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निशाने पर क्यों और कौन है —अखिलेश या राम गोपाल

मुक्त विचार
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खनन को लेकर गली चौराहे की चर्चाओं से हाईकोर्ट तक लगातार ज़लालत झेलने के बाद चुनाव के नजदीक गायत्री प्रसाद प्रजापति से छुटकारा पाने का फ़ैसला जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया तो उनकी लोकप्रियता पर लगा बड़ा ग्रहण जैसे छटने लगा था लेकिन उनके पिता और उनके सबसे बड़े खैरख्वाह सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह को उन्हे पुनर्मूषको भव होजाने के लिए क्यों कहना पड़ा यह एक पहेली है .गायत्री प्रसाद प्रजापति की मंत्रिमंडल में वापसी को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया कुछ इसी तरह की है .
पहले सपा के लोगों तक मे यह माना जा रहा था कि अखिलेश के दुस्साहस को पर्दे के पीछे मुलायम सिंह का पूरा वरदहस्त है ताकि उन्हे फौलादी इरादों वाले नेता के रूप में स्थापित किया जा सके .इसमें कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना के कोण की झलक भी राजनीतिक पंडितों को दिखी थी .बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश में कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो रहे थे .लालू के अन्दर रिश्तेदारी का ज़ोर कुलबुलाया .बिहार की अफसरशाही उन्हे अपनी सरकार के गॉड फादर के रूप में देख रही है तो इसमें कुछ अचरज नहीं है. इसलिये लालू का अफसरों को इशारा हुआ जिसके बाद सी एम से पुष्टि करने की भी जरूरत महसूस नहीं की गई .अफसरों ने भरोसेमंद गुलाम का फर्ज निभाते हुए लालू की मर्जी को शाहबुद्दीन की जमानत अर्जी के जवाब मे ढील डाल कर निभाया. इसके बाद तय प्लान के अनुसार शाहबुद्दीन ने जान बूझकर ऐसे बयान दिये जिससे नीतीश भड़कें और परेशान हो जाये. हुआ भी यही और इसमें नीतीश सारी चौकड़ी भूल गए.
अनुमान यह था कि नीतीश के ख़िलाफ़ अगले पैंतरे के तौर पर मुलायम सिंह अखिलेश को उभारने का जोड़तोड़ करने मे लग गए हें .यह सोचा जाना कुछ गलत नहीं था क्योंकि सपा में मंत्रियों की बर्खास्तगी से लेकर शिवपाल के विभाग छीने जाने तक जो एपिसोड चला उसमें तीसरे मोर्चे के आगामी नेता के रूप में नीतीश को पीछे कर अखिलेश ने अपनी संभावनाओं को बेहद मजबूत कर लिया था.निश्चित रूप से यह मुलायम सिंह के लिए बेहद खुशी की बात होनी चाहिये थी कि देश का प्रधानमंत्री बनने की उनकी अधूरी हसरत उनके बेटे के उस कुर्सी पर पहुचने से पूरी हो.
लेकिन अब जो रहा उससे यह सारे कयास गलत साबित हो गए हें ..अखिलेश की दबंग नेता की छवि का मुलम्मा उत्तर प्रदेश में अभी चल रहे घटनाक्रम ने धो कर रख दिया है .उनसे बफादारी जताने वालों को पार्टी से निकाला जा रहा है और उन्हे मूक दर्शक रह कर इसे सहना पड रहा है .उन्होने अमर सिंह को बाहरी कहा तो उनको मुलायम सिंह ने अपने हाथ से राष्ट्रीय महामंत्री नियुक्त करने का पत्र जारी कर सर पर चढ़ा लिया .सन 2004 में जब मुलायम सिंह खुद मुख्यमंत्री थे उस समय ही सैफई महोत्सव के दौरान राम गोपाल और शिवपाल की अदावत सामने आ गई थी .पुलिस विभाग में शिवपाल द्वारा उनका वर्चस्व छीने से रामगोपाल इतने खफा थे कि खुद मुलायम सिंह चिल्लाते रहे लेकिन राम गोपाल मंच पर नहीं चढ़े जबकि सैफई महोत्सव का संचालन उन्ही के जिम्मे रहता था.लेकिन इसके वाबजूद मुलायम सिंह ने इसका बुरा नहीं माना बल्कि इसके बाद वे राम गोपाल का कद पार्टी में उसके बाद से अभी तक बढाते रहे पर अब राम गोपाल की भी उलटी गिनती शुरू कर दी गई है. उनके भांजे को पार्टी से निकाल दिया गया. एक विधायक से उनके ख़िलाफ़ अवैध शराब के कारोबार को संरक्षण जैसे संगीन आरोप का बयान दिलवा दिया गया .हालांकि रामगोपाल को अभी राष्ट्रीय महासचिव पद से हटाया नहीं गया है लेकिन कल तकउनके द्वारा कार्यकर्ताओं के साथ इतनी बदसलूकी करने के वाबजूद कोई उनके ख़िलाफ़ मुँह तक नहीं खोल सकता था और आज उन पर इतने बेखौफ हमले होने लगे कि अगर स्वाभिमान हो तो वे खुद ही पद छोड़ बैठें वरना गालियाँ खा कर पद पर बेशरमी से बनें भी रहें तो उनका अदब करने वाला कौन रह जायेगा .इस उठापटक के पीछे राम गोपाल को नीचा दिखाने का लक्ष्य है या अखिलेश को सबक सिखाया जाना है और चूंकि उन्होने अखिलेश का साथ दिया था इस गुनाह का उन्हे भी एहसास कराना जरूरी समझा गया मात्र इसलिये उन पर
चोट हो रही है , यह अभी साफ़ होना है .
सवाल यह भी हैं कि जिन अखिलेश के बढ़ने में मुलायम सिंह अपने नाकामयाब अरमानों को सफल करने का प्रतिबिंब देखते थे क्या उस बेटे के लिए उनके मन में इतना दुराग्रह घर कर गया है कि वे उसके राजनीतिक वजूद को मटियामेट करने की ठान बैठे हैं या मुलायम सिंह किसी ब्लैकमेलिंग के शिकार हैं .इस सवाल का जवाब देना आसान नहीं है. मुलायम और अखिलेश का हाल मे सुप्रीम कोर्ट में आय से अधिक संपत्ति के मामले मे मोक्ष हुआ है. क्या इसमे अमर सिंह ने किसी स्तर पर संकट मोचक की भूमिका निभाई है.इसके साथ गेस्ट हाउस कांड का फंदा अभी भी मुलायम सिंह की गर्दन में फंसा है जिसमे नवम्बर में सुप्रीम कोर्ट से कोई आदेश हो सकता है. इस मामले मे भी अनर्थ बचाने की चाबी कहीं अमर सिंह के हाथों में ही तो तो नहीं दिख रही जिसकी वजह से मुलायम सिंह को सारे समीकरण पलटने पड़े हों .बहरहाल सारी गुत्थियाँ बहुत जटिल हैं जिनमे देश का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार बुरी तरह उलझा हुआ है.

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