैं जो कि नये सिरे से पड़ताल करके घोषित उम्मीदवारों की रिपोर्ट शीर्ष नेतृत्व को देंगे। रामगोपाल ने यह जताने में परहेज नही किया है कि घोषित उम्मीदवारों में बदलाव भी किया जा सकता है। लेकिन ऐसा लगता है कि बात केवल सकता है तक सीमित नही है बल्कि अनिवार्य रूप से उन उम्मीदवारों को बदला जायेगा जो सीधे तौर पर अखिलेश की बजाय शिवपाल के संपर्क में होंगे। छवि के मामले में शिवपाल का चेहरा भले ही बहुत साफ-सुथरा न हो, यह भी कि भले ही वे भाषण करते समय लोकल नेताओं से भी गये गुजरे लगते हों लेकिन जोड़-तोड़, गिरोहबंदी और दबंगी में वे पार्टी और परिवार में सबसे आगे हैं। जिसकी वजह से मुलायम सिंह भी उनके कायल हो जाते हैं। पर अब उनके यह गुण पार्टी के हालातों पर ही प्रयोग होने की नौबत आ गई है। जिसके चलते सपा और मुलायम परिवार का भविष्य कौन सी करवट लेता है यह बात गली, चैराहों तक चर्चा का विषय बन गई है।
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